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हिन्दू धर्म अनुसार धरती और मनुष्य की उत्पत्ति का रहस्य जानिए

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मनुष्य की उत्पत्ति : मनुष्य की उत्पत्ति का सिद्धांत हर धर्म में अलग-अलग है। हालांकि विज्ञान सभी से अलग सिद्धांत प्रतिपादित करता है। यदि हम बाइबल में उल्लेखित आदम से लेकर ईसा मसीह तक के ईशदूतों की उम्र की गणना करें तो 3,572 वर्ष मनुष्य की उत्पत्ति के होते हैं। ईसाई मत के जानकार स्पीगल के अनुसार यह अवधि 6,993 वर्ष की मानी गई है और कुछ और संशोधनवादियों ने यह समय 7,200 वर्ष माना है अर्थात मनुष्य की उत्पत्ति हुए मात्र 7,200 वर्ष से कुछ अधिक समय व्यतीत हो चुका है। लेकिन हिन्दू धर्म में इसको लेकर भिन्न मान्यता है।
संसार के इतिहास और संवतसरों की गणना पर दृष्टि डालें तो ईसाई संवत सबसे छोटा अर्थात 2016 वर्षों का है। सभी संवतों की गणना करें तो ईसा संवत से अधिक दिन मूसा द्वारा प्रसारित मूसाई संवत 3,583 वर्ष का है। इससे भी प्राचीन संवत युधिष्ठिर के प्रथम राज्यारोहण से प्रारंभ हुआ था। उसे 4,172 वर्ष हो गए हैं। इससे पहले कलियुगी संवत शुरू 5,117 वर्ष पहले शुरू हुआ।
 
इब्रानी संवत के अनुसार 6,029 वर्ष हो चुके हैं, इजिप्शियन संवत 28,669 वर्ष, फिनीशियन संवत 30,087 वर्ष। ईरान में शासन पद्धति प्रारंभ हुई थी तब से ईरानियन संवत चला और उसे अब तक 1,89,995 वर्ष हो गए। ज्योतिष के आधार पर चल रहे चाल्डियन संवत को 2,15,00,087 वर्ष हो गए। खताई धर्म वालों का भी हमारे भारतीयों की तरह ही विश्वास है कि उनका आविर्भाव आदिपुरुष खता से हुआ। उनका वर्तमान संवत 8,88,40,388 वर्ष का है। चीन का संवत जो उनके प्रथम राजा से प्रारंभ होता है वह और भी प्राचीन 9,60,02,516 वर्ष का है।
 
अब हम अपने वैवस्तु मनु का संवत लेते हैं, जो 14 मन्वंतरों में से एक है। उससे अब तक का मनुष्योत्पत्ति काल 12,05,33,117 वर्ष का हो जाता है जबकि हमारे आदि ऋषियों ने किसी भी धर्मानुष्ठान और मांगलिक कर्मकांड के अवसर पर जो संकल्प पाठ का नियम निर्धारित किया था और जो आज तक ज्यों का त्यों चला आता है उसके अनुसार मनुष्य के आविर्भाव का समय 1,97,29,447 वर्ष होता है।
 
धरती की उत्पत्ति का रहस्य अगले पन्ने पर...
 

एवं विद्येरहौरात्रै: काल गत्योप लक्षितै:।
अपक्षितामि वास्यापि (ब्रह्माण:) परमापुर्वय: शतम्।।
यदर्धमायुषस्तस्य परार्धमभिधीयते।
पूर्व: परार्धोउपक्रान्तो हृपरोऽद्य प्रवर्तते।। -3/11-32-33
 
अर्थात ब्रह्माजी की आयु 100 वर्ष की है। उसमें पूर्व परार्ध (50 वर्ष) बीत चुका है व द्वितीय परार्ध प्रारंभ हो चुका। त्रैलोक्य की सृष्टि ब्रह्माजी के दिन प्रारंभ होने से होती है और दिन समाप्त होने पर उतनी ही लंबी रात्रि होती है। एक दिन एक कल्प कहलाता है।
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मनुस्मृति में कल्प की लंबाई के लिए लिखा है:-
देविकाना युगाना तु सहस्रं परिसंख्यया।
ब्राह्ममेकमहज्ञेयं तावतीं रात्रिमेव च।। 1/72
अर्थात ब्रह्माजी का एक दिन (कल्प) देवताओं के 1,000 युगों (चतुर्युगों) के बराबर होता है तथा उतनी ही लंबी रात्रि होती है।
 
यह एक दिन 1. स्वायम्भुव, 2. स्वारोचिष, 3. उत्तम, 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुष, 7. वैवस्वत, 8. सावर्णिक, 9. दक्ष सावर्णिक, 10. ब्रह्म सावर्णिक, 11. धर्म सावर्णिक, 12. रुद्र सावर्णिक, 13. देव सावर्णिक और 14. इन्द्र सावर्णिक- इन 14 मन्वंतरों में विभाजित किया गया है। इनमें से 7वां वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। 1 मन्वंतर 1000/14 चतुर्युगों के बराबर अर्थात 71/3/8 चतुर्युगों के बराबर होता है।
 
