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श्रीलंका और भगवान राम, जानिए महत्वपूर्ण स्थान

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अनिरुद्ध जोशी

अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था।
कई ऐसे लोग हैं, जो प्रभु श्रीराम के इतिहास को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं। कुछ तथाकथित विद्वान कहते हैं कि रामायण काल की लंका आज की श्रीलंका नहीं, बल्कि भारत के अमरकंटक के पास एक विशेष स्थान को रावण की लंका कहा जाता था तो कोई कहता है कि यह लंका जावा या सुमात्रा के पास कहीं थी। ऐसे सारे दावे तथ्‍यहीन हैं।
 
दरअसल, रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था। लंका को जीतकर रावण ने उसको अपना नया निवास स्‍थान बनाया।
 
श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। ऐसा माना जाता है कि जंगलों के बीच रानागिल की विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने तपस्या की थी। रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान को भी ढूंढ लिया गया है।
 
श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा ‍किया गया है। बाकायदा इसके सबूत भी पेश किए गए हैं।
 
रावण ने कुबेर को लंका से हटाकर वहां खुद का राज्य कायम किया था। धनपति कुबेर के पास पुष्पक विमान था जिसे रावण ने छीन लिया था। रामायण में उल्लेख मिलता है कि यह पुष्पक विमान इच्छानुसार छोटा या बड़ा हो जाता था तथा मन की गति से उड़ान भरता था।
 
वाल्मीकि रामायण में लंका को समुद्र के पार द्वीप के मध्य में स्थित बताया गया है अर्थात आज की श्रीलंका के मध्य में रावण की लंका स्थित थी। श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का प्राचीनकाल से ही भारत से घनिष्ठ संबंध था। भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित 'जानकी हरण' के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे। कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे। इसे पहले 700 ईसापूर्व श्रीलंका में 'मलेराज की कथा' की कथा सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही, जो राम के जीवन से जुड़ी है। 
 
अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था। आओ जानते हैं राम का श्रीलंका से संबंध...
 
अगले पन्ने पर कैसे बना रामसेतु...
 

रामसेतु : रामसेतु पुल आज के समय में भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। वाल्मीकि के अनुसार 3 दिन की खोजबीन के बाद नल और नील ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उक्त स्थान से लंका तक का पुल निर्माण करने का फैसला लिया गया। उस स्थान को धनुषकोडी कहा जाता है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार धनुष के समान ही है। 
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नल और नील के सान्निध्य में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पत्‍थर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान की भाषा में ‘प्यूमाइस स्टोन' कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता है। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था। आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थर हैं।
 
तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी, जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है।
 
प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है, जो इसे पानी से हल्का बनाती है जिस कारण यह डूबता नहीं है। लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है। यही कारण है कि रामसेतु पुल कुछ समय बाद डूब गया था और बाद में इस पर अन्य तरह के पत्थर जमा हो गए। माना जाता है कि आज भी समुद्र के निचले भाग पर रामसेतु मौजूद है।
 
अगले पन्ने पर... पुल पार करने के बाद...
 

लंका में प्रस्थान : पुल पार करने के बाद राम और वानर सेना को घने जंगलों व ऊंची-ऊंची पहाड़ियों का सामना करना पड़ा। राम सेतु को पार करने के बाद लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के कई भंवरजाल हैं, जहां पर रावण ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा था।
 
अगले पन्ने पर जहां विमान से उतारा था सीता माता को...

वेरांगटोक : महियांगना मध्य, श्रीलंका स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र, जो वेरांगटोक (जो महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है) में है, को रावण के हवाई अड्डे का क्षेत्र कहा जाता है। यहीं पर रावण ने सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था।
 
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वैलाव्या और ऐला के बीच 17 मील लंबे मार्ग पर रावण से जुड़े अवशेष अब भी मौजूद हैं। श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के 4 हवाई अड्डे थे। उनके 4 हवाई अड्डे ये हैं- उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला। इन 4 में से एक उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। कमेटी के अनुसार सीता की तलाश में जब हनुमान लंका पहुंचे तो लंका दहन में रावण का उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था।
 
उसानगोड़ा हवाई अड्डे को स्वयं रावण निजी तौर पर इस्तेमाल करता था। यहां रनवे लाल रंग का है। इसके आसपास की जमीन कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है। रिसर्च कमेटी के अनुसार पिछले 4 साल की खोज में ये हवाई अड्डे मिले हैं। कमेटी की रिसर्च के मुता‍बिक रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है।
 
