Qutubminar ya Surya Stambha
History of Qutub Minar Or Surya dhruv stambha : कुतुब मीनार, ध्रुव स्तंभ, विष्णु स्तंभ या सूर्य स्तंभ, क्या कहें? इसी कुतुब मीनार के एक ओर एक मस्जिद बनी हुई है जिसे कुबत−उल−इस्लाम मस्जिद और इसके दूसरी ओर एक लौह स्तंभ लगा हुए है, जिस पर संस्कृत में कुछ लिखा हुआ है। आओ जानते हैं कि क्या कुतुब मीनार विक्रमादित्य का सूर्य स्तम्भ है?
मुस्लिम पक्ष : कहते हैं कि कुतुबमीनार का निर्माण मोहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में शुरू करवाया था। फिर उसके दामाद मशुद्दीन इल्तुतमिश ने 1368 में इसका निर्माण पूरा कराया। फिर सन् 1386 में फिरोजशाह तुगलक ने इसका जीर्णोद्धार कराया। यहीं पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण भी कराया। कुतुबुद्दीन के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा जबकि कुछ बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुबमीनार पड़ा।
हिन्दू पक्ष : कुतुब मीनार को पहले विष्णु स्तंभ कहा जाता था। इससे पहले इसे सूर्य स्तंभ कहा जाता था। इसके केंद्र में ध्रुव स्तंभ था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है। ज्योतिष मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड में ध्रुव तारा केंद्र में है। यह एक वेधशाला थी जिसके आसपास मंदिर बने थे। जिसमें नवग्रह के मंदिर भी थे। इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में में ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने दाव किया है कि कुतुब मीनार का निर्माण पांचवीं शताब्दी में सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कराया था। विक्रमादित्य ने ये मीनार इसलिए बनवाई थी, क्योंकि वे सूर्य की स्थितियों पर अध्ययन करना चाहते थे। यह कुतुब मीनार नहीं सूर्य स्तंभ है।
शर्मा के अनुसार कुतुब मीनार के स्तंभ में 25 इंच का झुकाव इसलिए हैं क्योंकि यहां से सूर्य का अध्ययन किया जाता था। इसीलिए 21 जून को सूर्य आकाश में जगह बदल रहा था तब भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ी। यह विज्ञान है और एक पुरातात्विक साक्ष्य भी।... इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके।
वराहमिहिर की वेधशाला : एक अन्य दावों के अनुसार यह एक वेधशाला थी जो वराहमिहिर की देखरेख में चंद्रगुप्त द्वितीय के आदेश से बनी थी। ऐसा भी कहते हैं कि समुद्रगुप्त ने दिल्ली में एक वेधशाला बनवाई थी, यह उसका सूर्य स्तंभ है। कालान्तर में अनंगपाल तोमर और पृथ्वीराज चौहान के शासन के समय में उसके आसपास कई मंदिर और भवन बने, जिन्हें मुस्लिम हमलावरों ने दिल्ली में घुसते ही तोड़ दिया था। उनमें से एक मंदिर को तोड़कर 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण किया गया।
कुतुब मीनाकर के संबंध में प्रो. एमएस भटनागर गाजियाबाद ने दो लेख लिखे हैं जिनमें इसकी उत्पत्ति, नामकरण और इसके इतिहास की समग्र जानकारी है। यह मीनार वास्तव में ध्रुव स्तम्भ है या जिसे प्राचीन हिंदू खगोलीय वेधशाला का एक मुख्य निगरानी टॉवर या स्तम्भ है। दो सीटों वाले हवाई जहाज से देखने पर यह टॉवर 24 पंखुड़ियों वाले कमल का फूल दिखाई देता है। इसकी एक-एक पंखुड़ी एक होरा या 24 घंटों वाले डायल जैसी दिखती है। चौबीस पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की इमारत पूरी तरह से एक हिंदू विचार है। इसे पश्चिम एशिया के किसी भी सूखे हिस्से से नहीं जोड़ा जा सकता है जोकि वहां पैदा ही नहीं होता है।
लौह स्तंभ : 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद के परिसर में एक 5 मीटर ऊंचा शुद्ध लोहे का स्तंभ है। इसकी खासियत यह है कि आज तक इस पर कभी जंग नहीं लगा। इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375-412) ने कराया है। लोह स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तम्भ विष्णुपाद गिरि नामक पहाड़ी पर बना था। इस विवरण से साफ होता है कि टॉवर के मध्य स्थित मंदिर में लेटे हुए विष्णु की मूर्ति को मोहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ने नष्ट कर दिया था।
फैक्ट्स : कुतुब मीनार को गौर से देखने पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह एक हिन्दू इमारत है, जिसमें कमल के फूल, ब्रह्मा की मूर्ति, ग्रहों की मूर्तियां, नष्ट कर दी गई विष्णु मूर्ति के अवशेष, हिंदू डिजाइन के सुंदर चित्रवल्लरी वाली धारियों, हिन्दू शैली में बनी मस्जिद, मस्जिद परिसर में लौहा स्तंभ का होगा आदि सैंकड़ों ऐसे फैक्ट है जो यह साबित करते हैं कि इस जगह को तोड़कर रिकंस्ट्रक्शन करके इसे इस्लामिक लुक देने का प्रयास किया गया। जिस मंदिर को उसने नष्ट भ्रष्ट कर दिया था, उसे ही कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का नाम दिया। कुतुब मीनार से निकाले गए पत्थरों के एक ओर हिंदू मूर्तियां थीं जबकि इसके दूसरी ओर अरबी में अक्षर लिखे हुए हैं। इन पत्थरों को अब म्यूजियम में रख दिया गया है। मीनार पर अंकित कुरान की आयतें एक जबर्दस्ती और निर्जीव डाली हुई लिखावट है जो कि पूरी तरह से पर ऊपर से लिखी गई हैं।
इससे यह बात साबित होती है कि मुस्लिम हमलावर हिंदू इमारतों की स्टोन-ड्रेसिंग या पत्थरों के आवरण को निकाल लेते थे और मूर्ति का चेहरा या सामने का हिस्सा बदलकर इसे अरबी में लिखा अगला हिस्सा बना देते थे। बहुत सारे परिसरों के खम्भों और दीवारों पर संस्कृत में लिखे विवरणों को अभी भी पढ़ा जा सकता है। कॉर्निस में बहुत सारी मूर्तियों को देखा जा सकता है लेकिन इन्हें तोड़फोड़ दिया गया है।
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