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चंद्रगुप्त का हेलेन से हुआ जब विवाह...

गतांक से आगे...

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तभी चाणक्य ने कहा- ये अमात्य राक्षस के सैनिक हैं, जो नीचे तहखाने में और किसी गुप्त द्वार या सुरंग में छिपे थे। चंद्रगुप्त को वास्तविकता का भान होते ही उन्हें ग्लानि होने लगी। फिर चाणक्य ने कहा- राजा को हर परिस्थिति में शांत रहना चाहिए चंद्रगुप्त। जब भी राजा अपना विवेक खो बैठता है तभी उसकी और राष्ट्र की क्षति हो जाती है। ...अब आगे से
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प्रहरी के आदेश के बाद महल में गुप्तचर लगभग दौड़ता हुआ आया और चाणक्य और चंद्रगुप्त के समक्ष अभिवादन कर समाचार सुनाया- राजन! सिंधु नदी के पास सेल्यूकस एक बड़ी सेना लेकर आ पहुंचा है। इस बार उसके साथ ईरान और अरब के राजा भी शामिल हैं। भारत के कुछ राजाओं ने उनकी अधीनता पहले से ही स्वीकार कर ली।

यह सुनते ही चाणक्य ने चंद्रगुप्त की ओर उन्मुख होकर कहा- लगता है कि सेल्यूकस अपनी पराजय का बदला लेने के लिए फिर से आ धमका है। चंद्रगुप्त तुम एक बड़ी सेना लेकर जाओ और उसे झेलम के पार ही रोको। मार्ग के सभी राजाओं को युद्ध में शामिल होने का न्योता देते जाओ।

आज्ञा सुनते ही चंद्रगुप्त ने सेनापतियों की एक बैठक बुलाने का आदेश दिया और गुप्त कक्ष से बाहर निकल गया। चंद्रगुप्त के अपने लाव-लश्कर के साथ समरभूमि के लिए निकला पड़ा।

राक्षस की गुप्त मंत्रणा पुरु से... अगले पन्ने पर


धनानंद का अमात्य राक्षस और कैकेय नरेश पुरु एक गूढ़ मंत्रणा में लीन थे। राक्षस ने पुरु से कहा- महाराज आप विश्वास रखिए यह एक ब्राह्मण का वचन है। मैं आपको कभी धोखा नहीं दे सकता। मैं चाणक्य की तरह नहीं हूं। अपने राजा और राज्य के प्रति अंत तक निष्ठावान रहा और आज भी हूं। मगध विजय के पश्चात कुमार मलय ही मगध के अगले सम्राट होंगे। मेरा विश्वास कीजिए।

पुरु- मैं आप पर अविश्वास नहीं कर रहा किंतु यदि चाणक्य को यह भेद मालूम पड़ गया तो? वह खतरनाक ब्राह्मण न जाने कौन सी विद्या जानता है कि वह सब कुछ पहले से ही जान जाता है। शास्त्रों में लिखा है कि काले ब्राह्मण से कभी बैर नहीं पालना चाहिए और यदि पाल लो तो फिर बचने के सारे इंतजाम करके रखो अन्यथा...। पुरु किसी अनहोनी की आशंका में घिर गए।

राक्षस ने पुरु को फिर सांत्वनाभरे शब्दों में कहा- राजन! हम सचाई के मार्ग पर हैं। हमें लक्ष्य के अलावा और किसी प्रकार के भय और कुशंका को नहीं पालना चाहिए। राजा होकर आप एक छली ब्राह्मण से डर रहे हैं? महाराज इस तरह हारकर बैठना उचित नहीं। मुझे देखिए उसने हर बार पराजित किया लेकिन मैंने हार नहीं मानी है।

कुछ सोचने-समझने के बाद पुरु ने कहा- ठीक है मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है। आज से आप हमारे राज्य के मंत्री और मैं मलय कुमार को आपके हवाले करता हूं, क्योंकि अब इस साम्राज्य का वही उत्तराधिकारी है। राक्षस ने प्रसन्न मुद्रा में राजा पुरु का आभार व्यक्त किया तभी...

अगले पन्ने पर राक्षस और पुरु के कान खड़े हो गए...


राक्षस ने प्रसन्न मुद्रा में राजा पुरु का आभार व्यक्त किया तभी एक घायल सैनिक हांफते हुए उनके पास आया और कहने लगा- राजन! चंद्रगुप्त ने युद्ध में अचानक पासा पलट दिया है और उसने सेल्यूकस को बंदी बना लिया है और...

