Sita Navami 2023: माता सीता राजा जनक की दत्तक पुत्री थी। वाल्मीकि रामायण में सीता की एक बहन उर्मिला बताई है। मांडवी व श्रुतकीर्ति जनकजी के छोटे भाई कुशध्वज की बेटियां थी। मानस मैं सीता जनकजी की इकलौती बेटी बताई गई है। कुल मिलाकर सीताजी की तीन बहनें थीं। उनके भाई का नाम मंगलदेव है जो धरती माता के पुत्र हैं।
1. पहली कथा : देवी सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली। उस कन्या को हाथों में लेकर राजा जनक ने उसे 'सीता' नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।
2. दूसरी कथा : कहते हैं कि माता सीता नने अपने बचपन में एक बार खेल खेल ही में शिवजी के धनुष को उठा लिया था। यह देखकर राजा जनक समझ गए थे कि यह कोई साधारण बालिका नहीं है। इसीलिए उन्होंने सीता स्वयंवर में धनुष तो तोड़ने की प्रतियोगिता रखी, क्योंकि वह यह जानते थे कि इसे वहीं तोड़ सकता है जो महावीर होगा।
3. तीसरी कथा : एक बार सीताजी अपनी सहेलियों के साथ जनकजी के महल के बगीचे में खेल रही थी। वहां पर एक वृक्ष पर उन्होंने तोते के एक जोड़े को देखा। दोनों आपस में बाते कर रहे थे। एक ने कहा कि अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार हैं जिनका नाम श्रीराम है। उनसे सीताजी का विवाह होगा। सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगीं। उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई। सखी सहेलियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए।
सीता ने उन्हें प्यार से सहलाया और कहा- भय मत करो! तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो। यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला? मुझसे डरने होने की जरूरत नहीं। दोनों का डर समाप्त हुआ। वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं। दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं। वे उनके आश्रम में ही रहते हैं। वाल्मिकी रोज श्रीराम और सीता के जीवन की चर्चा करते हैं। उन्होंने वहीं यह सब सुना जो अब सब कंठस्थ हो गया है।
सीता ने और पूछा तो तोते ने कहा- दशरथ पुत्र श्री राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी। तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी। सीता पूछती जातीं और तोता उसका उत्तर देते जाते। दोनों थक गए। उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है। कई माह लगेंगे सुनाने में। दोनों उड़ने को तैयार हुए।
यह देख सीता ने कहा- तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया। उनके बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई है। जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो। तोती ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है। पेड़ों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं। मैं गर्भवती हूं। मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है। सीताजी नहीं मानी। तोते ने कहा- आप जिद न करें। जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाऊंगा। अभी तो हमें जाने दें।
सीता ने कहा- ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी। मैं इसे कष्ट न होने दूंगी। तोते को पत्नी से बड़ा प्रेम था। वह अकेला जाने को तैयार न था। जब तोते को लगा कि वह सीता के चंगुल से मुक्त नहीं हो सकता तो विलाप करने लगा- मुनियों ने सत्य कहा है, मौन रहना चाहिए। यदि हम कथा न कहते तो मुक्त होते।
तोती अपने पति से विछोह सहन नहीं कर पा रही थी। उसने सीता को कहा- आप मुझे पति से अलग न करें। मैं आपको शाप दे दूंगी। सीता हंसने लगीं। उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो। राजकुमारी को पक्षी के शाप से क्या बिगड़ेगा। तोती ने शाप दिया- एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा। शाप देकर तोती ने प्राण त्याग दिए।
पत्नी को मरता देख तोता क्रोध में बोला- अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूंगा। वही तोता बाद में अयोध्या का धोबी बना जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्काषित कर दें।