Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

केरल के गुरुवायूर मंदिर में किस देवता की होती है पूजा, जानिए इतिहास

हमें फॉलो करें केरल के गुरुवायूर मंदिर में किस देवता की होती है पूजा, जानिए इतिहास
, शनिवार, 8 जून 2019 (13:02 IST)
केरल के त्रिसूर जिले के गुरुवायूर शहर में गुरुवायूर मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित है। मंदिर में स्थापित मूर्ति मूर्तिकला का एक बेजोड़ नमूना है। गुरुवायूर मंदिर 5000 साल पुराना है और 1638 में इसके कुछ भाग का पुनर्निमाण किया गया था। इस मंदिर में केवल हिंदू ही पूजा कर सकते हैं। वर्तमान में गुरुवायूर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष केबी मोहनदास हैं। 
 
 
यह केरल के हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक है और अक्सर इसे भुलोका वैकुंठ के रूप में जाना जाता है, जो पृथ्वी पर विष्णु के पवित्र निवास के रूप में स्थित है। गुरुवायुर मंदिर के प्रमुख देवता विष्णु हैं, जिन्हें उनके अवतार कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। यहां श्रीकृष्ण को गुरुवायुरप्पन कहते हैं जो कि वास्तव में भगवान श्रीकृष्‍ण का बालरूप है। 
 
 
पौराणिक कथा-
एक कथानुसार भगवान कृष्ण ने मूर्ति की स्थापना द्वारका में की थी। एक बार जब द्वारका में भयंकर बाढ़ आयी तो यह मूर्ति बह गई और बृहस्पति को भगवान कृष्ण की यह तैरती हुई मूर्ति मिली। उन्होंने वायु की सहायता द्वारा इस मूर्ति को बचा लिया।
 
 
बृहस्पति ने इस मूर्ति को स्थापित करने के लिए पृथ्वी पर एक उचित स्थान की खोज आरम्भ की। खोज करते करते वे केरल पहुंचे, जहां उन्हें भगवान शिव व माता पार्वती के दर्शन हुए। शिव ने कहा की यही स्थल सबसे उपयुक्त है, अत: यहीं पर मूर्ति की स्थापना की जानी चाहिए। तब गुरु (बृहस्पति) एवं वायु (पवनदेव) ने मूर्ति का अभिषेक कर उसकी स्थापना की और भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि मूर्ति की स्थापना गुरु एवं वायु के द्वारा होने के कारण इस स्थान को 'गुरुवायुर' के नाम से ही जाना जाएगा। तब से यह पवित्र स्थल इसी नाम से प्रसिद्ध है।
 
 
एक अन्य मान्यता के अनुसार इस मूर्ति को भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को सौंपा था। यह भी कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण स्वंय विश्वकर्मा द्वारा किया गया था और मंदिर का निर्माण इस प्रकार हुआ कि सूर्य की प्रथम किरणें सीधे भगवान गुरुवायुर के चरणों पर गिरें।
 
 
मंदिर में पूजा-
गर्भगृह में विराजित भगवान की मूर्ति को आदिशंकराचार्य द्वारा निर्देशित वैदिक परंपरा एवं विधि-विधान द्वारा ही पूजा जाता है। गुरुवायुर की पूजा के पश्चात् मम्मियुर शिव की अराधना का विशेष महत्व है। मंदिर में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का खास महत्त्व है। इस समय यहां पर भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। साथ ही विलक्कु एकादशी का पर्व भी मनाया जाता है। यह मंदिर दो प्रमुख साहित्यिक कृतियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिनमें मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी द्वारा निर्मित 'नारायणीयम' और पून्थानम द्वारा रचित 'ज्नानाप्पना' है। ये दोनों कृतियां भगवान गुरुवायुरप्प्न को समर्पित हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कुंडली मिलान बहुत जरूरी है, यह जानकारी आपकी आंखें खोल देंगी