क्या कोई स्त्री अपने पिछले जन्म में पुरुष थी? और क्या कोई पुरुष अपने अगले जन्म में स्त्री बन सकता है? ये दोनों ही सवाल महत्वपूर्ण हैं। महाभारत में अम्बा नाम की एक स्त्री अपने अगले जन्म में किन्नर होकर भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनती है। इस थ्योरी के पीछे छुपे विज्ञान को जानकर आप भी सतर्क हो जाएंगे।
पौराणिक ग्रंथों में ऐसे कई किस्से भरे पड़े हैं जिससे यह पता चलता है कि कोई स्त्री अपने पिछले जन्म में पुरुष थी या कोई पुरुष अपने पिछले जन्म में स्त्री था। 'वेबदुनिया' की रिसर्च के अनुसार भीष्म, विदुर, शांतनु पूर्व जन्म में क्या थे? इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। इसके अलावा ऐसे भी कई किस्से मिलते हैं कि कोई राजा अपने पिछले जन्म में गाय या कुत्ता था।
गौतम बुद्ध जब बुद्धत्व प्राप्त कर रहे थे तब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त करने के पहले पिछले कई जन्मों का स्मरण हुआ था। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियां जातक कथाओं द्वारा जानी जाती हैं। वे अपने पिछले जन्म में स्त्री, पशु और साधु आदि कई रहे हैं।
'वेबदुनिया' की डिजिटल टीम के रिसर्च के अनुसार प्रमुख समाचार पत्र 'हिन्दुस्तान' के दिल्ली संस्करण में 8 फरवरी 1966 को एक खबर छपी थी जिसमें हरियाणा के रोहतक के पार्वांपुर गांव की रहने वाली चंचल कुमारी ने अपने पिछले जन्म में पुरुष होने की बात बताई थी और उसका यह दावा पूर्णत: सच निकला था। इसी तरह के कई किस्से दुनियाभर में देखने को मिल जाएंगे। सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा होता है? और होता है तो कैसे ऐसा हो जाता है कि कोई पुरुष अगले जन्म में स्त्री का रूप ले लेता है?
गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है जिससे पुनर्जन्म होने की पुष्टि होती है। वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' ने एक पुस्तक लिखी है, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।' इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' के अलावा उक्त 2 किताबें जरूर पढ़ना चाहिए।
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इस तरह बनी स्त्री एक पुरुष : कई लोगों के दिमाग में यह बात बैठी हुई है कि स्त्री जन्म अच्छा है। कई लोगों के दिमाग में यह बात बैठी है कि पुरुष जन्म अच्छा है। अब यदि कोई पुरुष यह मानता है कि स्त्री जन्म ही अच्छा होता है तो वह अपने इस जीवन में स्त्री जैसा होने की कल्पना करता रहेगा। यह भी हो सकता है कि किसी पुरुष में स्त्रैण चित्त हो तो फिर वह अगले जन्म में स्त्री ही बनेगा। 'स्त्रैण चित्त' का अर्थ होता है कि ऐसा पुरुष जिसकी भावना और हरकत स्त्रियों जैसी होती है। इसके ठीक उल्टा भी होता है। प्रकृति तो आपकी भावना को पकड़ती है।
एक बार ओशो ने अपने प्रवचनों में यह बताया था कि स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने एक अनूठा प्रयोग किया था। वे जब ज्ञान को उपलब्ध हो गए तो उन्होंने दूसरे मार्गों से फिर से ज्ञान तक पहुंचने का कार्य किया। तब उन्होंने इस्लाम, ईसाई और अन्य सभी मार्गों की साधना की और उन्होंने कहा कि मैं वहीं पहुंच गया।
एक बार उन्होंने राधा संप्रदाय की साधना की। इस साधना में कोई भी व्यक्ति कृष्ण को अपना प्रेमी मानकर खुद को राधा मानकर साधना करता था। रामकृष्ण को इस साधना को करने में बड़े अद्भुत अनुभव हुए। उनकी चाल बदल गई, सोच बदल गई, व्यवहार बदल गया, सब कुछ स्त्रियों जैसा हो गया। कहते हैं कि उनके स्तन उभर आए थे। उनकी आवाज भी स्त्रियों जैसी हो गई थी। और एक बहुत बड़ा चमत्कार घटित हुए कि उनको मासिक धर्म भी होने लगा। वे राधा के भाव से इतने भर गए कि वे खुद को ही राधा अर्थात एक स्त्री समझने लगे और उनका चित्त स्त्रैण हो गया। उन्होंने उस भाव को इतना आत्मसात कर लिया कि वे भूल ही गए कि मैं पुरुष हूं। ऐसे में शरीर ने अपना गुण धर्म बदलना शुरू कर दिया।
'वेबदुनिया' के शोधानुसार ओशो कहते हैं कि जब मन भूल जाए तो शरीर उसके पीछे चला जाता है। शरीर सदा अनुगामी है, अनुसरणकर्ता है। वह आपके भाव और विचारों के अनुसार ही बदलता रहता है। जो भी शरीर में पहले प्रकट होता है, उसके बहुत पहले ही मन में प्रकट हो जाता है। जो भी बीमारी, खुशी, सेहत आदि प्रकट होता है वह उसके कई समय पहले मन में प्रकट हो जाता है। विचार और भाव ही वास्तविक घटना में बदल जाते हैं।
ओशो कहते हैं कि अगर कोई स्त्री है तो वह भी उसके पिछले जन्म के मन का बीज रूप अंकुर है, जो आज प्रकट हुआ है और आज अगर कोई पुरुष है तो वह भी उसके पिछले जन्म का बीज रूप अंकुर आया है। पिछले जन्म की यात्रा जहां छूट जाती, मन में जो बीज रह जाता है। वही अगले जन्म में फिर सक्रिय हो जाता है।