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Motivational goals : सिर्फ 5 बातें चाणक्य से सीख लीं तो दुनिया की कोई ताकत आपको हरा नहीं सकती

हमें फॉलो करें Motivational goals : सिर्फ 5 बातें चाणक्य से सीख लीं तो दुनिया की कोई ताकत आपको हरा नहीं सकती

अनिरुद्ध जोशी

आचार्य चाणक्य को ही कौटिल्य, विष्णु गुप्त और वात्सायन कहते हैं। उनके पिता का नाम चणक था। चणक का पुत्र होने के कारण उन्हें चाणक्य कहा गया। उनका जीवन बहुत ही कठिन और रहस्यों से भरा हुआ है। उन्होंने ही अर्थशास्त्र, कामसूत्र जैसे ग्रंथ लिखे हैं। तमाम विपरित परिस्थितियों में भी उन्होंने किस तरह खुद को बचाया और इस राष्ट्र को एकछत्र के नीचे लाकर एकसूत्र में बांधा। उनसे बहुत कुछ सिखा जा सकता है परंतु हम यहां मात्र 5 ऐसी बातें बता रहे हैं जिसमें उनके जीवन का सार छुाप है। आपने ये 5 गुण सीख लिए तो शर्तिया आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता और आप जीवन में कभी हारेंगे नहीं।
 
 
1. एक अनाथ बालक का साहस और प्रतिशोध : चाणक्य के पिता चणक को मगध के सम्राट के आदेश पर चणक का कटा हुआ सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया। अपराध था विलासी राजा को राज्य के प्रति जागृत करना। पिता के कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य (चाणक्य) की आंखों से आंसू टपक रहे थे। उस वक्त चाणक्य की आयु 14 वर्ष थी। रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को धीरे-धीरे नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेट कर चल दिया। अकेले पुत्र ने पिता का दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गंगा का जल हाथ में लेकर शपथ ली- 'हे गंगे, जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा। मेरे पिता का तर्पण तभी पूर्ण होगा, जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा...। हे यमराज! धनानंद का नाम तुम अपने लेखे से काट दो। उसकी मृत्यु का लेख अब मैं ही लिखूंगा।'... वही व्यक्ति जीवन में सफल होता है जिसमें साहस और लक्ष्य हो।
 
2. अध्ययन के प्रति जुनून : धनानंद से बचने के लिए कौटिल्य ने अपना नाम बदलकर विष्णु गुप्त रख लिया। एक विद्वान पंडित राधामोहन ने विष्णु गुप्त को सहारा दिया। राधामोहन ने विष्णु गुप्त की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें तक्षशिला विश्व विद्यालय में दाखिला दिलवा दिया। यह विष्णु गुप्त अर्थात चाणक्य के जीवन की एक नई शुरुआत थी। तक्षशिला में चाणक्य ने हर तरह की शिक्षा ग्रहण की और खूब मना लगाकर पढ़ाई की क्योंकि वह जानते थे कि शिक्षा और विद्वता ही मुझे बचा सकती है। चाणक्य ने अपने ज्ञान से बड़े बड़े विद्वानों को प्रभावित किया।... आपको भी यदि सफल होना है तो कोर्स की किताबों के अलावा हर तरह की किताबों का अध्ययन करना चाहिए।
 
 
3. संपर्क और संबंधों का विस्तार : चाणक्य के मन में अपनी प्रतिज्ञा और प्रतिशोध गहरे तक जमा हुआ था। वे उसे कभी भूले नहीं थे कि उनके पिता के साथ क्या हुआ है और उनका लक्ष्य क्या है। तक्षशिला में चाणक्य ने न केवल छात्र, कुलपति और बड़े-बड़े विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया बल्की उसने पड़ोसी राज्य के राजा पोरस से भी अपना परिचय बढ़ा लिया। चाणक्य ने अपनी विद्वता से मगध के सभी पड़ोसी राज्यों के राजाओं से संपर्क और राज्य में जनता से संबंध बढ़ा लिए थे जिसके चलते उनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई थी।सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य ने पोरस का साथ दिया।... संपर्क और पर्सनल संबंधों का विस्तार ही आपको जहां लोकप्रिय बनाता है वहीं वह समय पड़ने पर आपके काम भी आते हैं।
 
 
4. शक्ति बटोरने के बाद लक्ष्य की ओर पहला कदम : सिकंदर की हार और तक्षशिला पर सिकंदर के प्रवेश के बाद चाणक्य अपने गृह प्रदेश मगध चले गए और यहां से प्रारंभ हुआ उनका एक नया जीवन। उन्होंने विष्णुगुप्त नाम से शकटार से मुलाकात की। पिता का मित्र शकटार, जो अब बेहद ही वृद्ध हो चला था। चाणक्य ने देखा कि मेरे राज्य की क्या हालत कर दी है घनानंद ने। उधर, विदेशियों का आक्रमण बढ़ता जा रहा है और इधर ये दुष्ट राजा नृत्य, मदिरा और हिंसा में डूबा हुआ है। एक बार विष्णु गुप्त भरीसभा में पहुंच गए। चाणक्य ने उस दरबार में क्रोधवश ही अपना परिचय तक्षशिला के आचार्य के रूप में दिया और राज्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने यूनानी आक्रमण की बात भी बताई और शंका जाहिर की कि यूनानी हमारे राज्य पर भी आक्रमण करने वाला है। इस दौरान उन्होंने राजा धनानंद को खूब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि मेरे राज्य को बचा लो महाराज। लेकिन भरी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान हुआ, उपहास उड़ाया गया। चाणक्य यही चाहते थे तभी तो राज्य में उनके होने की उपस्थिति फैल गई।...आप जब तक अपने लक्ष्य की ओर कदम नहीं बढ़ाते हैं तब तक लक्ष्य भी सोया ही रहेगा।
 
 
5. अपनी खुद की टीम बनाओ और जीत लो दुनिया : बाद में चाणक्य फिर से शकटार से मिलते हैं और तब शकटार बताते हैं कि राज्य में कई असंतोषी पुरुष और समाज है उनमें से एक है चंद्रगुप्त। चंद्रगुप्त मुरा का पुत्र है। किसी संदेह के कारण धनानंद ने मुरा को जंगल में रहने के लिए विवश कर दिया था। अगले दिन शकटार और चाणक्य ज्योतिष का वेश धरकर उस जंगल में पहुंच गए, जहां मुरा रहती थी और जिस जंगल में अत्यंत ही भोले-भाले लेकिन लड़ाकू प्रवृत्ति के आदिवासी और वनवासी जाति के लोग रहते थे। वहां चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा का एक खेल खेलते हुए देखा। तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और फिर शुरु हुआ चाणक्य का एक और नया जीवन। कौटिल्य उर्फ विष्णु गुप्त अथार्त चणक पुत्र चाणक्य ने तब चंद्रगुप्त को शिक्षा और दीक्षा देने के साथ ही भील, आदिवासी और वनवासियों को मिलाकर एक सेना तैयार की और धननंद के साम्राज्य को उखाड़ फेंककर चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया। बाद में चंद्रगुप्त के साथ ही उसके पुत्र बिंदुसार और पौत्र सम्राट अशोक को भी चाणक्य ने महामंत्री पद पर रहकर मार्गदर्शन दिया।...कोई भी व्यक्ति अकेला जरूर चलता है परंतु वह अकेला लक्ष्य तक पहुंच नहीं सकता। यह बात आप हमेशा ध्यान रखें कि आपकी सफलता सिर्फ आपकी सफलता नहीं होती है। इसमें कई लोगों का योगदान रहता है जिससे भूलना नहीं चाहिए।

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