Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

रहस्यमयी 6 जन्म, जिन पर से उठ गया है पर्दा!

Advertiesment
हमें फॉलो करें रहस्यमयी 6 जन्म, जिन पर से उठ गया है पर्दा!
रामायण, महाभारत और अन्य हिन्दू शास्त्रों में हमें ऐसी ऐसी जन्मकथाएं पढ़ने को मिलती हैं जिन पर सहज ही विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होता है। बहुत से लोग इसे काल्पनिक मानकर खारिज कर देते हैं। 
हालांकि तार्किक रूप से जो बातें हमारी बुद्धि को सूट नहीं करतीं तो इसका मतलब यह नहीं कि वे गलत ही हों। यह संसार रहस्य और रोमांच से भरा पड़ा है। यहां कुछ भी असंभव नहीं है। दरअसल, प्राचीन भारत में आज के विज्ञान से कहीं ज्यादा उन्नत विज्ञान तकनीक थी। हम आपको बताना चाहते हैं ऐसे 6 रहस्यमय लोगों के जन्म के बारे में जिनके रहस्य पर से अब पर्दा लगभग उठ ही गया है।
 
अगले पन्ने पर पहला रहस्यमयी जन्म...
 

भगवान गणेशजी का जन्म : क्या किसी का सिर काटने के बाद उसके धड़ पर दूसरा सिर लगाया जा सकता है? जब भगवान शिव ने पार्वती-पुत्र गणेश का सिर काट दिया था, तब उन्होंने ही एक हाथी के सिर को उनके धड़ पर लगाकर उन्हें फिर से जीवित कर दिया था। शायद यह बात हमें असंभव लगे, लेकिन विज्ञान इस दिशा में काम कर रहा है।  हो सकता है कि प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी बहुत उन्नत रही हो। वैज्ञानिक कहते हैं कि मरने के बाद तीन दिनों तक मस्तिष्क की मृत्यु नहीं होती है। यदि इस काल के भीतर ही किसी तकनीक से व्यक्ति को जीवित किया जाए तो यह सबसे बड़ा चमत्कार हो सकता है।  अब सवाल यह उठता है कि मानव के धड़ पर हाथी का ही मस्तक क्यों? क्या हाथी का मस्तिष्क और मानव का मस्तिष्क एक समान होता है?
 
webdunia
आजकल शरीर का प्रत्येक अंग दूसरों के अंग से जोड़ दिया जाता है, मसलन कि किसी की किडनी खराब हो गई हो तो किडनी ट्रांसप्लांट कर दी जाती है। पैर टूट गया हो तो किसी दूसरे मृत व्यक्ति का पैर लगाया जा सकता है।
 
हाल ही में भारत में एक भारतीय के हाथ का प्रत्यारोपण किया गया। यह कारनामा किया केरल के कोच्चि के अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च सेंटर ने। भारत के इस पहले प्रत्यारोपण के बाद अफगानिस्तान के एक व्यक्ति के भी कटे हाथ में एक मृत भारतीय का कटा हाथ जोड़ दिया गया।
 
चेन्नई अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. एस. अय्यर के मुताबिक ट्रेन हादसे में 1 साल पहले केरल के उडूक्की जिले में रहने वाले 30 साल के मनु ने अपने दोनों हाथ खो दिए थे। इस मरीज को एक अन्य हादसे में ब्रेन डेड हो चुके 24 साल के बिनॉय का अंग लगाया गया है। बिनॉय केरल के ही एर्नाकुलम जिले के रहने वाले हैं। 'इंडियन साइंस जर्नल' में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ग्राहक और दाता दोनों का ब्लड ग्रुप और श्वेत रक्त कोशिकाएं एक हैं। 
 
गर्दन के बदले बदल दी गर्दन : पोलैंड के रहने वाले माइकल को वॉइस बॉक्‍स में कैंसर था। इसके चलते वह कुछ भी खा नहीं पाता था और उसे बोलने में भी तकलीफ होती थी, मगर डॉक्‍टरों ने उसके गले और गर्दन का सफल प्रत्‍यारोपण कर दिया। इसके चलते वह दुनिया का ऐसा तीसरा व्‍यक्‍ित बन गया है जिसका इस तरह का अनोखा ऑपरेशन किया गया है।
 
पोलैंड के डॉक्‍टरों ने उसके विंडपाइप, थ्रोट, थायरॉयड, मसल्‍स और त्‍वचा को एक डोनर से लेकर 37 वर्षीय माइकल में यह प्रत्‍यारोपण किया। प्रत्‍यारोपण टीम के प्रमुख डॉक्‍टर एडम मैसीजेवस्‍की ने बताया कि इससे पहले इसी तरह की दो सर्जरियां दुनिया में हो चुकी हैं, लेकिन वे काफी महंगी थीं। सुखद बात यह है कि 11 अप्रैल 2015 को इस सफल ऑपरेशन के बाद माइकल अब फुसफुसाने की जगह बोल सकते हैं। ऑपरेशन करीब 17 घंटे तक चला था।
 
अगले पन्ने पर दूसरा रहस्यमयी जन्म...
 