और क्या- राक्षस ने आवेश में आकर पूछा।

और उन्होंने चाणक्य की आज्ञानुसार सभी नियमों का उल्लंघन करते हुए सेल्यूकस की सहायता करने वाले राजा आम्भी और उनके पुत्र को मौत के घाट उतार दिया है।

यह सुनकर राक्षस और पुरु कांपने लगे और इधर-उधर टहलकर कुछ सोचने लगे। पुरु ने कहा- अमात्य राक्षस लगता है कि चाणक्य को हमारे षड्यंत्र का पता चल गया है। अब क्या होगा।

घायल सेनानायक ने बताया- मुझे भी लगता है राजन कि चंद्रगुप्त को अब हम पर भी अविश्‍वास हो गया है। सेनानायक की यह बात सुनकर पुरु राज और घबरा गए।

राक्षस ने कहा- आप घबराइए मत राजन। हम अपनी शक्ति एकत्र करेंगे। यदि चंद्रगुप्त ने पंचनन---? के ऊपर हमले का साहस किया तो उसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। आप तुरंत कुलूत के राजा चित्रवर्मा, मलयाधिपति सिंहनाद, कश्मीर नरेश पुष्करनयन, सिंधुपति सिंधुसैन आदि अपने सभी मित्र राजाओं को पत्र भेजकर उनकी सेनाओं को युद्ध के लिए तैयार कराइए। हम चंद्रगुप्त को धूल चटा देंगे।

फिर राक्षस अपने विश्‍वस्त गुप्तचर विराध----? और चाणक्य की कैद से छूटकर आए जीवाक्ष और जीवाक्ष के एक परिचित के साथ चाणक्य और चंद्रगुप्त को जीतने की नीति पर चर्चा करने लगा।

जिस व्यक्ति ने जीवाक्ष को चाणक्य की कैद से छुड़ाया था वह चाणक्य का विश्वस्त गुप्तचर था। उसने चाणक्य तक यह खबर पहुंचाई थी कि पुरु राज अमात्य राक्षस और अन्य राजाओं के साथ मिलकर पाटलीपुत्र पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं।

बंदी सेल्यूकस की पुत्री से चंद्रगुप्त का विवाह...


सभी राजदरबारी अनुशासित दरबार में बैठे थे तभी बिगुल बज उठा- राजाधिराज मगधाधिपति सम्राट चंद्रगुप्त पधार रहे हैं... सभी दरबारी खड़े हो गए।

चंद्रगुप्त ने दरबार में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठ गया। चाणक्य भी अपने आसन पर बैठ गए। फिर चाणक्य ने बंदी सेल्यूकस को ससम्मान दरबार में प्रस्तुत करने का आदेश दिया।

कुछ देर बाद ही सेल्यूकस को सभा में प्रवेश किया। उसकी गर्दन न तो झुकी हुई थी और न ही तनी हुई। उसे किसी भी प्रकार की हथकड़ियां नहीं पहनाई गई थीं। उसके आसपास दो सैनिक चल रहे थे। चाणक्य ने स्वयं खड़े होकर सेल्यूकस का स्वागत करते हुए कहा- यूनान के महान सम्राट का आर्यावर्त के मगध साम्राज्य में स्वागत है।

सेल्यूकस ने इस बात को व्यंग्य समझते हुए कहा- क्या बंदियों और अतिथियों को इसी तरह आपका देश लज्जित करता है? आपके सामने में महज एक बंदी हूं, सम्राट नहीं।

चाणक्य ने अपनत्व से यूनानी सम्राट को गले लगाते हुए कहा- भारतवासी अतिथि को भगवान मानते हैं सम्राट। और जहां तक बंदी होने का प्रश्न है तो हमने कभी आपको शत्रु नहीं समझा, आपने ही हमे शत्रु समझकर आक्रमण किया। हम तो आपसे मैत्रीभाव रखते हैं यूनानी सम्राट। हम तो यूनान और भारत के संबंध प्रगाढ़ करना चाहते हैं इसीलिए आपको मैत्रीभाव से यहां बुलाया गया है।

सेल्यूकस ने कहा- आप जानते हैं मित्रवर कि एक वीर पुरुष अपने प्राणों की भीख नहीं मांगता। आप चाहते हैं कि मैं अपने प्राणों की रक्षा के लिए आपका मित्र बन जाऊं?

चाणक्य- नहीं सम्राट। यदि हमें आपके प्राण प्यारे नहीं होते तो हम युद्ध में ही आपका वध कर देते। हम तो हृदय से आपसे मित्रता चाहते हैं और जहां तक सवाल जीत का है तो हम भी आपसे पराजित हो जाते तब आप क्या करते?

