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उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य की 10 रोचक बातें

हमें फॉलो करें उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य की 10 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी

उज्जैन का प्राचीन नाम अवंतिका है। अवंतिका मालवा क्षेत्र का एक नगर है। मालवा वर्तमान मध्‍यप्रदेश राज्य का हिस्सा है। अवंतिका की गणना सप्तपुरियों में की जाती है। यहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी स्थापित है। पुण्य पवित्र नदी क्षिप्रा के तट पर बसी इन नगरी में कई महान राजा हुए हैं उन्हीं में से एक हैं चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें।
 
 
1. विक्रम संवत अनुसार अवंतिका (उज्जैन) के महाराजाधिराज राजा विक्रमादित्य आज से (2021 से) 2292 वर्ष पूर्व हुए थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)। कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार 14 ई. के आसपास कश्मीर में अंध्र युधिष्ठिर वंश के राजा हिरण्य के नि:संतान मर जाने पर अराजकता फैल गई थी। जिसको देखकर वहां के मंत्रियों की सलाह से उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को कश्मीर का राज्य संभालने के लिए भेजा था। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है।
 
2. विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। उनके पिता को महेंद्रादित्य भी कहते थे। उनके और भी नाम थे जैसे गर्द भिल्ल, गदर्भवेष। विक्रम की माता का नाम सौम्यदर्शना था जिन्हें वीरमती और मदनरेखा भी कहते थे। उनकी एक बहन थी जिसे मैनावती कहते थे। 
 
3. उनकी पांच पत्नियां थी, मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेवी। उनकी दो पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल और दो पुत्रियां प्रियंगुमंजरी (विद्योत्तमा) और वसुंधरा थीं। गोपीचंद नाम का उनका एक भानजा था। प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है। राज पुरोहित त्रिविक्रम और वसुमित्र थे। मंत्री भट्टि और बहसिंधु थे। सेनापति विक्रमशक्ति और चंद्र थे।
 
4. विक्रामादित्य के दरबार में नवरत्न रहते थे। कहना चाहिए कि नौ रत्न रखने की परंपरा का प्रारंभ उन्होंने ही किया था। उनके अनुसरण करते हुए कृष्णदेवराय और अकबर ने भी नौरत्न रखे थे। सम्राट अशोक के दरबार में भी नौरत्न थे। विक्रमादित्य के नौ रत्नों के नाम है- 1. धनवंतरी 2. क्षिपाका 3. अमरसिम्हा 4. शंकु 5. वेतालभट्ट 6. घटकारपारा 7. कालीदासा 8. वराहमिहिर 9. वररुचि। हालांकि यह भी कहा जाता है कि यह नवरत्न चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के काल में थे।
 
5. कहते हैं कि उन्होंने तिब्बत, चीन, फारस, तुर्क और अरब के कई क्षेत्रों पर शासन किया था। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सिम्हल (श्रीलंका) तक उनका परचम लहराता था। विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 'शायर उर ओकुल' में किया है। यही कारण है कि उन्हें चक्रवर्ती सम्राट महान विक्रमादित्य कहा जाता है।
 
6. उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने ही 57 ईसा पूर्व अपने नाम से विक्रम संवत चलाया था। उन्होंने शकों पर विजय की याद में यह संवत चलाया था। उनके ही नाम से वर्तमान में भारत में विक्रम संवत प्रचलित है। कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था। भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण बढ़ गया था। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रम सेना ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया। इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया। इस संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ से होती है, जो कि 3068 कलि अर्थात 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था। इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया।
 
7. महाकवि कालिदास की पुस्तक ज्योतिर्विदभरण के अनुसार उनके पास 30 मिलियन सैनिकों, 100 मिलियन विभिन्न वाहनों, 25 हजार हाथी और 400 हजार समुद्री जहाजों की एक सेना थी। कहते हैं कि उन्होंने ही विश्‍व में सर्व प्रथम 1700 मील की विश्व की सबसे लंबी सड़क बनाई थी जिसके चलते विश्व व्यापार सुगम हो चला था।
 
8. बाद के राजाओं में विक्रमादित्य से बहुत कुछ सिखा और उन राजाओं को विक्रमादित्य की उपाधि से नावाजा जाता था जो उनके नक्षे-कदम पर चलते थे। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय हुए जिन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य कहा गया। विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य 'हेमू' हुए। सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बाद 'विक्रमादित्य पंचम' सत्याश्रय के बाद कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए। उन्होंने लगभग 1008 ई. में चालुक्य राज्य की गद्दी को संभाला। राजा भोज के काल में यही विक्रमादित्य थे।
 
9. सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनके हालचाल जानने के लिए छद्मवेष धारण कर नगर भ्रमण करते थे। राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे। इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रीय राजाओं में से एक माने गए हैं। महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है।
 
10. सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से ही सिंहासन बत्तीसी और विक्रम वेताल नामक कथाएं जुड़ी हुई है। कहते हैं कि अवंतिका नगरी की रक्षा नगर के चारों और स्थित देवियां करती थीं, जो आज भी करती हैं। विक्रमादित्य को माता हरसिद्धि और माता बगलामुखी ने साक्षात दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद दिया था। मान्यता अनुसार उज्जैन के राजा महाकाल है और उन्हीं के अधिन रहकर कोई राजा राज करता था। विक्रमादित्य के जाने के बाद यहां के एकमात्र राजा अब महाकाल ही है। कहते हैं कि अवंतिका क्षेत्र में वही राजा रात रुक सकता है जो कि विक्रमादित्य जैसा न्यायप्रिय हो, अन्यथा उस पर काल मंडराने लगता है।
 
11. तुर्की के इस्ताम्बुल शहर की प्रसिद्ध लायब्रेरी मकतब-ए-सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है 'सायर-उल-ओकुल'। उसमें राजा विक्रमादित्य से संबंधित एक शिलालेख का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि '…वे लोग भाग्यशाली हैं, जो उस समय जन्मे और राजा विक्रम के राज्य में जीवन व्यतीत किया। वह बहुत ही दयालु, उदार और कर्तव्यनिष्ठ शासक था, जो हरेक व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचता था। ...उसने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच फैलाया, अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों को इस देश में भेजा ताकि शिक्षा का उजाला फैल सके। इन विद्वानों और ज्ञाताओं ने हमें भगवान की उपस्थिति और सत्य के सही मार्ग के बारे में बताकर एक परोपकार किया है। ये तमाम विद्वान राजा विक्रमादित्य के निर्देश पर अपने धर्म की शिक्षा देने यहां आए…।'

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