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इन 10 हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था मुस्लिम आक्रांताओं ने

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भारत में 7वीं सदी के प्रारंभ में मुस्लिम आक्रांताओं का आक्रमण प्रारंभ हुआ था। यहां उन्होंने सोना-चांदी आदि दौलत लूटने और इस्लामिक शासन की स्थापना करने के उद्देश्य से आक्रमण किए। 7वीं से लेकर 16वीं सदी तक लगातार हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को तोड़ा और लूटा गया। उनमें से कुछ ऐसे थे, जो कि विशालतम होने के साथ ही भारतीय अस्मिता, पहचान और सम्मान से जुड़े थे। ऐसे भी कई मंदिरों को हमने इस लिस्ट में शामिल नहीं किया है। फिर भी चुनिंदा मंदिरों के इतिहास के बारे में आपके लिए यहां जानकारी जुटाई गई है।
 
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मार्तण्ड सूर्य मंदिर, अनंतनाग, कश्मीर
कश्मीर घाटी में लगभग 8वीं शताब्दी में बने ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्ड सूर्य मंदिर को मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन (Sikandar Butshikan) ने तुड़वाया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर को कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपाडा ने 725-61 ईस्वी के दौरान बनवाया था।
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यह कश्मीर के पुराने मंदिरों में शुमार होता है और श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले में है। यह मंदिर अनंतनाग से पहलगाम के बीच मार्तण्ड नाम के स्थान पर स्थित एक पठार पर है जिसे मटन कहा जाता है।
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मु‍स्लिम इतिहासकार हसन ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ कश्मीर' में कश्मीरी जनता का धर्मांतरण किए जाने का जिक्र इस तरह किया है, 'सुल्तान बुतशिकन (सन् 1393) ने पंडितों को सबसे ज्यादा दबाया। उसने 3 खिर्बार (7 मन) जनेऊ को इकट्ठा किया था जिसका मतलब है कि इतने पंडितों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। हजरत अमीर कबीर (तत्कालीन धार्मिक नेता) ने ये सब अपनी आंखों से देखा। ...उसने मंदिर नष्ट किया और बेरहमी से कत्लेआम किया। -व्यथित जम्मू-कश्मीर, लेखक नरेन्द्र सहगल।
 
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मोढेरा सूर्य मंदिर, पाटन, गुजरात
यह मंदिर गुजरात के अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जबकि पाटन नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण की ओर 'मोढेरा' नामक गांव में नदी के तट पर प्रतिष्ठित है। इसका निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में करवाया था। मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। यहां पर उसने लूटपाट की और मंदिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया।
 
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काशी विश्‍वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। 1100 ईसा पूर्व राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने पुन: जीर्णोद्धार करवाया था। इस मंदिर को 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया।
 
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पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
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डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तईद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है।

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औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तरप्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण हैं।
 
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।

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1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
 
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

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इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्पतीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देवक्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर, मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।
 
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कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा, उत्तर प्रदेश
मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है और उसी जन्मभूमि के आधे हिस्से पर बनी है ईदगाह। औरंगजेब ने 1660 में मथुरा में कृष्ण मंदिर को तुड़वाकर ईदगाह बनवाई थी। जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, वहां पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था।

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इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
 
ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है। 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ। 
 
इस ईदगाह के पीछे ही महामना पं. मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से पुन: एक मंदिर स्थापित किया गया है, लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है, क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।
 
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राम जन्मभूमि, अयोध्या, उत्तर प्रदेश
भगवान राम की पवित्र नगरी अयोध्या हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान राम का जन्म हुआ था। यह राम जन्मभूमि है। राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। आधुनिक शोधानुसार भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था।
 
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इतिहासकारों के अनुसार 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था। उसने बर्बर तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम कर अपनी सत्ता कायम की थी। मंदिर तोड़ते वक्त 10,000 से ज्यादा हिन्दू उसकी रक्षा में मारे गए थे। 
 
यह विवाद 1949 का नहीं है जबकि बाबरी ढांचे के गुम्बद तले कुछ लोगों ने मूर्ति स्थापित कर दी थी। यह विवाद तब (1992) का भी नहीं है जबकि भारी भीड़ ने विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया था। वस्तुत: यह विवाद 1528 ईस्वी का है, जब एक मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया गया।

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दूसरे शब्दों में विवाद का मूल 1528 की घटना में है, जबकि 10 हजार से ज्यादा हिन्दू शहीद हो गए थे। फैसला वस्तुत: 1528 की घटना का होना है, न कि 1949 या 1992 की घटना का। 1949 और 1992 की घटनाएं 1528 की घटना से उत्पन्न हुए शताब्दियों के संघर्ष के बीच घटी तमाम घटनाओं के बीच की मात्र 2 घटनाएं हैं, क्योंकि विवाद अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और फैसला कोर्ट को करना है।
 
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सोमनाथ मंदिर, काठियावाड़, गुजरात
गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों से एक स्थापित है। पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम 'सोमनाथ' हो गया।

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सर्वप्रथम इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।
 
इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्‍थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।

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महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
 
सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्‍फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया।

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बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।

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भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया और 1ली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
 
