Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र की सभ्यता और संस्कृति पर शोध क्यों नहीं?

हमें फॉलो करें भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र की सभ्यता और संस्कृति पर शोध क्यों नहीं?
इतिहास और विज्ञान पर शोध के मामले में भारत सबसे पीछे हैं। वह इस पर ज्यादा खर्च नहीं करता है। हिमालय से निकलने वाली नदियों में सिंधु, सरस्वती और गंगा के बाद ब्रह्मपुत्र का नंबर आता है। यह पूर्वोत्तर भारत और बंगाल की प्रमुख नदी है। तिब्बत से बांग्लादेश तक फैली ब्रह्मपुत्र नदी के भू-क्षे‍त्र विस्तृत है। कई नदियां इसकी सहायक नदियां है और यह कई संस्कृति और सभ्यताओं का मिलन स्थल भी है।
 
#
ब्रह्मपुत्र सिर्फ एक नदी नहीं है। यह एक दर्शन है-समन्वय का। इसके तटों पर कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिलन हुआ है। आर्य-अनार्य, मंगोल-तिब्बती, बर्मी-द्रविड़, मुगल-आहोम संस्कृतियों की टकराहट और मिलन का गवाह यह ब्रह्मपुत्र रहा है। जिस तरह अनेक नदियां इसमें समाहित होकर आगे बढ़ी हैं, उसी तरह कई संस्कृतियों ने मिलकर एक अलग संस्कृति का गठन किया है। ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र पर वृहत्तर आधार पर शोध किए जाने की आवश्यकता है। यह प्राचीन भारत के इतिहास से जुड़ी नदी है। 
 
#
तिब्बत स्थित पवित्र मानसरोवर झील से निकलने वाली सांग्पो नदी पश्चिमी कैलाश पर्वत के ढाल से नीचे उतरती है तो ब्रह्मपुत्र कहलाती है। तिब्बत के मानसरोवर से निकलकर बाग्लांदेश में गंगा को अपने सीने से लगाकर एक नया नाम पद्मा फिर मेघना धारण कर सागर में समा जाने तक की 2906 किलोमीटर लंबी यात्रा करती है। 
 
ब्रह्मपुत्र भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे लंबी नदी है। यदि इसे देशों के आधार पर विभाजित करें तो तिब्बत में इसकी लंबाई सोलह सौ पच्चीस किलोमीटर है, भारत में नौ सौ अठारह किलोमीटर और बांग्लादेश में तीन सौ तिरसठ किलोमीटर लंबी है यानी बंगाल की खाड़ी में समाने के पहले यह करीब तीन हजार किलोमीटर का लंबा सफर तय कर चुकी होती है। इस क्रम में अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, भूटान, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के पहाड़ों से निकली अन्य अनेक नदियां इसमें समाहित हो जाती हैं। इस दौरान अनेक नदियां और उनकी उप-नदियां आकर इसमें समा जाती हैं। हर नदी की अपनी कहानी है और उनके किनारे बसी जनजातियों की अपनी संस्कृति है। 
 
#
ब्रह्मपुत्र के कई नाम और पहचान हैं। हर क्षेत्र में इसके स्वभाव और आचरण में भी फर्क है। डिब्रूगढ़ में इसका मीलों लंबा पाट इसकी विशालता को दर्शाता है तो गुवाहाटी में दोनों ओर की पहाड़ियों के बीच से गुजरने के लिए यह अपना आकार लघु कर लेती है। फिर नीलाचल पहाड़, जिस पर मां कामाख्या का मंदिर है, का चरण स्पर्श करने के बाद आगे जाकर अपना विराट रूप धारण कर लेती है। असम के अधिकांश बड़े शहर इसी के किनारे विकसित हुए। डिब्रूगढ़, जोरहाट, तेजपुर, गुवाहाटी, धुबड़ी और ग्वालपाड़ा इसी के किनारे बसे हुए हैं। 
 
#
अंत में कहना होगा कि भारत को ब्रह्मपुत्र के सांस्कृति और धार्मिक इतिहास को संवरक्षित किए जाने की आवश्यकता है। यह नदी भी सिंधु सभ्यता की नदी से कम नहीं है। प्राचीन मानव इस नदी के आसपास रहता ही था। इस नदी क्षेत्र में सैकड़ों गुफाएं, घने जंगल और कई प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएं जाएंगे। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

18 अगस्त से राहु-केतु का राशि परिवर्तन, किन राशियों के जीवन में आएगा तूफान