रामदूत हनुमानजी का जन्म : हनुमानजी का जन्म भी एक रहस्य ही है। उनको 'केसरीनंदन' कहा जाता है, तो दूसरी ओर 'पवनपुत्र'। इसके अलावा उनको भगवान शिव का अंश माना गया है। ऐसे में अब प्रश्न यह उठता है कि उनके पिता कौन थे? महाराज केसरी या पवनदेव या कि भगवान शिव? क्या ये तीनों ही उनके पिता नहीं हो सकते? लेकिन अब विज्ञान ने सच में यह कारनामा करके दिखा दिया है। विज्ञान की मदद से एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ है जिसके दो बाप हैं।
webdunia
कनाडा में दुनिया के पहले ऐसे बच्चे ने जन्म लिया है जिसके हकीकत में दो पिता हैं। दो बाप के इस बच्चे के जन्म की बाकायदा फोटोग्राफी भी की गई है जिन्हें फेसबुक पर शेयर किया गया है। इन फोटोज को अब तक 6 हजार से ज्यादा लाइक भी मिल चुके हैं।
 
5 जुलाई 2014 को 'डेली मेल' में छपी खबर के अनुसार मिलो नाम के इस दो बाप वाले बच्चे ने 27 जून 2014 को जन्म लिया है जिसकी फोटोग्राफी कैनेडियन फोटोग्राफर लिंडसे फोस्टर ने की है। इसके पिता बीजे ब्रोने और फ्रेंकाइन नेल्सल है, जो इसे पाकर बेहद खुश हैं।
 
दरअसल, ब्रोने और फ्रेंकाइन नेल्सन अच्छे मित्र हैं जिन्होंने अपना एक बच्चा पैदा करने की सोची। इसके लिए उन्होंने अपने गुणसूत्र किसी दूसरी महिला के गुणसूत्रों के साथ मिलाते हुए तीसरी एक अन्य महिला के गर्भाशय में इंजेक्ट करवाया जिससे यह बच्चा पैदा हुआ यानी इस बच्चे को पैदा करने में 2 बाप और 2 माताएं शामिल हैं, लेकिन इन दोनों महिलाओं का इससें कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि उन्होंने इसे सिर्फ दोनों बाप के लिए ही जन्म दिया है।
 
इससे पहले अमेरिकी जेनेटिक इंजीनियर्स ने चूहों पर यह सफल प्रयोग किया था। बायोलॉजी ऑफ रीप्रोडक्शन नाम के जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक्सास के वैज्ञानिकों ने नर चूहे के क्रोमोजोम (एक्सवाई) में कुछ स्टेम सेल मिलाने के बाद एक नया चूहा पैदा करने में कामयाबी हासिल कर ली। ये स्टेम सेल वयस्क सेल हैं जिनमें कुछ जेनेटिक इंजीनियरिंग की गई है।
 
अगले पन्ने पर तीसरा रहस्यमयी जन्म...
 

कौरवों का जन्म : कुछ अलग तरह के 10 मटकों में हुआ था कौरवों का जन्म। आज से 30 से 40 साल पहले बुद्धिजीवियों को यह बात स्वीकार करने में दिक्कत होती थी, लेकिन अब सोचा जा सकता है कि यह संभव हो सकता है कि ऋषि वेदव्यास के पास ऐसी कोई तकनीक रही होगी जिससे ये 100 बच्चे पैदा हो गए।
webdunia
महर्षि भारद्वाज मुनि का वीर्य किसी द्रोणी (यज्ञ कलश अथवा पर्वत की गुफा) में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे 'द्रोण' कहा गया। ऐसे भी ‍उल्लेख हैं कि भारद्वाज ने गंगा में स्नान करती घृताची को देखा और उसे देखकर वे आसक्त हो गए जिसके कारण उनका वीर्य स्खलन हो गया जिसे उन्होंने द्रोण (यज्ञ कलश) में रख दिया। बाद में उससे उत्पन्न बालक 'द्रोण' कहलाया। द्रोण का जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में बताया जाता है जिसे हम देहराद्रोण (मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे।
 
'टेस्ट ट्यूब बेबी' के जन्म ने अब यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हो सकता है कि कौरवों का जन्म कुछ इसी तरह की तकनीक से हुआ होगा। दुनिया में पहली बार टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिलाने वाले ब्रिटेन के डॉक्टर रॉबर्ट एडवर्ड को 2010 में इसी वर्ष का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
 
