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मरने से पहले जान लें हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म और कर्मों का सिद्धांत

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अनिरुद्ध जोशी

यहूदी और उनसे निकले धर्म पुनर्जन्म की धारणा को नहीं मानते। मरने के बाद सभी कयामत के दिन जगाए जाएंगे अर्थात तब उनके अच्छे और बुरे कर्मों पर न्याय होगा। इब्राहीमी धर्मों की मान्यता है कि मरणोपरांत आत्मा कब्र में विश्राम करती है और आखिरी दिन ईश्‍वर के हुक्म से उठाई जाएगी और फिर उनका फैसला होगा, लेकिन हिन्दू धर्म के अनुसार ऐसा नहीं है।
 
 
पुनर्जन्म
हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। जन्म और मत्यु का यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।
 
मोक्ष प्राप्ति का रास्ता कठिन है। यह मौत से पहले मरकर देखने की प्रक्रिया है। वेद और उपनिषद कहते हैं कि शरीर छोड़ने के बाद भी तुम्हारे वे सारे कर्मों के क्रम जारी रहेंगे, जो तुम यहां रहते हुए करते रहे हों और जब अगला शरीर मिलेगा तो यदि तुमने दु:ख, चिंता, क्रोध और उत्तेजना को संचित किया है तो अगले जन्म में भी तुम्हें वही मिलेगा, क्यों‍कि यह आदत तुम्हारा स्वभाव बन गई है।
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श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 22वें श्लोक में कहा गया है- 'जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीवात्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है।' चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में कहा गया है- 'हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गए हैं। बस फर्क यह है कि मैं उन सबको जानता हूं, परंतु हे परंतप! तू उसे नहीं जानता।' 
 
जन्म चक्र:- पुराणों के अनुसार व्यक्ति की आत्मा प्रारंभ में अधोगति होकर पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में विचरण कर ऊपर उठती जाती है और अंत में वह मनुष्य वर्ग में प्रवेश करती है। मनुष्य अपने प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकता है। वहां से पतन होने के बाद वह फिर से मनुष्य वर्ग में गिर जाता है। यदि आपने अपने कर्मों से मनुष्य की चेतना के स्तर से खुद को नीचे गिरा लिया है तो आप फिर से किसी पक्षी या पशु की योनी में चले जाएंगे। यह क्रम चलता रहता है। अर्थात व्यक्ति नीचे गिरता या कर्मों से उपर उठता चला जाता है।
 
प्रारब्ध कर्म:- यही कारण है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार जीवन मिलता है और वह अपने कर्मों का फल भोगता रहता है। यही कर्मफल का सिद्धांत है। 'प्रारब्ध' का अर्थ ही है कि पूर्व जन्म अथवा पूर्वकाल में किए हुए अच्छे और बुरे कर्म जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो।
 
विशेषतया इसके 2 मुख्य भेद हैं कि संचित प्रारब्ध, जो पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप होता है और क्रियमान प्रारब्ध, जो इस जन्म में किए हुए कर्मों के फलस्वरूप होता है। इसके अलावा अनिच्छा प्रारब्ध, परेच्छा प्रारब्ध और स्वेच्छा प्रारब्ध नाम के 3 गौण भेद भी हैं। प्रारब्ध कर्मों के परिणाम को ही कुछ लोग भाग्य और किस्मत का नाम दे देते हैं। पूर्व जन्म और कर्मों के सिद्धांत को समझना जरूरी है।
 
इसे विस्तार से जानने के लिए आगे क्लिक करें:- क्या प्रारब्ध की धारणा से व्यक्ति अकर्मण्य बनता है?
 
 

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