चाणक्य का यह उत्तर सुनकर सेल्यूकस सोच में पड़ गया। फिर चाणक्य ने कहा- जय-पराजय तो चलती रहती है सम्राट, लेकिन किसी अच्छे उद्देश्य के लिए हार जाना भी हितकर है और बुरे हित के लिए जीत जाने से हमारी आने वाली ‍पीढ़ियां हमें श्राप देती रहती है। आपको और हमको मिलकर इस धरती का इतिहास बदलना है। वर्षों से चली आ रही आक्रमण की नीति को छोड़कर कुछ नया सोचना है।

सेल्यूकस- लेकिन महात्मन् आप एक पराजित योद्धा से कैसे मित्रता की अपेक्षा कर सकते हैं। जब मुझे पहली बार छोड़ा गया तो मैं दूसरी बार फिर सेना लेकर आ गया। अब भी क्या आपको लगता नहीं कि मैं मुक्त होने के बाद फिर से सेना लेकर बदला लेने आ जाऊंगा?

चाणक्य ने कहा- आओ! कुछ अंतरंग बातें करते हैं। ऐसा कहकर चाणक्य सेल्यूकस को एक गुप्त कक्ष में ले गए और फिर कहने लगे- यूनान सम्राट! हम पर्याप्त विचार-विमर्श और सोच-समझकर यह बात आपके समक्ष रख रहे हैं। इसे स्वीकार करना या नहीं करना आपकी स्वतंत्रता है। हम आपको वचन देते हैं कि आप अस्वीकर करेंगे तब भी हम आपको ससम्मान आपके राज्य में छोड़कर आएंगे।

सेल्यूकस ने कहा- कहिए?

चाणक्य- मैं पूरी जिम्मेदारी से इस बात का खुलासा करता हूं कि आपकी पुत्री हेलेन और सम्राट चंद्रगुप्त दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं। यदि आपकी अनुमति हो तो हम दोनों के विवाह का प्रबंध कर देते हैं। यदि आपको लगता है कि यह सच नहीं है तो आप अपनी पुत्री से इस विषय में चर्चा कर लें। आपका जो भी निर्णय होगा, उसका हम स्वागत करेंगे।

सेल्यूकस इस दूरदर्शी प्रस्ताव को सुनकर सोच में पड़ गया और तब चाणक्य ने कहा- राजन! आपके पास सोचने का बहुत वक्त है आप अतिथिगृह में जाकर आराम करें।

अगले पन्ने पर... संपूर्ण मगध में हेलेन और चंद्रगुप्त के विवाह का समाचार जब फैला तो...


इधर, हेलन ने अपने पिता सेल्यूकस से कहा- यह सही है कि चंद्रगुप्त के प्रति मुझमें अनुराग हैं किंतु पिताजी धर्म इस संबंध में बाधक तो नहीं होगा?

बेटी हमारा धर्म तो इस संबंध में बाधक नहीं होगा किंतु यहां का आर्य धर्म क्या इसकी इजाजत देगा। मैं यही सोच रहा हूं कि क्या यहां का राज्य तुम्हें बहू के रूप में स्वीकार करेगा। यदि नहीं करेगा तो आने वाली संतानों का भविष्य क्या होगा?

सेल्यूकस इस विवाह के राजी थे तो उन्होंने चाणक्य के समक्ष अपनी शंकाएं जाहिर कीं।

चाणक्य ने कहा- राजन मैंने पूरे नगर में मुनादी करा दी है कि जो भी इस विवाह के विरुद्ध हो वह अपने तर्क लेकर राजदरबार में तीन दिन के भीतर उपस्थित होकर अपनी आपत्ति दर्ज कराए। उसकी आपत्ति पर ध्यान दिया जाएगा।

घोषणा के बाद राज्य में विरोध के स्वर बुलंद हो गए... अगले पन्ने पर...


तीन दिन बाद राजदरबार में विद्वान पंडितों की भीड़ इकट्डी हो गई थी। कुछ पंडित लोगों को अपना तर्क समझा रहे थे। विचित्र-सा शोर था तभी चाणक्य ने सभा प्रांगण में प्रवेश किया और सभी तरह का शोर बंद हो गया। चाणक्य ने एक तीक्ष्ण दृष्टि सभी पर घुमाई और फिर वे स्वयं आसन पर जाकर बैठ गए।

बैठकर उन्होंने आगंतुकों को संबोधित करते हुए कहा- आप सभी आदरपूर्वक बैठ जाएं। ...इस सभा में पधारे सभी विद्वानों को मेरा नमस्कार। आप इस सभा में अपनी आपत्ति दर्ज कराने आए हैं। आप निर्भय होकर तर्कसम्मत अपनी बातें रखें।

