हाल हाल ही में मथुरा की एक अदालत ने गुरुवार को वह याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली जिसमें शाही ईदगाह को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि ईदगाह का निर्माण केशवदेव मंदिर की जमीन पर किया गया, जो भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है। कृष्ण जन्मभूमि परिसर 13.37 एकड़ क्षेत्र में फैला है। याचिका के अनुसार मंदिर की भूमि पर ईदगाह बनाई गई है। विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का है जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। आओ जानते हैं मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर कब क्या हुआ?
1. वज्रनाभ ने बनाया सबसे पहले मंदिर : लोककथाओं और जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने ही सर्वप्रथम उनकी स्मृति में केशवदेव मंदिर की स्थापना की थी।
2. वसु ने बनाया पुन: मंदिर : इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के ब्राह्मी लिपि के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने 80-57 ईसा पूर्व इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
3. विक्रमादित्य ने कराया पुनर्निर्माण : काल के थपेड़ों ने मंदिर की स्थिति खराब बना दी थी। करीब 400 साल बाद गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने उसी स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया। इसका वर्णन चीनी यात्रियों फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी किया है।
4. महमूद गजनवी ने तुड़वा दिया मंदिर : विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस मंदिर को ईस्वी सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने कृष्ण मंदिर सहित मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे।
5. जज्ज नामक व्यक्ति ने फिर बनवाया मंदिर : ऐसा कहा जाता है कि गजनवी के द्वारा तुड़वाए गए मंदिर के बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया था।
6. सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा दिया था मंदिर : जज्ज द्वारा बनवाया गया यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
7. अकबर की सेना पहुंची मथुरा को नष्ट करने : मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के खंडहर थे। चौबे नाम के एक व्यक्ति ने जन्मभूमि पर एक चबूतरा बना दिया। शहर काजी ने इसकी शिकायत अकबर से की। अकबर ने चौबे का कत्ल करवा दिया।
8. ओरछा के राजा ने बनवाया पुन: भव्य मंदिर : ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने 1618 में ही पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवाया। यह इतना ऊंचा था कि यह आगरा से दिखाई देता था।
9. औरंगजेब ने तुड़वाया यह भव्य मंदिर : क्रूर बादशाह औरंगजेब ने 1669-70 ई. में एक आदेश देकर बुन्देला द्वारा बनवाए गए इस मंदिर को धूल में मिला दिया और मंदिर की ही सामग्री से उसके स्थान पर ईदगाह मस्जिद बना दी गई।
10. मराठाओं ने बनवाया मंदिर : 1770 में गोवर्धन में मुगल और मराठाओं के बीच भीषण जंग हुई और इसमें मराठा जीते। मराठा वीरों ने ईदगाह मस्जिद के पास 13.37 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण कराया, जो आगे चलकर देखरेख के अभाव में जर्जर हो गया।
11. पटनीमल राजा ने खरीदी भूमि : साल 1803 में अंग्रेजों ने आगरा और मथुरा पर कब्जा कर लिया और वर्ष 1815 में इस भूमि को नीलामी कर दिया जिसे वाराणसी के राजा पटनीमल ने खरीद लिया। 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके उत्तराधिकारियों को कानूनी अधिकार सौंप दिए गए थे। जिस पर ईदगाह भी बनी हुई है।
12. ईदगाह की भूमि पर विवाद : वर्ष 1920 से 1930 के बीच जमीन सौदे पर विवाद शुरू हो गया। मुसलमानों का दावा था कि जिस जमीन को अंग्रेजों ने राजा को बेचा, उसमें ईदगाह का भी हिस्सा है।
13. उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला के खरीदी भूमि : महामना मदनमोहन मालवीय की इच्छा के चलते उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला ने 7 फरवरी 1944 को कटरा केशवदेव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।
14. मुसलमानों ने दायर की याचिका : ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने ईदगाह की भूमि के संबंध में 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया कि संपूर्ण भूमि पर मंदिर ही था।
15. श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना : बिड़लाजी ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ट्रस्ट ने 1953 में मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया।
16. मंदिर का लोकार्पण : इसके बाद 1958 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिर का लोकार्पण हुआ। इसके बाद यहां गर्भगृह और भव्य भागवत भवन का पुनरुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। अब वर्तमान में जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर है।
17. श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान : श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के नाम से एक सोसाइटी 1 मई 1958 में बनाई गई थी। इसका नाम 1977 में बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया था।
18. मंदिर संस्थान और ईदगाह कमेटी में समझौता : 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ एवं शाही मस्जिद ईदगाह के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता किया गया कि 13.37 एकड़ भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे।
19. समझौते को किया रजिस्टर्ड : 17 अक्टूबर 1968 को यह समझौता पेश किया गया और 22 नवंबर 1968 को सब रजिस्ट्रार मथुरा के यहां इसे रजिस्टर किया गया था।
20. समझौते को रद्द करने की याचिका : अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने 25 सितंबर 2020 को मथुरा की अदालत में दायर की गई याचिका में कहा है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत है इसलिए उसे निरस्त किया जाए और मंदिर परिसर में स्थित ईदगाह को हटाकर वह भूमि मंदिर ट्रस्ट को सौंप दी जाए।
21. मस्जिद कमेटी की याचिका : मस्जिद कमेटी ने एक याचिका दायर कर कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा के स्थान अधिनियम 1991 के तहत ईदगाह के सौंपा नहीं जा सकता। इस एक्ट की धारा 4 के तहत 15 अगस्त 1947 को देश के जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, उनके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। न ही उनकी प्रकृति बदली जा सकती है। ऐसे में मस्जिद को हटाया नहीं जा सकता। इस पर कोर्ट ने 1991 के ही एक्ट की धारा 4 की उपधारा 2 का उल्लेख किया है।
22. नमाज के विरोध में याचिका: वर्ष 2022 में उत्तरप्रदेश के मथुरा की अदालत में विवादित शाही ईदगाह मस्जिद में होने वाली नमाज के विरोध में याचिका दाखिल करते हुए उस पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में वर्ष 1920 में चले एक मुकदमे का हवाला भी दिया गया है जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट रूप से ईदगाह की इस भूमि को हिन्दुओं की बताई गई है।