Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई?

हमें फॉलो करें राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई?

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वेद, पुराण आदि धर्मशास्त्रों में प्राचीनकाल की कई मानव जातियों का उल्लेख मिलता है- देवता, असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि। देवताओं की उत्पत्ति अदिति से, असुरों की दिति से, दानवों की दनु, कद्रू से नाग की मानी गई है।

ये तीनों ही कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं। जहां तक राक्षस जाति का सवाल है तो प्रारंभिक काल में यक्ष और रक्ष ये दो ही तरह की मानव जातियां थीं।

राक्षस लोग पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी प्रवृत्तियां बदलने के कारण ये अपने कर्मों के कारण बदनाम होते गए और आज के संदर्भ में इन्हें असुरों और दानवों जैसा ही माना जाता है।

 

अगले पन्ने पर कैसे और किसने की राक्षसों की उत्पत्ति...


पुराणों अनुसार कश्यप की सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए, लेकिन एक कथा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए और जिन्होंने यक्षण (पूजन) करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।

राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- 'हेति' और 'प्रहेति'। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी।

अगले पन्ने पर हेति ने कैसे बढ़ाया अपना साम्राज्य और...


हेति ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु 'काल' की पुत्री 'भया' से विवाह किया। भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका विवाह संध्या की पुत्री 'सालकटंकटा' से हुआ। माना जाता है कि 'सालकटंकटा' व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। बस यहीं से राक्षस जाति में बदलाव आया...।

अगले पन्ने पर आखिर किसने पाला विद्युत्केश के पुत्र को, जानिए...


पुराणों अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की। उस अबोध बालक को त्याग देने के कारण मां पार्वती ने शाप दिया कि अब से राक्षस जाति की स्त्रियां जल्द गर्भ धारण करेंगी और उनसे उत्पन्न बालक तत्काल बढ़कर माता के समान अवस्था धारण करेगा। इस शाप से राक्षसों में शारीरिक आकर्षण कम, विकरालता ज्यादा रही।

शिव और पार्वती ने उस बालक का नाम 'सुकेश' रखा। शिव के वरदान के कारण वह निर्भीक था। वह निर्भीक होकर कहीं भी विचरण कर सकता था। शिव ने उसे एक विमान भी दिया था।

अगले पन्ने पर पढ़ें, ‍सुकेश ने किया किससे विवाह...


सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के तीन पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2. सुमाली और 3. माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

इन तीनों भाइयों ने शक्ति और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और तीनों भाइयों में एकता और प्रेम बना रहने का वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से ये तीनों भाई अहंकारी हो गए।

तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा से त्रिकुट पर्वत के निकट समुद्र तट पर लंका का निर्माण कराया और उसे अपने शासन का केंद्र बनाया। इस तरह उन्होंने राक्षसों को एकजुट कर राक्षसों का आधिपत्य स्थापित किया और उसे राक्षस जाति का केंद्र भी बनाया।

लंका को उन्होंने धन और वैभव की धरती बनाया और यहां तीनों राक्षसों ने राक्षस संस्कृति के लिए विश्व विजय की कामना की। उनका अहंकार बढ़ता गया और उन्होंने यक्षों और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया जिससे संपूर्ण धरती पर आतंक का राज कायम हो गया।

अगले पन्ने पर किसने तीनों भाइयों को खदेड़ दिया लंका से...


माल्यवान, सुमाली और माली से त्रस्त होकर सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब विष्णु ने तीनों भाइयों से युद्ध किया लेकिन तीनों भाइयों और राक्षस जाति की एकजुटता के चलते विष्णु के लिए उन्हें हराना मुश्किल हो गया था, तब भगवान विष्णु ने अपनी संपूर्ण शक्ति से तीनों भाइयों को लंका से खदेड़ दिया र तीनों भाइयों ने रसातल में जाकर अपनी जान बचाई।

इन्हीं तीनों भाइयों के वंश में आगे चलकर राक्षस जाति का विकास हुआ। तीनों भाइयों के वंशज में माल्यवान के वज्र, मुष्टि, धिरूपार्श्व, दुर्मख, सप्तवहन, यज्ञकोप, मत्त, उन्मत्त नामक पुत्र और अनला नामक कन्या हुई।

सुमाली के प्रहस्त, अकन्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राश, दण्ड, सुपार्श्व, सहादि, प्रधस, भास्कण नामक पुत्र तथा रांका, पुण्डपोत्कटा, कैकसी, कुभीनशी नामक पुत्रियां हुईं। इनमें से कैकसी रावण की मां थी। माली रावण के नाना थे। रावण ने इन्हीं के बलबूते पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया और शक्तियां बढ़ाईं।

माली के अनल, अनिल, हर और संपात्ति नामक चार पुत्र हुए। ये चारों पुत्र रावण की मृत्यु पश्चात विभीषण के मंत्री बने थे। रावण राक्षस जाति का नहीं था उसकी माता राक्षस जाति की थी लेकिन उनके पिता यक्ष जाति के ब्राह्मण थे।

अगले पन्ने पर, पढ़ें, फिर लंका पर किसका राज हुआ...


जब माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षसों को लंका से खदेड़ दिया गया, तब लंका को प्रजापति ब्रह्मा ने धनपति कुबेर को सौंप दिया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।

कुबेर तपस्वी थे। वे तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल बने। इनके अनुचर यक्ष निरंतर इनकी सेवा करते हैं। कुबेर रावण के सौतेले भाई होने के बावजूद राक्षस जाति या संस्कृति से नहीं थे। भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है इसीलिए कुबेर पूज्यनीय माने जाते हैं।

अगले पन्ने पर फिर से कैसे लंका पर राक्षस जाति का शासन हुआ..


रावण को राक्षसों का अधिपति बनाया गया, तब रावण ने राक्षस जाति के खोए हुए सम्मान को पुन: प्राप्त करने का वचन लिया और अपना विश्व विजय अभियान शुरू किया। इस विजय अभियान में रावण ने स्वयं भगवान शिव से भी टक्कर ली।

कुबेर ने रावण के अत्याचारों के विषय में सुना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़कर यक्षों पर अत्याचार करना बंद करे।

रावण द्वारा नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गए थे। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर को इस घटना से बहुत आघात पहुंचा।

अंत में रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष जहां यक्ष बल से लड़ते थे और वहीं राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण मायावी था और उसके पास कई प्रकार ‍की सिद्धियां थीं। उसने मायावी रूप धारण कर कुबेर के सिर पर प्रहार कर उन्हें घायल कर दिया और बलपूर्वक उनका पुष्पक विमान उनसे छीन लिया।

रावण ने यह कार्य अपनी माता कैकसी के कहने पर किया। कुबेर को रावण ने लंका से खदेड़ दिया और उनकी समस्त संपत्ति भी छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गए। पितामह की प्रेरणा से कुबेर ने शिवआराधना हेतु हिमालय चले गए। जहां उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ।

रावण ने लंका को नए सिरे से बसाकर राक्षस जाति को एकजुट किया और फिर से राक्षस राज कायम किया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi