Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

चमत्कारिक अक्षय पात्र को जानिए

हमें फॉलो करें चमत्कारिक अक्षय पात्र को जानिए
अक्सर यह चमत्कारिक अक्षय पात्र प्राचीन ऋषि-मुनियों के पास हुआ करता था। अक्षय का अर्थ जिसका कभी क्षय या नाश न हो। दरअसल, एक ऐसा पात्र जिसमें से कभी भी अन्न और जल समाप्त नहीं होता। जब भी उसमें हाथ डालो तो खाने की मनचाही वस्तु निकाली जा सकती है। अक्षय पात्र संबंधित एक स्त्रोत भी है। 
महाभारत में अक्षय पात्र संबंधित एक कथा है। जब पांचों पांडव द्रौपदी के साथ 12 वर्षों के लिए जंगल में रहने चले गए थे, तब उनकी मुलाकात कई तरह के साधु-संतों से होती है। कुटिया बनाकर रहने के बाद उनके यहां भ्रमणशील साधु-संतों के जत्थे के जत्थे उनसे मिलने के लिए या कुटिया में प्रवास करने के लिए आते थे।
 
अब पांचों पांडवों सहित द्रौपदी के समक्ष यही प्रश्न होता था कि वे 6 प्राणी अकेले भोजन कैसे करें और उन सैकड़ों-हजारों के लिए भोजन कहां से आए?
 
तब पुरोहित धौम्य उन्हें सूर्य की 108 नामों के साथ आराधना करने के लिए कहते हैं। युधिष्ठिर इन नामों का बड़ी आस्था के साथ जाप करते हैं। अंत में भगवान सूर्य प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के पास प्रकट होकर पूछते हैं कि इस पूजा-अर्चना का आशय क्या है?
 
युधिष्ठिर कहते हैं कि हे प्रभु! मैं हजारों लोगों को भोजन कराने में असमर्थ हूं। मैं आपसे अन्न की अपेक्षा रखता हूं। किस युक्ति से हजारों लोगों को खिलाया जाए, ऐसा कोई साधन मांगता हूं।
 
तब सूर्यदेव एक ताम्बे का पात्र देकर उन्हें कहते हैं- 'युधिष्ठिर! तुम्हारी कामना पूर्ण हो। मैं 12 वर्ष तक तुम्हें अन्नदान करूंगा। यह ताम्बे का बर्तन मैं तुम्हें देता हूं। तुम्हारे पास फल, फूल, शाक आदि  4 प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेंगी, जब तक कि द्रौपदी परोसती रहेगी।' ताम्बे का वह अक्षय पात्र लेकर युधिष्ठिर प्रसन्न हो जाते हैं। 
 
कथा के अनुसार द्रौपदी हजारों लोगों को परोसकर ही भोजन ग्रहण करती थी, जब तक वह भोजन ग्रहण नहीं करती, पात्र से भोजन समाप्त नहीं होता था। जनश्रुति के अनुसार इसी तरह का अक्षय पात्र आज भी हिमालय के साधुओं के पास है। यह पात्र सूर्य की साधना से ही प्राप्त होता है।

चित्र : यूट्यूब से साभार

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi