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दूसरों की स्त्री का अपहरण करने के प्राचीन किस्से

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अनिरुद्ध जोशी

प्राचीन समय में धरती छोटे-छोटे स्वतंत्र क्षेत्रों में बंटी हुई थी। प्रत्येक क्षेत्र एक देश की तरह होता था, जहां का राजा निरंकुश होता था। महाभारत अनुसार उस काल में 16 महाजनपदों के अंतर्गत 200 जनपद होते थे जिनमें सैकड़ों उपजनपद होते थे। जरूरी नहीं था कि कोई जनपद किसी महाजनपद का हिस्सा हो। हालांकि इस सबके के अलावा भी कबिलों या समुदायों के अपने अपने क्षेत्र होते थे जहां का सरदार ही सबकुछ होता था। जहां पर उसी का कानून चलता था।
 
 
प्राचीन इतिहास और पौराणिक कथाएं पढ़ने पर पता चलता है कि ऐसे कई निरंकुश या असभ्य क्षेत्र थे जहां पर सभ्यता का कम ही प्रभाव था। प्राचीन समय में यदि किसी स्त्री का पति किसी कारणवश मर जाता या मारा जाता था तो उस स्त्री को अपने देवर या क्षेत्र के किसी शक्तिशाली व्यक्ति के अधीन होना होता था। लेकिन हम यहां ऐसे किस्से बता रहे हैं जिसमें किसी की पत्नीं या कन्याओं का जबरनण अपहरण किया गया था।
 
 
1.रावण ने किया सीता का हरण: रामायण के अरण्य कांड में सीता हरण की कथा मिलती है। रावण ने पंचवटी के पास माता सीता का अपहरण करके वह लंका ले गया था। लंका में रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा था। अशोक वाटिका में विभिषण की पत्नी सरमा और उनकी बेटी त्रिजटा माता सीता की देखभाल करती थी। उल्लेखनीय है कि नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
 
 
 
2.बालि ने हड़पी सुग्रीव की पत्नी : वानर राज बालि किष्किंधा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बालि का पत्नी वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा थीं। बालि ने जब दुंदुभि का वध कर दिया तो उसका भाई मायावी बालि को यद्ध के ललकारने लगा। बालि और सुग्रीव बाहर आए तो मायावी वहां से भागकर वन की एक गुफा में जा छिपा। बालि सुग्रीव को गुफा के पास खड़ा करके स्वयं गुफा में घुस गया। सुग्रीव ने एक वर्ष तक बालि के बाहर आने की प्रतीक्षा की। एक वर्ष बाद गुफा से रक्त की धारा बहती देखकर सुग्रीव ने यह समझा कि बालि मारा गया। तब उसने गुफा को एक पर्वत के शिखर से ढंका और चला गया। बाद में सुग्रीव ने मंत्रियों के आग्रह पर राज्य को संभाल लिया।
 
 
इधर, बालि ने मायावी का वध करने के बाद गुफा पर रखे पर्वत शिखर को देखकर उसने सुग्रीव को आवाज दी, किंतु उसे कोई उत्तर नहीं मिला। बालि जैसे-तैसे शिखर को हटाकर अपनी नगरी में पहुंचा। जब वहां उसने अपने भाई सुग्रीव को राज्य करते देखा, तब उसे शंका हुई कि सुग्रीव ने राज्य के लोभ के कारण ही यह सब प्रपंच रचा होगा। फिर उसने सुग्रीव पर प्राणघातक प्रहार किया। प्राणरक्षा के लिए सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर छिप गया। तब बालि ने सुग्रीव के संपूर्ण धन सहित उसकी पत्नीं को हड़प लिया। धन और स्त्री का हरण होने पर सुग्रीव दु:खी होकर अपने हनुमान आदि 4 मंत्रियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगा। प्रभु श्रीराम से मिलने के बाद सुग्रीव ने अपनी सारी व्यथा कथा कह सुनाई। प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से अपने बड़े भाई बालि से युद्ध करने को कहा और इसी दौरान श्रीराम ने छुपकर बालि पर तीर चला दिया और वह मारा गया।
 
 
3.कौशल्या हरण : आनंद रामायण अनुसार रावण को ब्रह्माजी ने बता दिया था कि दशरथ और कौशल्या का पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। रावण अपनी मौत को टालने के लिए दशरथ और कैकयी के विवाह के दिन ही उसने कौशल्या का अपहरण कर लिया। कौशल्या को वह एक सुनसान द्वीप पर छोड़ आया। नारद ने रावण के इस कृत्य और कौशल्या को कहां रखा है बारे में भी बताया। दशरथ बहुत कठिनाइयों को पार करने के बाद उस द्वीप पर पहुंचे और कौशल्या का सकुशल अपने महल लेकर आए।
 