भिन्न संख्या पृथ्वी के 27/1/4 प्रतिशत झुके होने और 365/1/4 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा करने के कारण होती है। इस भिन्न को जैसा कि सूर्य सिद्धांत 1/19 के अनुसार 2 मन्वंतरों के बीच का संधिकाल मान लिया गया है जिसका परिमाण 4,800 दिव्य वर्ष (सतयुग काल) माना गया है अत: अब मन्वंतरों का काल=14*71=994 चतुर्युग। 
 
15 संधियों का समय=8400*15=72,000=6 चतुर्युग कुल 994+6=1,000 चतुर्युगों में मन्वंतर बंटे हैं और एक चतुर्युग 1,200 दिव्य वर्षों का हुआ। यहां प्रत्येक मन्वंतर के बीच 4,800 वर्ष का सतयुग होना बताया गया है। उससे यह बात पुष्ट हो जाती है कि कलयुग का द्वितीय चरण प्रारंभ होने से पूर्व 4,800 वर्षों तक धर्म की चरम उन्नति होगी और सतयुग जैसा सुख लोगों को मिलेगा। एक युग में अनेक युग बर्तने के सिद्धांत के आधार पर ऐसा प्रत्येक मन्वंतर में होता रहेगा।
 
महाभारत वन पर्व 188/22-26 में चतुर्युगों का परिमाण अलग-अलग बताते हुए लिखा गया है- 
4,000 दिव्य वर्षों (अर्थात 4-4 सौ वर्ष) उसके संध्या व संध्यांश होते हैं अर्थात कुल 8,400 वर्ष का सतयुग, 3,000 वर्षों का त्रेतायुग उसकी संध्या व संध्यांश के 3-3 सौ वर्ष कुल 3,600 वर्ष, 2,000 दिव्य वर्ष और 2-2 सौ संध्या व संध्यांश=2,400 वर्ष का द्वापर और 1,000 वर्ष व 1-1 सौ वर्ष का कुल 1,200 वर्ष का कलियुग। इस हिसाब से एक चतुर्युग 4800+3600+2400+1200 वर्ष =1,200 दिव्य वर्ष हुए।
 
अब दिव्य वर्ष का मनुष्य वर्ष से हिसाब लगाएं तो मनुस्मृति के अनुसार-
 
दवे रात्रहनी वर्ष प्रविभागस्तयो:पुन।
अहस्तत्रोद गयनं रात्रि: स्याद् दक्षिणायनम्।।
 
अर्थात देवताओं का एक दिव्य रात-दिन मनुष्य के 1 वर्ष के बराबर होता है। उत्तरायन सूर्य दिन और दक्षिणायन रात्रि होती है।
 
1. ब्रह्माजी (पृथ्वी की उत्पत्ति काल) 15वें वर्ष के प्रथम दिन के 6 मन्वंतर और 7 संधियां बिता चुके। 2. 7वें वैवस्वत मन्वंतर के 27 चतुर्युग अपनी संधियों के साथ बीत चुके। 3. प्रचलित 28वें चतुर्युग में भी प्रथम तीनों (सतयुग, द्वापर, त्रेता) युग बीत चुके। 4. अब कलियुग के विक्रम संवत 2073 तक 5,119 वर्ष बीत चुके।
 
इस हिसाब से 6 मन्वंतर=671 चतुर्युग=6*71*12,000 दिव्य वर्ष=51,12,000 दिव्य वर्ष। इनकी 7 संधियों का समय 33,600 दिव्य वर्ष, 7वें वैवस्वत मन्वंतर के 12,000*27=3,24,000 दिव्य वर्ष, 3 युग इस वैवस्वत के बीत चुके उनका योग 4,800+360+2,400 दिव्य वर्ष=10,800 कुल, 51,12,000+33,600+3,24,000+10,800= 5,480-400 दिव्य वर्ष।
 
दिव्य वर्ष में 360 का गुणा करने से मनुष्य वर्ष आ जाते हैं। (भारतीय मतानुसार वर्ष 360 दिन का ही होता है। प्रक्षेप संधियों के रूप में जुड़ गया)। वह 54,80,400*360=1,97,29,44,000 मनुष्य वर्ष होते हैं। इसमें कलियुग के 5,119 वर्ष जोड़ने से 1,97,29,44,000+5,119=19,72949,119 वर्ष अक्षरों में 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख उनपचार हजार 119 वर्ष पृथ्वी की आयु हुई। भूगर्भ शास्त्री यह आयु 1 अरब 98 करोड़ वर्ष निकालते हैं जबकि उनकी गणना पदार्थों के गुण से संयुक्त है और भारतीय आंकड़े शुद्ध गणित। दोनों में इतने हद तक साम्य भारतीय दर्शन की सत्यता और प्रामाणिकता ही सिद्ध करते हैं।

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