Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्यों प्रचलन में आया पत्नी का पतिव्रता होना, जानिए

हमें फॉलो करें क्यों प्रचलन में आया पत्नी का पतिव्रता होना, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

महाभारत के आदिपर्व में एक कथा आती है। कथा के अनुसार एक दिन राजा पांडु आखेट के लिए निकलते हैं। जंगल में दूर से देखने पर उनको एक हिरण दिखाई देता है। वे उसे एक तीर से मार देते हैं। वह हिरण एक ऋषि निकलते हैं, जो अपनी पत्नी के साथ मैथुनरत थे। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के भय से पांडु अपना राज्य अपने भाई धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ जंगल चले जाते हैं।
 
 
जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती पर-पुरुष के साथ नहीं सोना चाहती तो पांडु उसे यह कथा सुनाते हैं।
 
प्राचीनकाल में स्त्रियां स्वतंत्र थीं और वे जिसके साथ चाहें, उसके साथ समागम कर सकती थीं, जैसे पशु-पक्षी करते हैं। केवल ऋतुकाल में पत्नी केवल पति के साथ समागम कर सकती है अन्यथा वह स्वतंत्र है। यही धर्म था, जो नारियों का पक्ष करता था और सभी इसका पालन करते थे। लेकिन यह नियम बदल गया।
 
 
उद्दालक नाम के एक प्रसिद्ध मुनि थे जिनका श्वेतकेतु नाम का एक पुत्र था। एक बार जब श्वेतकेतु अपने माता-पिता के साथ बैठे थे, तभी एक परिव्राजक आया और श्वेतकेतु की मां का हाथ पकड़कर बोला, 'आओ चलें।' अपनी मां को इस तरह जाते हुए देखकर श्वेतकेतु बहुत क्रुद्ध हुए किंतु पिता ने उनको समझाया कि नियम के अनुसार स्त्रियां गायों की तरह स्वतंत्र हैं जिस किसी के भी साथ समागम करने के लिए।
webdunia
बाद में इन्हीं श्वेतकेतु द्वारा फिर यह नियम बनाया गया कि स्त्रियों को पति के प्रति वफादार होना चाहिए और पर-पुरुष के साथ समागम करने का पाप भ्रूणहत्या की तरह होगा।...तभी से सभ्य समाज पर जोर दिया जाने लगा और समाज में परिवारवाद को बढ़ावा मिला। सभ्य परिवार से सभ्य समाज का जन्म हुआ और इस तरह एक सभ्य राष्ट्र जन्मा। हमारे वैदिक ऋषियों ने समाज को सभ्य बनाया।
 
 
कौन थे श्वेतकेतु?
गौतम ऋषि के वंशज और उद्दालक-आरुणि के पुत्र श्वेतकेतु की कथा मूलत: उपनिषदों में आती है। वे एक तत्वज्ञानी आचार्य थे। पांचाल देश के निवासी श्वेतकेतु की उपस्थिति राजा जनक की सभा में भी थी। मतलब यह कि वे रामायण काल में हुए थे। अद्वैत वेदांत के महावाक्य 'तत्वमसि' का वाचन उनके पिता के मुख से ही हुआ था। ऋषि अष्टावक्र के भानजे श्वेतकेतु का विवाह देवल ऋषि की कन्या सुवर्चला के साथ हुआ था।
 
 
श्वेतकेतु ने ही समाज में यह नियम बनाया था कि पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के पास जाने वाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेने वाला पुरुष दोनों ही भ्रूणहत्या के अपराधी माने जाएं। उन्होंने ही पुरुषों के लिए एक पत्नीव्रत और महिलाओं के लिए प्रतिव्रत का नियम बनाकर इसे समाज में स्थापित कर परस्त्रीगमन पर रोक लगवाई थी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

12 मई 2018 का राशिफल और उपाय...