विश्व का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी 1978 की जुलाई में पैदा हुआ। ये एक लड़की थी और उसका नाम लुई ब्राउन था। तब से अब तक दुनियाभर में आईवीएफ तकनीक से करीब 50 लाख से ज्यादा बच्चे पैदा हो चुके हैं। भारत की पहली 'टेस्ट ट्यूब बेबी' का नाम दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) है। 
 
आईवीएफ के अंतर्गत महिला के अंडाणु (एग सेल) और पुरुष के शुक्राणु (स्पर्म) को शरीर के बाहर एक टेस्ट ट्यूब या किसी बीकर में निषेचित यानी फर्टिलाइज किया जाता है। उसके बाद इस फर्टिलाइज्ड अंडे (जाइगोट) को महिला के बच्चेदानी (युट्रस) में स्थापित किया जाता है इस उम्मीद के साथ कि 9 महीने बाद एक स्वस्थ शिशु पैदा होगा। हालांकि देर-सबेर विज्ञान यह भी सिद्ध कर ही देगा कि बगैर किसी गर्भ के बच्चे का जन्म किया जा सकता है।
 
अगले पन्ने पर चौथा रहस्यमयी जन्म..
 

मकरध्वज : मकरध्वज का नाम तो आपने सुना ही होगा। पूंछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान समुद्र में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूंद जल में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई। इसी मछली से मकरध्वज उत्पन्न हुआ।

webdunia
इस मकरध्वज को अहिरावर ने अपना द्वारपाल बनाया था। बाद में इसी से हनुमानजी का युद्ध हुआ था। इसी तरह मछली से व्यास की माता सत्यभामा का जन्म भी हुआ था। ऐसे कई पौराणिक किस्से हैं जिनका जन्म मछली के पेट से हुआ।
 
आजकल हम अखबारों में पढ़ते रहते हैं किसी बकरी ने इंसानी बच्चे को जन्म दिया तो किसी स्त्री ने सांप को। विज्ञान मानता है कि किसी के भी जन्म के लिए एक गर्भ की आवश्यकता होती है फिर वह गर्भ चाहे किसी का भी हो। जन्म की यह विचित्रताएं आज भी देखने और सुनने को मिलती है। प्राचीनकाल में पुरुषों के शुक्राणु और स्त्रियों के अंडाणु शक्तिशाली और अच्छी किस्म के होते थे।

इसी तरह ऋषि ऋष्यश्रृंग का भी जन्म हुआ था। ऋषि ऋष्यश्रृंग काश्यप (विभाण्डक) के पुत्र थे। काश्यप बहुत ही प्रतापी ऋषि थे। एक बार वे सरोवर में पर स्नान करने गए। वहां उर्वशी अप्सरा को देखकर जल में ही उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को जल के साथ एक हिरणी ने पी लिया, जिससे उसे गर्भ रह गया।
 
महामुनि ऋष्य श्रृंग उस मृगी के पुत्र हुए। वे बड़े तपोनिष्ठ थे। उनके सिर पर एक सींग था, इसीलिए उनका नाम ऋष्यश्रृंग प्रसिद्ध हुआ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।
 
 
अगले पन्ने पर पांचवां जन्म...
 

द्रौपदी का जन्म : जेनेटिक इं‍जीनियर इस दिशा में कार्य कर रहे हैं कि भविष्य में किसी बच्चे के जन्म के लिए किसी पुरुष के वीर्य की आवश्यकता नहीं होगी, सिर्फ माता के गर्भ से ही काम चला लिया जाएगा। हालांकि इससे एक कदम और आगे जाकर हुआ था द्रौपदी का जन्म जिसमें स्त्री और पुरुष का कोई रोल नहीं था।
 
webdunia
कहते हैं कि द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहां यज्ञकुंड से हुआ था इसीलिए उनका एक नाम 'यज्ञसेनी' भी है। श्याम वर्ण होने के कारण उन्हें कृष्णा, अज्ञातकाल में इत्र बेचने के कारण सैरंध्री कहा जाने लगा। पांचों पांडवों की पत्नी होने के कारण लोग उन्हें 'पांचाली' भी कहते थे।
 
द्रोणाचार्य को मारने के लिए द्रुपद ने मुनिकुमारों की आज्ञा से एक यज्ञ किया और यज्ञ से अग्निदेव प्रकट हुए जिन्होंने एक शक्तिशाली पुत्र दिया, जो संपूर्ण आयुध और कवचयुक्त था। फिर उन्होंने एक पुत्री दी, जो श्यामला रंग की थी। उसके उत्पन्न होते ही एक आकाशवाणी हुई कि इस बालिका का जन्म क्षत्रियों के संहार और कौरवों के विनाश हेतु हुआ है। बालक का नाम धृष्टद्युम्न एवं बालिका का नाम कृष्णा रखा गया। यही कृष्णा द्रुपद पुत्री होने के कारण द्रौपदी कहलाई।
 
मां बनने के लिए पुरुष की जरूरत नहीं : फ्रांस के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार स्पर्म कोशिकाएं विकसित करने का दावा किया। इससे उन पुरुषों के इलाज की उम्मीद बढ़ गई है, जो स्पर्म (शुक्राणु) नहीं बनने के कारण पिता नहीं बन पाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक उन्होंने जेनेटिस सामग्री से पूर्णत: क्रियाशील सीमन का निर्माण कर लिया है।
 
लियोन की एक प्रयोगशाला 'कैलिस्टेम लैबोरेटरी' ने दावा किया है कि वह इसके प्री-क्लिनिकल ट्रॉयल में सफल रही है और अगले 2 साल के भीतर 2017 तक क्लिनिकल ट्रॉयल में बच्चे को जन्म देने की स्थिति में आ जाएगी।
 
अगले पन्ने पर छठा रहस्यमयी जन्म...
 

जारासंध का जन्म : कंस का ससुर जरासंध था। यह भगवान श्रीकृष्ण का कट्टर दुश्मन था। इसके जन्म ‍की कथा भी अजीब है। जरासंध के माता-पिता जब संतानहीन थे। तब उसके पिता राजा बृहद्रथ एक साधु ने मंत्र पढ़कर एक फल दिया और कहा– राजन, यह आम अपनी पत्नी को खिला देना, वह गर्भवती हो जाएगी।
 
webdunia
राजा की दो पत्नियां थीं। दोनों में से आम किसे दिया जाए यह सबसे बड़ा प्रश्न था। ऐसे में अपनी उदारता का परिचय देते हुए राजा ने दोनों पत्नियों को आधा-आधा आम दे दिया। दोनों ही आधा आधा आम खाकर गर्भवती हो गईं। नौ महीने के बाद दोनों के शरीर से एक बच्चे का आधा-आधा हिस्सा पैदा हुआ। यह देखकर वे डर गईं और समझीं कि कोई अपशगुन हो गया है। उन्होंने दासियों को आज्ञा दी कि वे बच्चे के आधे-आधे हिस्सों को दो अलग-अलग कपड़ों में लपेटकर फेंक आएं। दासियों ने जहां बच्चे के हिस्सों को फेंका था, वहां जरा नाम की एक जंगली औरत घूमा करती थी। भोजन की तलाश में निकली जरा को पास में पड़ी पोटलियों से खून की गंध आई। उसने सोचा किसी जानवर का मांस है। उसने उन दोनों पोटलियों को उठाया और जंगल की तरफ चल दी। जब उसने उन्हें खोला तो उसे बच्चे के दो हिस्से दिखे। उत्सुकतावश उसने दोनों हिस्सों को एक साथ रख दिया। जैसे ही दोनों हिस्से एक दूसरे के संपर्क में आए, बच्चे में जान आ गई और उसने रोना शुरू कर दिया।
 
जीवित बच्चे को देख कर उसके आश्‍चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जब उसने इस बच्चे के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि महल से फेंके गए हैं। वह बच्चे को लेकर राजा के पास गई और बोली कि यह आपका बच्चा है। यह दो हिस्सों में बंटकर दो गर्भों से आया है और मैंने इसे जोड़ दिया है। राजा और दोनों रानियां बच्चे को जिंदा देखकर बहुत खुश हुए। 
 
जरा द्वारा जोड़े जाने के कारण बच्चे का नाम जरासंध रखा गया। संध का मतलब होता है दो चीजों को एक साथ जोड़ना। हो सकता है कि उस आम के फल के भीतर अच्छी तरह से सुरक्षित रखा स्पर्म हो। आजकल वैज्ञानिक स्पर्म को फ्रीज कर रखने की बात करने लगे हैं। आप अपना स्पर्म भी फ्रीज करके रख सकते हैं जिससे आप चाहे तो आपके मरने के बाद भी आपका बच्चा पैदा किया जा सकता है।

 

सगर के साठ हजार पुत्र : राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का जन्म कौरवों के पहले हुआ था। कौरवों का जन्म भी सगर के पुत्रों की तरह ही हुआ था। रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। उनकी दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। दीर्घकाल तक संतान जन्म न होने पर राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा।
 
सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभी आकाशवाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरक्षित रखा। समय आने पर उन मटकों से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया।
 
देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के साठ हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi