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16 महाजनपद : अब पांचाल जनपद कहां है, जानिए

हमें फॉलो करें 16 महाजनपद : अब पांचाल जनपद कहां है, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

प्राचीन भारत में महाजनपद के अंतर्गत सैंकड़ों स्वतंत्र जनपद हुआ करते थे। सभी महाजनपद मिलकर एक भारत का रूप लेते थे परंतु सभी की सत्ता स्वतंत्र थी। इसमें जो चक्रवर्ती सम्राट होता था उसी का संपूर्ण भारत पर अधिकार होता था। भारत में ऐसे कई शासक हुए हैं जिन्होंने संपूर्ण भारत पर एकछत्र राज किया है। महाभारत में ऐसे लगभग 16 राजाओं का उल्लेख मिलता है। रामायण और महाभारत के काल में जनपदों की संख्या और उनके क्षेत्र अलग अलग हुआ करते थे। आओ जानते हैं कि महाभारत काल में पांचाल जनपद कहां था और वर्तमान में उस क्षेत्र को अब क्या कहते हैं।
 
 
महाभारत काल के जनपद : दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कम्बोज, गान्धार, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, शल्य, कुरु, पांचाल, कोसल, शूरसेन, किरात, निषाद, मत्स, चेदि, उशीनर, वत्स, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालवा, अश्मक, कलिंग, कर्णाटक, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं। इनमें से प्रमुख 30 ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, निषाद, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य धर्म का पालन करने वाले लोगों ने भाग लिया था।
 
 
बाद में महाभारत के अनुसार भारत को मुख्‍यत: 16 जनपदों में स्थापित किया गया। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। इन 16 जनपदों में से एक जनपद का नाम कंबोज था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कंबोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। भारतीय जनपदों में राज्याणि, दोरज्जाणि और गणरायाणि शासन था अर्थात राजा का, दो राजाओं का और जनता का शासन था।
 
 
राम के काल के जनपद : राम के काल 5114 ईसा पूर्व में 9 प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उपजनपद होते थे। ये 9 इस प्रकार हैं- 1.मगध, 2.अंग (बिहार), 3.अवन्ति (उज्जैन), 4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती), 5.सूरसेन (मथुरा), 6.धनीप (राजस्थान), 7.पांडय (तमिल), 8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) और 9.मलय (मलावार)।
 
 
16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12.मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। उक्त 16 महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे।
 
 
पांचाल : बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा काम्पिल्य। कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैले हुए इस जनपद की दो शाखाएं थीं- 1. उत्तर पांचाल (राजधानी अहिच्छत्र), 2. दक्षिण पांचाल (राजधानी कांपिल्य)। कहते हैं कि द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। इसके नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में 'कंपिला' रूप में मिलता है। पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया। 
 
कनिंघम के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था। पांचाल को पांच कुल के लोगों ने मिलकर बसाया था। यथा किवि, केशी, सृंजय, तुर्वसस और सोमक। यह भी कहा जाता है कि इसका यह नाम राजा हर्यश्व के पांच पुत्रों के कारण पड़ा था। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन की सहायता से पंचालराज द्रुपद को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी कांपिल्य थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को अपने अधीन कर लिया था।
 
संदर्भ : महाभारत आदिपर्व व सभापर्व।

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