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हम्पी के मंदिर, हम्पी डम्पी, कर्नाटक
हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगरम् साम्राज्य की राजधानी था। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा 'विश्व विरासत स्थलों' की सूची में भी शामिल है। यहां दुनिया के सबसे बेहतरीन और विशालकाय मंदिर बने थे, जो अब खंडहर में बदल चुके हैं। यह माना जाता है कि एक समय में हम्पी रोम से भी समृद्ध नगर था। यहां मंदिरों की खूबसूरत श्रृंखला है इसलिए इसे 'मंदिरों का शहर' भी कहा जाता है।

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कृष्णदेव राय ने 1509 से 1529 के बीच हम्पी में शासन किया था। विजयनगरम् साम्राज्य के अंतर्गत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के राज्य आते थे। कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद इस विशाल साम्राज्य को बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में क्रूरतम हमला करके नष्ट कर दिया। भयंकर लूटपाट और कत्लेआम हुआ और संपूर्ण शहर को खंडहर और लाशों के ढेर में बदल दिया गया। यह इतिहास का सबसे क्रूरतम हमला था, जैसा कि दिल्ली में नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली ने क्रूरतम हमला किया था।
 
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रुद्र महालय, पाटन, गुजरात
गुजरात के पाटन जिले के सिद्धपुर में रुद्र महालय स्थित है। सरस्वती नदी के तट पर बसा सिद्धपुर एक प्राचीन नगर है। इस मंदिर को 943 ईस्वी में मूलाराज सोलंकी ने बनवाना प्रारंभ किया था। 1140 ईस्वी में सिद्धराज जयसिंह के काल में निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। वर्ष 1094 में सिद्धराज ने रुद्र महालय का विस्तार करके 'श्रीस्थल' का 'सिद्धपुर' नामकरण किया था।

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1410-1444 के दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने इसका कई बार विध्वंस करवाया और उसके बाद अहमद शाह ने इसे तुड़वाया था। विभिन्न आततायी आक्रमणकारी लुटेरे बादशाहों ने 3 बार इसे तोड़ा और लूटा। इसके बाद एक भाग में मस्जिद बना दी। इसके एक भाग को आदिलगंज (बाजार) का रूप दिया। इस बारे में वहां फारसी ओर देवनागरी में शिलालेख हैं। वर्तमान में रुद्रमहल के पूर्व विभाग के तोरण द्वार, चार शिव मंदिर और ध्वस्त सूर्य कुंड हैं। यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।
 
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मदन मोहन मंदिर, वृंदावन, उत्तर प्रदेश
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन नगर में वैष्णव संप्रदाय का मदन मोहन नामक मंदिर स्थित है। इसका निर्माण 1590 ई. से 1627 ई. के बीच मुल्तान के रामदास खत्री या कपूरी द्वारा करवाया गया था। भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम मदन मोहन भी है। भगवान मदन गोपाल की मूल प्रतिमा आज इस मंदिर में नहीं है। मुगल शासन के दौरान इसे राजस्थान स्थानांतरित कर दिया गया था। आज मंदिर में उस प्रतिमा की प्रतिकृति की पूजा की जाती है, जबकि मूल प्रतिमा आज भी राजस्थान के कारौली में है, क्योंकि औरंगजेब काल में इस मंदिर को तोड़ दिया गया था।

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1819 ईस्वी में नंदलाल वासु ने इसे पुन: बनवाया था। दूसरे प्राचीन निर्माणों की तुलना में यह मंदिर थोड़ा छोटा है, लेकिन इसमें की गई नक्काशी बेहद खूबसूरत है। इसका रंग लाल है और यह ऊंचा, लेकिन संकरा है। हालांकि इसे देखकर आपको भव्यता और दिव्यता का अहसास जरूर होगा।
 
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मीनाक्षी मंदिर, मदुरै, तमिलनाडु
मीनाक्षी मंदिर तमिलनाडु राज्य के मदुरै शहर में स्थित एक भव्य, दिव्य और प्रसिद्ध मंदिर है। मीनाक्षी मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती, जो मीनाक्षी के नाम से जानी जाती थीं, को समर्पित है। यह मंदिर 2,500 साल पुराने शहर मदुराई या मदुरै का दिल और जीवनरेखा है। यहां स्थित यह मंदिर बहुत ही प्राचीन था। कहते हैं कि सर्वप्रथम इस मंदिर की स्थापना राजा इन्द्र ने की थी। हिन्दू संत थिरुग्ननासम्बंदर ने इस मंदिर का वर्णन 7वीं शताब्दी से पहले ही कर दिया था। प्राचीन पांडियन राजा मंदिर निर्माण के लिए लोगों से कर (टैक्स) की वसूली करते थे।
 
 
असल में इस मंदिर का निर्माण 6ठी शताब्दी में कुमारी कंदम के उत्तरजीवी द्वारा किया गया था। कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी में मुगल मुस्लिम कमांडर मलिक काफूर ने मंदिर को तोड़ा और लूटा था। वो मंदिर से मूल्यवान आभूषण और रत्न लूटकर ले गया था। इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप को 1623 और 1655 ईस्वी के बीच बनाया गया था। बाद में 16वीं शताब्दी में ही नायक शासक विश्वनाथ नायकर द्वारा इसे पुनर्निर्मित करवाया गया था। विश्वनाथ नायक ने ही इसे शिल्प शास्त्र के अनुसार पुन: बनवाया था।

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