 
4.नरकासुर ने किया था हरण : भौमासुर ऊर्फ नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का दैत्यराज था जिसने इंद्र को हराकर इंद्र को उसकी नगरी से बाहर निकाल दिया था। नरकासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे थे। वह पृथ्वी की हजारों सुन्दर कन्याओं और स्त्रियों का अपहरण कर उनको बंदी बनाकर उनका शोषण करता था। इंद्र ने श्रीकृष्ण से कहा, क्रूर नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है। इंद्र ने कहा, भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दरी कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु।
 
 
इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर के श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरूड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य सहित मुर के छः पुत्र- ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया। फिर नरकासुर से युद्ध कर उसका वध किया। नरकासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बना दिया। नरकासुर के द्वारा हरण कर लाई गईं 16,100 कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त कर द्वारिका ले गए। वहां वे सभी कन्याएं स्वतंत्रपूर्वक अपनी इच्छानुसार सम्मानपूर्वक रहती थीं।
 
 
5.लक्ष्मी हरण : देवासुर संग्राम में देवताओं के पराजित होने के बाद सभी देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। इंद्र ने देवगुरु से कहा कि असुरों के कारण हम आत्महत्या करने पर मजबूर है। देवगुरु सभी देवताओं को दत्तात्रेय के पास ले गए। उन्होंने सभी देवताओं को समझाया और फिर से युद्ध करने की तैयारी करने को कहा। सभी ने फिर से युद्ध किया और हार गए। 
 
 
वे फिर से विष्णुरूप भगवान दत्तात्रेय के पास भागते हुए पहुंचे। वहां उनके पास माता लक्ष्मी भी बैठी थी। दत्तात्रेय उस वक्त समाधिस्थ थे। तभी पीछे से असुर भी वहां पहुंच गए। असुर माता लक्ष्मी को देखकर उन पर मोहित हो गए। असुरों ने मौका देखकर लक्ष्मी का हरण कर लिया।
 
 
दत्तात्रेय ने जब आंख खोली तो देवताओं ने दत्तात्रेय को हरण की बात बताई। तब दत्तात्रेय ने कहा, 'अब उनके विनाश का काल निश्चत हो गया है।' तब वे सभी कामी बनकर कमजोर हो गए और फिर देवताओं ने उनसे युद्ध कर उन्हें पराजित कर दिया। जब युद्ध जीतकर देवता भगवान दत्तात्रेय के पास पहुंचे तो वहां पहले से ही लक्ष्मी माता बैठी हुई थी। दत्तात्रेय ने कहा कि लक्ष्मी तो वहीं रहती है जहां शांति और प्रेम का वातारण होता है। वह कभी भी कैसे कामियों और हिंसकों के यहां रह सकती है?
 
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एक अन्य कथा अनुसार दैत्येगुरु शुक्राचार्य के शिष्य असुर श्रीदामा से सभी देवी और देवता त्रस्त हो चले थे। सभी देवता ब्रह्मदेव के साथ विष्णुजी के पास पहुंचे। विष्णुजी ने श्रीदामा के अंत का आश्वासन दिया। श्रीदामा को जब यह पता चला तो वह श्रीविष्णु से युद्ध की योजना बनाने लगा। दोनों का घोर युद्ध हुआ। लेकिन श्रीदामा पर विष्णुजी के दिव्यास्त्रों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि शुक्राचार्य ने उसका शरीर वज्र के समान कठोर बना दिया था। अंतत: विष्णुजी को मैदान छोड़कर जाना पड़ा। इस बीच श्रीदामा ने विष्णु पत्नी लक्ष्मी का हरण कर लिया।
 
 
तब श्री विष्णु ने कैलाश पहुंचकर वहां पर भगवान शिव का पूजन किया और शिव नाम जपकर "शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र" की रचना कर दी। जब के साथ उन्होंने "हरिश्वरलिंग की स्थापना कर 1000 ब्रह्मकमल अर्पित करने का संकल्प लिया। 999 ब्रह्मकमल अर्पित करने के बाद उन्होंने देखा की एक ब्रह्मकमल कहीं लुप्त हो गया है, तब उन्होंने अपना दाहिना नेत्र निकालकर ही शिवजी को अर्पित कर दिया।
 
 
यह देख शिव जी प्रकट हो गए। शिवजी ने इच्‍छीत वर मांगने को कहा। तब श्री विष्णु ने लक्ष्मी के अपहरण की कथा सुनाई। तभी शिव की दाहिनी भुजा से महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ। इसी सुदर्शन चक्र से भगवान विष्णु ने श्रीदामा का का नाश कर महालक्ष्मी को श्रीदामा से मुक्त कराया तथा देवों को दैत्य श्रीदामा के भय से मुक्ति दिलाई।

ऐसे और भी कई हरण है जो भारत के प्राचीन इतिहास और पुराणों में दर्ज है।
 

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