महाभारत से इतर भी महाभारत से जुड़ी कई कथाएं मिलती है। मान्यताओं पर आधारित ऐसा कई कथाएं समाज में प्रचलित है। पौराणिक मान्यता अनुसार जब कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और उन्हें कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। मैं जानता हूं कि आपका पांडवों के प्रति अनुराग है और आप उन्हें ही जीताना चाहते हैं।
यह सुनकर भीष्म पितामह भयंकर क्रोधित और निराश हुए। तब उन्होंने अपनी निष्ठा एवं दृढ़ता को प्रकट करने के लिए तुरंत ही पांच सोने के तीर लिए और उन्हें मंत्रों की शक्ति से युक्त करने लगे। मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल युद्ध में इन पांच तीरों से वे पांडवों को मार देंगे। पांडवों के मारे जाने से युद्ध का अंत हो जाएगा और तुम्हारी जीत निश्चित हो जाएगी।
लेकिन दुर्योधन की मूर्खता की भी कोई सीमा नहीं थी। उसने महाभारत में कई गलतियां की थी। उन्हीं गलतियों में से एक यह गलती भी थी कि उसने भीष्म की बातों पर विश्वास नहीं किया और इसे मजाक समझा। ऐसे में उसने भीष्म से वह पांचों तीर ले लिए और कहा कि वह उन्हें कल सुबह यह तीर दे देगा। अभी यह पांचों तीर मेरे ही पास रहेंगे।
सूर्यास्त के युद्ध पश्चात सभी अपने अपने शिविरों में रहते हैं। वहां भगवान कृष्ण को जब यह पता चला कि भीष्म ने पांडवों को मारने के लिए कोई पांच चमत्कारिक अचूक तीरों का निर्माण किया है तो उन्होंने तुरंत अर्जुन को बुलाया और कहा कि तुम इसी वक्त दुर्योधन के पास जाओ और उससे कहो कि मैं आज कुछ मांगने आया हूं क्योंकि तुमने ही कहा था कि गंधर्वों से मेरी जान बचाने के लिए तुम मुझसे कुछ मांग लो लेकिन तब मैंने तुमसे कुछ नहीं मांगा था। आज मांगने आया हूं क्या तुम देने के लिए तैयार हो?
अर्जुन दुर्योधन के पास जाकर ऐसा ही कहते हैं और वे दुर्योधन के शिविर में जाकर दुर्योधन की अपने वादे की बात याद दिलाते हैं, जबकि अर्जुन ने एक बार दुर्योधन को गंधर्वों से बचाया था।
दुर्योधन कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है और फिर कहता है। अच्छा, मांग लो।
तब अर्जुन उनसे पुन: वचन लेता है कि क्या तुम सचमुच वचनबद्ध हो और मुझे वह दोगे जो मैं मांगूगा।
दुर्योधन कहता है कि अब मांग ही लो। मैं वचनबद्ध हूं। निश्चित ही मेरा वचन खाली नहीं जाएगा।
तब अर्जुन कहता है कि मुझे वो पांच तीर चाहिए जो तुम्हें भीष्म से दिए हैं।
क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन ने अपने वचन को पूरा किया और तीर अर्जुन को दे दिए।
पांडवों को मारने के ऐसे कई मौके आए थे जबकि दुर्योधन आसानी से पांडवों को मार सकता था लेकिन उसने हर बार मौकों को गंवाया ही था।