भारतीय इतिहास को दिल्ली पर ही केंद्रित रखे जाने के कारण भारत के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों के दिल्ली के राजाओं से कहीं अधिक महान राजाओं की गाथा को भुला दिया जाता है। उन्हीं में से एक है असम के आहोम राजा। प्राचीनकाल में असाम प्रागज्योतिषपुर का क्षेत्र था। महाभारत काल में यहां का राजा नरकासुर था। उसके बाद उसका पुत्र भगदत्त राजा बना।
हालांकि असम में अहोम राजाओं की ही ज्यादा चर्चा की जाती है। कहते हैं कि यह उत्तरी बर्मा में रहने वाली शान जाति के लोग थे। असम में अहोम राजाओं का राज्य 1228 से 1835 ईस्वी तक कायम रहा। मुगलों ने इनके राज्य के अपने अधिन करने के लिए कई अभियान चलाए परंतु मुगलों को मुंह की ही खाना पड़ी। इस अवधि में 39 अहोम राजा गद्दी पर बैठे। अहोम लोगों का 17वां राजा प्रतापसिंह (1603-41) और 29वां राजा गदाधर सिंह (1681-83 ईस्वी) बड़ा प्रतापी था। 1832 ईस्वी में ब्रिटिश शासकों ने कुटिलता के आधार पर अहोम राज्य को अपने राज्य में मिला लिया और तब अहोम राज्य पूरी तरह से समाप्त हो गया। अहोम राजा हिन्दू थे।
असम के शिबसागर जिले के चारडियो में हैं अहोम राजाओं की विश्वप्रसिद्ध 39 कब्रें। इस क्षेत्र को 'मोइडम' या 'मैदम्स' कहा जाता है। बताया जाता है कि उनका आकार भी पिरामिडनुमा है और उनमें रखा है अहोम राजाओं का खजाना। अहोम राजाओं का शासन 1226 से 1828 तक रहा था। उनके शासन का अंत होने के बाद उनके खजाने को लूटने के लिए मुगलों ने कई अभियान चलाए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।
कहते हैं कि इस खजाने को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मुगलों ने प्रयास किए। सेनापति मीर जुमला ने उनकी कब्रों की खुदाई करवाना शुरू कर दिया। उसने वहां स्थित कई मोइडमों को तहस-नहस करवा दिया, लेकिन हमले के चंद दिनों बाद ही मीर की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई।
इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस कब्र को खोदकर यहां के रहस्य को जानने का प्रयास किया लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर एक बार म्यांमार के सैनिकों ने हमला कर कब्र के खजाने को लूटने का प्रयास किया लेकिन उनको खून की उल्टियां शुरू हो गईं और वे सभी मारे गए।
39 अहोम शासक इन पिरामिडों में बनी कब्रों में चिरनिद्रा में सो रहे हैं। इन राजाओं को जिसने भी जगाने की कोशिश की, उसको मौत की नींद सोना पड़ा है। इन मोइडमों के साथ रहस्यों और दौलत की ऐसी दुनिया लिपटी हुई है कि जिसकी वजह से इन कब्रों पर बार-बार आक्रमण करने के साथ इनसे छेड़खानी की गई। जिसने भी उन कब्रों पर बर्बादी की लकीर खींची, मौत ने उसे गले लगा लिया।
लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि मोइडम की कब्रों में बेशुमार खजाना था जिसको लूटने की चाहना से लोग आते थे और लूटकर चले जाते थे। लूट के माल के बाद खजाने को लेकर आपस में ही झगड़कर मर जाते थे। इस तरह यहां रखा सोना पहले मुगलों, फिर अंग्रेजों और फिर बर्मा के सैनिकों ने लूट लिया।