कोई भी पंडित चाणक्य के समक्ष बोलने की हिम्मत नहीं जुटा रहा था। तब एक ब्राह्मण खड़ा हुआ और बहुत ही साहस जुटाकर कहने लगा- मान्यवर! मैं आपसे पहले पूछना चाहता हूं कि क्या मगधाधिपति का विवाह यूनान की राजकुमारी हेलेन से किया जा रहा है।

चाणक्य ने उस ब्राह्मण की आंखों में आंखें डालकर कहा- हां...।

ब्राह्मण बोला- यह अधर्म है, इससे वर्णसंकर संतान होगी। आप तो विद्वान हैं। आप जानते ही हैं कि धर्म इसकी स्वीकृति नहीं देता। ...ब्राह्मण की सभी ब्राह्मणों ने एक साथ हां में हां भरी।

चाणक्य ने भृकुटि तानते हुए कहा- चाणक्य के होते हुए मगध में धर्म और नीति के विरुद्ध कुछ भी नहीं हो सकता। मैंने सोच-समझकर ही यह निर्णय लिया है। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि धर्म का अर्थ विनाश है क्या? ...धर्म से ही मानव का कल्याण होता है। धर्म हृदय के मिलन को तोड़ने का प्रयास नहीं करता। धर्म जोड़ने का कार्य करता है, तोड़ने का नहीं। यदि ‍दो लोग आपस में प्रेम करते हैं तो हमारा अधिकार नहीं है कि हम उन्हें धर्म के नाम पर विरह में जीवन जीने के लिए छोड़ दें। यूनान की राजकुमारी हमारे सम्राट चंद्रगुप्त से प्रेम करती है तो इसमें उसका दोष क्या?

...कुछ क्षण रुकने के बाद चाणक्य ने फिर कहा- आप सोचिए यदि धरती के दो विशाल भू-भाग आपस में जुड़ जाएंगे तो भारत और शक्तिशाली ही होगा। हमारी संस्कृति और धर्म का विस्तार ही होगा। हम उनसे कुछ सीखेंगे और वो हमसे कुछ सीखेंगे। इस तरह एक नए युग की शुरुआत होगी।

चाणक्य यह बोल ही रहे थे कि एक पंडित क्रोधित होकर उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- शत्रु की पुत्री और वह भी विजातीय... गुरुवर चाणक्य, यह विवाह किसी भी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा।

चाणक्य भी क्रोध में आ गए- हां तो महानुभाव! आपको यह विवाह स्वीकार नहीं है?...क्या आप इस विवाह से जो शुभ परिणाम निकलेंगे उससे आप परिचत हैं। आप सभी ने सिर्फ यही देखा कि वह एक विजातीय है, वर्णसंकर होगा। लेकिन क्या आपने राज्य के हित और इसके शुभ परिणामों के बारे में सोचा? मान्यवर, राज्य को सिर्फ शांति और प्रेम ही आगे बढ़ा सकता है।

चाणक्य ने रुककर सभी की ओर देखते हुए कहा- यहां कितने लोग धर्मनिष्ठ हैं यह मैं अच्छी तरह जानता हूं। आप जितने भी पंडित और विद्वान लोग हैं आप चाहते तो मैं आपकी पत्रिका पढूं। आपकी जन्मकुंडली मेरे पास है। आप आज्ञा दे तो मैं उसे सभी के समक्ष पढ़कर सुना दूं।

चाणक्य की यह बात सुनकर सभी पंडित शांत हो गए और सभी चाणक्य के तर्क से सहमत होते दिखाई देने का ढोंग करने लगे। सभी मन ही मन सोच रहे थे कि यह हमारी जन्मकुंडली पढ़ने लगा तो पोल खोल देगा, क्योंकि यह विद्वान ज्योतिष भी है।

सभी पंडितों ने एक स्वर में चाणक्य से कहा- नहीं महात्मन, हमने सोचा कि कहीं इस विवाह से मगध का बुरा तो नहीं होगा, किंतु आपके तर्क से हम सहमत हैं और अब हम निश्‍चिंत हैं।

इस तरह चंद्रगुप्त और हेलेन के विवाह का मार्ग खुल गया और राज्य में धूमधाम में उनका विवाह हुआ और चाणक्य की दूरदर्शिता से यूनान और भारत के बीच बार-बार के युद्ध के बजाय मैत्री, शांति और प्रगति का मार्ग खुला।

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