श्री रामायण रिसर्च कमेटी : वर्ष 2004 में पंजाब के बांगा इलाके के रहने वाले अशोक कैंथ श्रीलंका में अशोक वाटिका की खोज की सुर्खियां में आया था। श्रीलंका सरकार ने 2007 में रिसर्च कमेटी का गठन किया।
 
कमेटी में श्रीलंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलवम, ऑस्ट्रेलिया के डेरिक बाक्सी, श्रीलंका के पीवाई सुंदरेशम, जर्मनी की उर्सला मुलर, इंग्लैंड की हिमी जायज शामिल हैं। अब तक कमेटी ने श्रीलंका में रावण के महल, विभीषण महल, श्रीगुरु नानक के लंका प्रवास पर रिसर्च की है।
 
अगले पन्ने पर यहां रखा गया था सीता माता को...
 

सीता एलिया :  सीता एलिया श्री लंका में स्थित वह स्थान है जहां रावण ने माता सीता को बंदी बना कर रखा था। माता सीता को सीता एलिया में एक वाटिका में रखा गया था जिसे अशोक वाटिका कहते हैं। वेरांगटोक से सीता माता को जहां ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है जिसे अब 'सीतोकोटुवा' नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है। एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे 'सीता एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। यह मंदिर सीता अम्मन कोविले नाम से प्रसिद्ध है।
 
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सीता एलिया में रावण की भतीजी त्रिजटा, जो सीता की देखभाल के लिए रखी गई थी, के साथ सीता को रखा गया था। यह स्थान न्यूराएलिया से उदा घाटी तक जाने वाली एक मुख्य सड़क पर 5 मील की दूरी पर स्थित है।
 
इस क्षेत्र में लाखों की तादाद में आज भी अशोक के लंबे-लंबे वृक्ष विद्यमान हैं। अशोक वृक्षों की अधिकता होने के कारण ही इसे अशोक वाटिका कहा जाता है। मंदिर के पास ही से 'सीता' नाम से एक नदी बहती है जिसका निर्मल और शीतल जल पीकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। नदी के इस पार मिट्टी का रंग पीला है तो उस पार काला। मान्यता अनुसार उस पार के क्षेत्र को हनुमानजी ने अपनी पूंछ से लगा दिया था। 
 
इस स्थान की शिलाओं पर आज भी हनुमानजी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। कार्बन डेटिंग से इसकी उम्र लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व की आंकी गई है। यहां सीता माता के मंदिर में राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीताजी की जो मूर्तियां रखी हैं उनकी कार्बन डेटिंग से पता चला कि वह भी 5,000 वर्ष पुरानी है। आज जिस स्थान पर मंदिर है वहां कभी विशालकाय वृक्ष हुआ करता था जिसके नीचे माता सीता बैठी रहती थीं।
 
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रावण का महल : श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है।
 
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सीता एलिया में स्थित अशोक वाटिका से कुछ दूर ही रावण का महल स्थित था। कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें वह अपनी पटरानी मंदोदरी के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। इस महल को पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। यह जला हुआ महल आज भी मौजूद है।
 
'रावण एल्ला' नाम से एक झरना है, जो एक अंडाकार चट्टान से लगभग 25 मीटर अर्थात 82 फुट की ऊंचाई से गिरता है। 'रावण एल्ला' वॉटर फॉल घने जंगलों के बीच स्थित है। यहां 'सीता' नाम से एक पुल भी है। इसी क्षेत्र में रावण की एक गुफा भी है जिसे 'रावण एल्ला' गुफा के नाम से जाना जाता है। यह गुफा समुद्र की सतह से 1,370 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान श्रीलंका के बांद्रावेला से 11 किलोमीटर दूर है।
 
लोरानी सेनारत्ने, जो लंबे समय तक श्रीलंका के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबंधित रही हैं और श्रीलंका की इटली में राजदूत भी रह चुकी हैं, ने अपनी पुस्तक 'हेअरस टू हिस्ट्री' में पहले 2 भाग रावण पर ही लिखे हैं। उनके अनुसार रावण 4,000 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। रावण चमकते हुए दरवाजे वाले 900 कमरों के महल में निवास करता था। देश के अन्य भागों में उसके 25 महल या आरामगाहें थीं। -डॉ. विद्याधर की शोध पुस्तिका 'रामायण की लंका' से अंश। (साभार : पांचजञ्य)
 
