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गंगा का पानी कभी अशुद्ध क्यों नहीं होता, वैज्ञानिक भी अचंभित

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अनिरुद्ध जोशी

यह माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना जाता है। इसके जल को प्रत्येक हिंदू अपने घर में रखता है। ऐसा कहते हैं कि गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है। वेद, पुराण, रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है।
 
 
राम तेरी गंगा मैली हो गई :
गंगा में स्नान और गंगा पूजा के दौरान लोग वहीं अपना मल-मूत्र त्यागते हैं, वहीं भोजन करते हैं और प्लास्टिक, कचरा आदि वहीं फेंककर चल देते हैं। गंगा पूजा के नाम पर गंगा में लाखों टन हार-फूल, नारियल आदि फेंक दिया जाता है। धार्मिक आस्था के चलते कई लोग अपने मृतकों को गंगा में बहा देते हैं। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर से ज्यादा प्रदूषित कचरा हर रोज गिर रहा है। नाली और नाले का पानी, कारखानों से फैल रहा गंगा में जहर यह सभी अलग है। कई वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी फसलों की सिंचाई करने के योग्य भी नहीं है।

 
फिर भी पूरे देश में गंगा का जल बेचा जाता है। लाखों श्रद्धालु गंगा का जल एक छोटे-से लोटे में भरकर ले जाते हैं और अपने घरों में पूजा स्थान पर रखते हैं। पूजा स्थान पर रखा यह जल कभी सड़ता नहीं है। इसे आप कभी भी खोलकर सूंघें आपको इसमें से बदबू नहीं आएगी। कई लोगों के यहां सालों से जल भरा हुआ रखा हुआ है।

 
फिर भी क्यों पवित्र है गंगा का जल?
कहते हैं कि इसका वैज्ञानिक आधार सिद्ध हुए वर्षों बीत गए। कुछ लोगों के अनुसार नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते अर्थात ये ऐसे जीवाणु हैं, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता है। मतलब यह कि वैसे जीवाणु इसमें जिंदा नहीं रह पाते हैं तो जल को सड़ाते हैं।

 
भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इसका जल घर में शीशी या प्लास्टिक के डिब्बे आदि में भरकर रख दें तो बरसों तक खराब नहीं होता है और कई तरह के पूजा-पाठ में इसका उपयोग किया जाता है। ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो ‍उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 
गंगा जल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण पानी से हैजा और पेचिश जैसी बीमारियों का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, लेकिन अब वह बात नहीं रही। हालांकि इस पर अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है।

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