'चक्रवर्ती' शब्द का प्रचलन भारत में ही है। इस शब्द को उन सम्राटों के नाम के आगे लगाया जाता है जिन्होंने संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज किया हो और जिनके पास एक दिव्य चक्र हो। 'चक्रवर्ती' शब्द संस्कृत के 'चक्र' अर्थात पहिया और 'वर्ती' अर्थात घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार 'चक्रवर्ती' एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जाएगा। जम्बूद्वीप और भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे 'चक्रवर्ती' लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही 'चक्रवर्ती' कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।
स्वायंभुव मनु और उनके पुत्र राजा प्रियव्रत को विश्व सम्राट माना जाता है। उनके बाद प्रियव्रत के पुत्र राजा भरत को भारत का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट माना गया है। चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता ऋषभदेव थे और उनके 100 भाइयों में से प्रमुख का नाम 'बाहुबली' था। सभी का अलग-अलग राज्य था। राजा भरत को अपनी आयुधशाला में से एक दिव्य चक्र प्राप्त हुआ।
चक्र रत्न मिलने के बाद उन्होंने अपना दिग्विजय अभियान शुरू किया। दिव्य चक्र आगे चलता था। उसके पीछे दंड चक्र, दंड के पीछे पदाति सेना, पदाति सेना के पीछे अश्व सेना, अश्व सेना के पीछे रथ सेना और हाथियों पर सवार सैनिक आदि चलते थे। जहां-जहां चक्र जाता था, वहां- वहां के राजा या अधिपति सम्राट भरत की अधीनता स्वीकार कर लेते थे। इस तरह पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर और उत्तर से पश्चिम की ओर उन्होंने यात्रा की और अंत में जब उनके पुन: अयोध्या पहुंचने की मुनादी हुई तो राज्य में हर्ष और उत्सव का माहौल होने लगा। लेकिन अयोध्या के बाहर ही चक्र स्वत: ही रुक गया, क्योंकि राजा भरत ने अपने भाइयों के राज्य को नहीं जीता था। बाहुबली को छोड़कर सभी भाइयों ने राजा भरत की अधीनता स्वीकार कर ली। भरत का बाहुबली से मल्ल युद्ध हुआ जिसमें बाहुबली जीत गए। ऐसे में बाहुबली के मन में विरक्ति का भाव आ गया और उन्होंने सोचा कि मैंने राज्य के लिए अपने ही बड़े भाई को हराया। उन्होंने जीतने के बाद भी भारत को अपना राज्य दे दिया। इस तरह भरत चक्रवर्ती सम्राट बन गए और कालांतर में उनके नाम पर ही इस नाभि खंड और उससे पूर्व हिमखंड का नाम भारत हो गया।