साक्षीभाव : शरीर, इंद्रियाँ, मन, अहंकार, बुद्धि और अंत:करण यह सब प्रकृति के कार्य या हिस्से हैं और भौतिक हैं, नश्वर हैं। यह सब आत्मा को घेरे रहते हैं, इसी से आत्मा सीमित और व्यक्तिनिष्ठ है। इस प्रकृति तत्व के घेरे की वजह से ही द्वंद्व, दुविधा और कष्ट तथा भटकाव है। किंतु इसमें जो शुद्ध चैतन्य प्रकाशित हो रहा है वही आत्मा है। जो पुरुष साक्षीभाव में स्थित है तथा जिसे अपने होने का सघन बोध है, वह धीरे-धीरे आत्मज्ञान प्राप्त कर मुक्त होने लगता है।