एक कल्प के बाद प्रलय की शुरुआत!
हिन्दू धर्म अनुसार 'प्रलय' की धारणा
प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।
'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु था न आकाश, न मृत्यु थी और न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही एक था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से सांस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ नहीं था।'- ऋग्वेद (नासदीयसूक्त) 10-129
सभी धर्म और विज्ञान की अपेक्षा हिन्दू कालगणना विश्व की समयमापन की सबसे वृहत्तर इकाई या थ्योरी है। वेद और पुराण में संपूर्ण समय को संपूर्ण तरीके बांधा गया है। ऋषियों ने जलचर, थलचर, नभचर और पेड़, पौधे तथा पहाड़ों की आयु जानकर धरती की आयु को ज्ञात किया है। उसी तरह उन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड की आयु का मान निकाला है।
वेद अनुसार प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति की श्वासें नियुक्त है। जब तक श्वास चलेगी तब तक ही कोई वस्तु या व्यक्ति जिंदा रहेगा। वेद अनुसार जिंदा व्यक्ति ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड श्वास ले रहा है तभी तो चलायमान है। वायु ही है सभी की आयु। पेड़, पौधे, जल और जंगल सभी श्वास ले रहे हैं।
जो जन्मा है वह मरेगा- पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य, पितर और देवताओं की आयु भी नियुक्त है, उसी तरह समूचे ब्रह्मांड की भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चंद्र सभी की आयु है। छोटी-मोटी प्रलय और उत्पत्ति तो चलती ही रहती है। किंतु जब महाप्रलय होता है तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड वायु की शक्ति से एक ही जगह खिंचाकर एकत्रित हो भस्मीभूत हो जाता है। तब प्रकृति अणु वाली हो जाती है अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणुरूप में बदल जाती है।
श्वास-श्वास बनता वर्ष : वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है।
एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं।- सूर्य सिद्धांत
कब होगी सृष्टि में प्रलय : समय का सबसे छोटा मापन तृसरेणु होता है। उससे बड़ा त्रुटि। उससे बड़ा वेध। उससे बड़ा लावा। उससे बड़ा निमेष। उससे बड़ा क्षण। उससे बड़ा काष्ठा। उससे बड़ा लघु। उससे बड़ा दण्ड। उससे बड़ा मुहूर्त। उससे बड़ा याम। उससे बड़ा प्रहर। प्रहर से बड़ा दिवस। दिवस से बड़ा अहोरात्रम। उससे बड़ा पक्ष (कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष)। पक्ष से बड़ा मास। दो मास मिलकर एक ऋतु। ऋतु से बड़ा अयन। अयन से बड़ा वर्ष। वर्ष से बड़ा दिव्य वर्ष (देवताओं का वर्ष)। उससे बड़ा युग। चार युग मिलाकर महायुग। महायुग से बढ़ा मन्वन्तर। उससे भी बढ़ा कल्प और सबसे बड़ा ब्रह्मा का दिन और आयु।
प्रत्येक कल्प के अंत में एक प्रलय होता है, जबकि धरती पर से जीवन समाप्त हो जाता है। एक कल्प को चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्षों के बराबर का माना गया है। यह ब्रह्मा के एक दिवस या एक सहस्र महायुग (चार युगों के अनेक चक्र) के बराबर होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की आयु अनुमानत: तेरह अरब वर्ष बताई है। चार अरब वर्ष पूर्व जीवन की उत्पत्ति मानी गई है।
दो कल्पों को मिलाकर ब्रह्मा की एक दिवस और रात्रि मानी गई है। यानी 259,200,000,000 वर्ष। ब्रह्मा के बारह मास से उनका एक वर्ष बनता है और सौ वर्ष ब्रह्मा की आयु होती है।
इस तरह ब्रह्मा के 15 वर्ष व्यतीत होने पर एक नैमित्तिक प्रलय होता है- फिर ब्रह्मा के 100 वर्ष व्यतीत होने पर तीसरा प्रलय होता है- जिसे द्विपार्थ कहा गया है। ब्रह्मा के 50 वर्ष को एक परार्ध कहा गया है। इस तरह दो परार्ध यानी एक महाकल्प। ब्रह्मा का एक कल्प पूरा होने पर प्रकृति, शिव और विष्णु की एक पलक गिर जाती है। अर्थात उनका एक क्षण पूरा हुआ, तब तीसरे प्रलय द्विपार्थ में मृत्युलोक में प्रलय शुरू हो जाता है।
फिर जब प्रकृति, विष्णु, शिव आदि की एक सहस्रबार पलकें गिर जाती हैं तब एक दंड पूरा माना गया है। ऐसे सौ दंडों का एक दिन 'प्रकृति' का एक दिन माना जाता है- तब चौथा प्रलय 'प्राकृत प्रलय' होता है- जब प्रकृति उस ईश्वर (ब्रह्म) में लीन हो जाती है।
अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड भस्म होकर पुन: पूर्व की अवस्था में हो जाता है, जबकि सिर्फ ईश्वर ही विद्यमान रह जाते हैं। न ग्रह होते हैं, न नक्षत्र, न अग्नि, न जल, न वायु, न आकाश और न जीवन। अनंत काल के बाद पुन: सृष्टि प्रारंभ होती है।
इसे इस तरह भी समझा जा सकता है-
मनुष्य का एक मास, पितरों का एक दिन रात। मनुष्य का एक वर्ष देवता का एक दिन रात। मनुष्य के 30 वर्ष देवता का एक मास। मनुष्य के 360 वर्ष देवता का एक वर्ष (दिव्य वर्ष)। मनुष्य के 432000 वर्ष। देवताओं के 1200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलियु। मनुष्य के 864000 वर्ष देवताओं के 2400 दिव्य वर्ष अर्थात एक द्वापर युग। मनुष्य के 1296000 वर्ष देवताओं के 3600 दिव्य वर्ष अर्थात 1 त्रेता युग। मनुष्य के 1728000 वर्ष अर्थात देवताओं के 4800 दिव्य वर्ष अर्थात एक सतयुग। इस सबका कुल योग मानव के 4320000 वर्ष अर्थात 12000 दिव्य वर्ष अथात एक महायुग या एक चतुर्युगी चक्र।
इसी प्रकार 71 युगों का एक मनवन्तर होता है जिसका मान 306720000 मानव वर्ष होता है। प्रत्येक मनवंतर के अंत में सतयुग के बराब अर्थात 1728000 वर्ष की संध्या होती है। एक मनवन्तर के मान 306720000 वर्ष में संध्या के मान 728000 वर्ष के योग करने पर 308448000 मानव वर्ष होते हैं, जो संधि सहित एक मनवन्तर के मानव वर्ष है। अर्थात संधियुक्त एक मनवन्तर में 308448000 वर्ष होते हैं।
ऐसे ही जब 14 मनवन्तर व्यतीय होते हैं तब एक कल्प पूरा होता है। यही एक कल्प ब्रह्माजी के एक दिन के बराबर होता है।...अगले पन्नें पर पढ़ें चार तरह की प्रलय के बारे में...
चार प्रलय : मूलत: प्रलय चार तरह की होती है- पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना और दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाता और तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे, पुन: शून्यावस्था में हो जाना।
हिन्दू शास्त्रों में मूल रूप से प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- 1.नित्य, 2.नैमित्तिक, 3.द्विपार्थ और 4.प्राकृत। एक अन्य पौराणिक गणना अनुसार यह क्रम है नित्य, नैमित्तक आत्यन्तिक और प्राकृतिक प्रलय।
1.नित्य प्रलय : वेदांत के अनुसार जीवों की नित्य होती रहने वाली मृत्यु को नित्य प्रलय कहते हैं। जो जन्म लेते हैं उनकी प्रतिदिन की मृत्यु अर्थात प्रतिपल सृष्टी में जन्म और मृत्य का चक्र चलता रहता है।
2.आत्यन्तिक प्रलय : आत्यन्तिक प्रलय योगीजनों के ज्ञान के द्वारा ब्रह्म में लीन हो जाने को कहते हैं। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर उत्पत्ति और प्रलय चक्र से बाहर निकल जाना ही आत्यन्तिक प्रलय है।
3.नैमित्तिक प्रलय : वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होने वाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश हो जाना नैमित्तिक प्रलय कहलाता है। पुराणों अनुसार जब ब्रह्मा का एक दिन समाप्त होता है, तब विश्व का नाश हो जाता है। एक कल्प को ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है। इसी प्रलय में धरती या अन्य ग्रहों से जीवन नष्ट हो जाता है।
नैमत्तिक प्रलयकाल के दौरान कल्प के अंत में आकाश से सूर्य की आग बरसती है। इनकी भयंकर तपन से सम्पूर्ण जलराशि सूख जाती है। समस्त जगत जलकर नष्ट हो जाता है। इसके बाद संवर्तक नाम का मेघ अन्य मेघों के साथ सौ वर्षों तक बरसता है। वायु अत्यन्त तेज गति से सौ वर्ष तक चलती है।
4.प्राकृत प्रलय : ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। वेदांत के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ।
पुराणों अनुसार प्राकृतिक प्रलय ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर अर्थात ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है। महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है।
उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं। अगले अंक में पढ़ें...प्रलय होगा तब क्या होगा...कैसा होगा...।
- संदर्भ वेद, पुराण और महाभारत