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यहां रखा है शव! : ऐसा माना जाता है कि रैगला (रानागिल) के जंगलों के बीच एक विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने घोर तपस्या की थी। यह स्थान श्रीलंका के बांद्रावेला से 11 किलोमीटर दूर है।
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अगस्त, 1971 में एक बौद्ध भिक्षु ने दावा किया था कि एक पर्वत शिखर पर बने सुदृढ़ किले में रावण का शव अपनी पूर्व अवस्था में अब भी सुरक्षित रखा हुआ है। -डॉ. विद्याधर की शोध पुस्तिका 'रामायण की लंका' से अंश। (साभार : पांचजञ्य)
 
उसी गुफा में आज भी रावण का शव सुरक्षित रखा हुआ है। रैगला के घने जंगलों और गुफाओं में कोई नहीं जाता है, क्योंकि यहां जंगली और खूंखार जानवरों का बसेरा है।
 
रैगला के इलाके में रावण की यह गुफा 8 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां 17 फुट लंबे ताबूत में रखा है रावण का शव। इस ताबूत के चारों तरफ लगा है एक खास लेप जिसके कारण यह ताबूत हजारों सालों से जस का तस रखा हुआ है।
 
गौरतलब है‍ कि मिस्र में प्राचीनकाल में ममी बनाने की परंपरा थी, जहां आज भी पिरामिडों में हजारों साल से कई राजाओं के शव रखे हुए हैं। यह भी जानना जरूरी है कि उस समय शैव संप्रदाय में समाधि देने की रस्म थी और रावण एक शिवभक्त था।
 
अगले पन्ने पर महत्वपूर्ण जानकारी...
 

शोधकर्ता डॉ. विद्यासागर ने इस कई वर्षों पहले इस पर एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'रामायण की लंका' था। उनकी 31 पृष्ठ की पुस्तक रामायण की लंका में अनेक अंश हैं जिनमें वाल्मीकि रामायण के वर्णन के अनुसार विभिन्न स्थानों की भौतिक स्थितियों और स्थानीय मान्यताओं का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इससे पहले अपने विस्तृत अध्ययन के बाद डॉ. विद्यासागर ने 'सर्चलाइट' नामक अखबार में अपनी खोज का विवरण 4 कड़ियों में प्रकाशित कराया था।
 
विद्याधर की किताब के अनुसार सिंहल इतिहास एवं संस्कृति की दृष्टि से श्रीलंका के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ 'महावंसा' में मातले के पास लंकापुरा का नाम आता है। रावण के शासनकाल में यह नगर बहुत महत्वपूर्ण था। ईसा पूर्व 2,387 में रावण की मृत्यु के तुरंत बाद लंका का कुछ अंश जलमग्न हो गया था। इस घटना के पूर्व लंका की परिधि 5,120 मील थी और बाद में इसकी परिधि केवल 2,992 मील रह गई। महावंसा के द्वितीय शासक पांडुवा (जिन्होंने ईसा पूर्व 504 से 474 तक शासन किया) के काल में दुबारा श्रीलंका का कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गया। इसके बाद श्रीलंका पर एक गंभीर विपत्ति देवानाम पिया तिस्सा और उसके सामंत केलनिया तिस्सा (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) के काल में आई। इसके फलस्वरूप लंका का आकार केवल 928 मील रह गया।
 
इसी पुस्तक में आगे लिखा है कि श्रीलंका के शिक्षा प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित सिंहल रीडर- भाग 3 में रावण पर 2 पाठ दिए गए हैं। पाठ 5 का शीर्षक है- 'डांडू मोनरया' (अर्थात मयूररूपी विमान) और पाठ 6 का शीर्षक 'राम-रावण युद्ध' है।
 
संदर्भ :
* पांचजञ्य पत्रिका
* वैदिक युग और रामायण काल की ऐतिहासिकता : समुद्री की गहराइयों से आकाश की ऊंचाइयों तक के वैज्ञानिक प्रमाण (सरोज बाला, अशोक भटनागर, कुलभूषण मिश्रा)
* चित्र सौजन्य : यूट्यूब
 

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