पंजाब का प्राचीन नाम पंचनद था। इसका पंचनद नाम यहां की झेलम (वितिस्ता), चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास नदी नदियों के कारण हुआ था। उक्त नदियों के आसपास ही प्रारंभ में प्राचीन भारतीय लोग बसते थे। यह सभी नदियां हिमालय ने निकलती है। इन नदियों की प्रमुख नदियां सिंधु और सरस्वती है। उक्त दोनों नदियों के आसपास ही प्रारंभ में ययाति के पांचों पुत्र निवास करते थे, जिन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है।
ययाति प्रजापति ब्रह्मा की 10वीं पीढ़ी में हुए थे। ययाति ने कई स्त्रियों से संबंध बनाए थे इसलिए उनके कई पुत्र थे, लेकिन उनकी 2 पत्नियां देवयानी और शर्मिष्ठा थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी, तो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु, पुरु तथा अनु हुए। ययाति की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम माधवी था। माधवी की कथा बहुत ही व्यथापूर्ण है।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई।
पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा।- (हरिवंश पुराण, 1,30,29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1,85,32)
ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पश्चिम में पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। ययाति के राज्य का क्षेत्र अफगानिस्तान के हिन्दूकुश से लेकर असम तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक था
महाभारत आदिपर्व 95 के अनुसार यदु और तुर्वशु – मनु की सातवीं पीढ़ी में हुए थे (मनु–इला–पुरुरवा–आयु– नहुष–ययाति–यदु– तुर्वशु)। महाभारत आदिपर्व 75.15-16 में यह भी लिखा है कि नाभानेदिष्ठ मनु का पुत्र और इला का भाई था। नाभानेदिष्ठ के पिता मनु ने उसे ऋग्वेद दशम मंडल के सूक्त 61 और 62 का प्रचार करने के लिए कहा।
पुरु, यदु, और कुरु के कुल खानदान के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन द्रुहु और अनु के कुल के बारे में कम ही लोग जानते हैं। यहां प्रस्तुत है अनु के कुल की जानकारी।
अनु का वंश : अनु को ऋग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।
अनु के पुत्र सभानर से कालानल, कालानल से सृन्जय, सृन्जय से पुरन्जय, पुरन्जय से जन्मेजय, जन्मेजय से महाशाल, महाशाल से महामना का जन्म हुआ। मनामना के दो पुत्र उशीनर और तितिक्षु हुए। उशीनर के पांच पुत्र हुए: नृग, कृमि, नव, सुव्रत, शिवि (औशीनर)। इसमें से शिवि के चार पुत्र हुए केकय, मद्रक, सुवीर और वृषार्दक। महाभारत काल में इन चारों के नाम पर चार जनपद थे।
द्रुहु का वंश : द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं? को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए।
ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के 100 पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों के राजा हुए।
संदर्भ : वेद, महाभरत और पुराण