भारत प्राचीनकाल से ही पशु पालक और खेरी किसानी करने वाला देश रहा है। हालांकि कई विदेशी इतिहासकार खेती-बाड़ी का श्रेय फ्रांस, इंग्लैड या फिनलैंड जैसे देशों को देते हैं, जबकि भारत में कृषि का कार्य ईसा से 25 हजार वर्ष पूर्व से चला आ रहा है। यह आंकड़ा न भी माने तो ऋग्वेद काल से ही लोग खेती किसानी करते आ रहे हैं। आज भी भारत के बहुत से त्योहार खेती और किसानी से ही जुड़े हुए हैं।
1. संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में उल्लेख मिलता है कि अश्विन देवताओं ने राजा मनु को हल चलाना सिखाया। ऋग्वेद में एक स्थान पर अपाला ने अपने पिता अत्रि से खेतों की समृद्धि के लिए प्रार्थना की है।
2. अथर्ववेद के एक प्रसंग अनुसार सर्वप्रथम राजा पृथुवेन्य ने ही कृषि कार्य किया था। अथर्ववेद में 6,8 और 12 बैलों को हल में जोते जाने का वर्णन मिलता है।
3. यजुर्वेद में 5 प्रकार के चावल का मिलता है। यथाक्रम- महाब्राहि, कृष्णव्रीहि, शुक्लव्रीही, आशुधान्य और हायन। इससे यह सिद्ध होता है कि वैदिक काल में चावल की खेती भी होती थे।
4.श्रीराम की कई पीढ़ियों से पूर्व जैन ग्रंथों के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने कृषि, शिल्प, असि (सैन्य शक्ति), मसि (परिश्रम), वाणिज्य और विद्या- इन 6 आजीविका के साधनों की विशेष रूप से व्यवस्था की तथा देश व नगरों एवं वर्ण आदि का सुविभाजन किया था। इनके 2 पुत्र भरत और बाहुबली तथा 2 पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी थीं जिन्हें उन्होंने समस्त कलाएं व विद्याएं सिखाईं। इसी कुल में आगे चलकर इक्ष्वाकु हुए और इक्ष्वाकु के कुल में भगवान राम हुए। ऋषभदेव की मानव मनोविज्ञान में गहरी रुचि थी। उन्होंने शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के साथ लोगों को श्रम करना सिखाया। इससे पूर्व लोग प्रकृति पर ही निर्भर थे। वृक्ष को ही अपने भोजन और अन्य सुविधाओं का साधन मानते थे और समूह में रहते थे। ऋषभदेव ने पहली दफा कृषि उपज को सिखाया। उन्होंने भाषा का सुव्यवस्थीकरण कर लिखने के उपकरण के साथ संख्याओं का आविष्कार किया। नगरों का निर्माण किया। ऋग्वेद में ऋषभदेव की चर्चा वृषभनाथ और कहीं-कहीं वातरशना मुनि के नाम से की गई है। शिव महापुराण में उन्हें शिव के 28 योगावतारों में गिना गया है।
5. रामायण काल में राजा जनक को एक खेत से हल चलाते वक्त ही भूमि से माता सीता मिली थी। इसी प्रकार महाभारत में बलरामजी को हलधर कहा जाता है। उनके कंधे पर हमेशा एक हल शस्त्र के रूप में विराजमान रहता था। इससे यह सिद्ध होता है कि उस काल में भी खेती होती थी।
6. सिंधु घाटी के लोग बहुत सभ्य थे। वे नगरों के निर्माण से लेकर जहाज आदि सभी कुछ बनाना जानते थे। सिंधु सभ्यता एक स्थापित सभ्यता थी। उक्त स्थलों से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहां के लोग दूर तक व्यापार करने जाते थे और यहां पर दूर-दूर के व्यापारी भी आते थे। आठ हजार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धर्म, ज्योतिष और विज्ञान की अच्छी समझ रखते थे। इस काल के लोग जहाज, रथ, बेलगाड़ी आदि यातायात के साधनों का अच्छे से उपयोग करना सीख गए थे। सिंधु सभ्यता के लोगों को ही आर्य द्रविड़ कहा जाता है। आर्य और द्रविड़ में किसी भी प्रकार का फर्क नहीं है यह डीएनए और पुरातात्विक शोध से सिद्ध हो चुका है। इस सभ्यता के लोग कृषि कार्य करने के साथ ही गोपालन और अन्य कई तरह के व्यापार करते थे। सिंधु घाटी की मूर्तियों में बैल की आकृतियों वाली मूर्ति को भगवान ऋषभनाथ जोड़कर इसलिए देखा जाता।