वेद, रामायण, महाभारत, गीता और कृष्ण के समय के संबंध में मेक्समूलर, बेबेर, लुडविग, हो-ज्मान, विंटरनिट्स फॉन श्राडर आदि सभी विदेशी विद्वानों ने भ्रांतियां फैलाईं और उनके द्वारा किए गए भ्रामक प्रचार का हमारे यहां के इतिहासकारों ने भी अनुसरण किया और भगवान बुद्ध के पूर्व के संपूर्ण काल को इतिहास से काटकर रख दिया। इसके पीछे सोची- समझी चाल थी।
1. ब्रह्म काल : (सृष्टि उत्पत्ति से प्रजापतियों की उत्पत्ति तक)
2. ब्रह्मा काल : (वराह कल्प प्रारंभ : ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल लगभग 14,00 ईसा पूर्व)
2. स्वायम्भुव मनु काल : (9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ)
4. वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से) :
5. राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
6. कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
7. सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच) :
8. हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच) :
9. आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच) :
10. बौद्ध काल : (563-320 ईस्वी पूर्व के बीच) :
11, मौर्य काल : (321 से 184 ईस्वी पूर्व के बीच) :
12. गुप्तकाल : (240 ईस्वी से 800 ईस्वी तक के बीच) :
13. मध्यकाल : (600 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक) :
14. अंग्रेजों का औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात)
15. आजाद और विभाजित भारत का काल : (1947 से प्रारंभ)
पांच कल्प :
महत् कल्प : महत् का अर्थ होता है अंधकार। इस कल के इतिहास का विवरण नहीं मिलता। इसके बाद प्रलय हुई थी तो सभी कुछ नष्ट हो गया। लेकिन माना जाता है कि इस कल्प में विचित्र-विचित्र और महत् वाले प्राणी और मनुष्य होते थे।
हिरण्य गर्भ कल्प : इस काल में धरती पीली थी इसीलिए इसे हिरण्य कहते हैं। स्वर्ण के भंडार बिखरे पड़े थे। इस काल में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ, हिरण्यवर्णा लक्ष्मी, देवता, हिरप्यानी रैडी (अरंडी), वृक्ष वनस्पति एवं हिरण ही सर्वोपयोगी पशु थे।
ब्रह्मकल्प : इस कल्प में मनुष्य जाति सिर्फ ब्रह्म (ईश्वर) की उपासक थी। प्राणियों में विचित्रताएं और सुंदरताएं थी। इस काल में ब्रह्मर्षि देश, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मलोक, ब्रह्मपुर, रामपुर, रामगंगा केंद्र स्थल की ब्राह्मी प्रजाएं परब्रह्म और ब्रह्मवाद की उपासखी। ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में इसके ऐतिहासिक विवरण संकलित किए हैं।
पद्मकल्प : इस कल्प का विवरण पद्म पुराण में मिलता है। इस कल्प में 16 समुद्र थे। यह कल्प नागवंशियों का था। इस काल में उनकी अधिकता थी। कोल, कमठ, बानर (बंजारे) व किरात जातियां थीं और कमल पत्र पुष्पों का बहुविध प्रयोग होता था। सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की नारियां पद्मिनी प्रजाएं थीं। तब के श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति आज के श्रीलंका जैसी नहीं थी।
बाराहकल्प : वर्तमान में यह कल्प चल रहा है। वराह पुराण में इसका विवरण मिलता है। इस कल्प में वराह अवतार का वर्णन है। इसी कल्प में विष्णु के 12 अवतार हुए और इसी कल्प में वैवस्वत मनु का वंश चल रहा है। इसी कल्प में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने नई सृष्टि की थी। वर्तमान में हम इसी कल्प के इतिहास की बात करेंगे।
अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से 5,630 वर्ष पूर्व हुआ था।
-अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'