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यहूदी, पारसी, ईसाई और इस्लाम धर्म कैसे आया भारत में...

हमें फॉलो करें यहूदी, पारसी, ईसाई और इस्लाम धर्म कैसे आया भारत में...
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बौद्ध काल और गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल माना जाता है। इसी काल में भारत के विदेशियों से संपर्क पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ा। सम्राट चंद्रगुप्त, अशोक और विक्रमादित्य ने ईरान, अरब तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। यह काल बौद्ध उत्थान का काल था। लेकिन मध्यकाल में इस्लाम और ईसाइयत के विस्तारवादी अभियान में संपूर्ण धरती युद्ध क्षेत्र में बदल गई।

हालांकि बौद्ध काल में ही शक, हूण, कुषाण, पारथीयन, ग्रीक और मंगोल आक्रमणकारी आए और उनके कुछ समूह यहां की संस्कृति और धर्म में मिलकर खो गए और ज्यादातर अपने देश लौट गए। ये सभी बौद्ध धर्म से प्रभावित थे।

भारत में कुछ समूह व्यापारी बनकर आया और बाद में सत्ताधारी बन गया। कुछ समूह लूटने आया और लुटकर चला गया और कुछ ने आक्रमण कर यहां के भू-भाग पर कब्जा कर लिया। आओ जानते हैं कि किस तरह भारत बहुधर्मी देश बन गया।

 

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यहूदी कबीला : ईसा से लगभग 3000 वर्ष पूर्व अर्थात महाभारत के युद्ध के बाद अस्तित्व में आए यहूदी धर्म के 10 कबीलों में से एक ‍कबीला कश्मीर में आकर रहने लगा और धीरे-धीरे वह हिन्दू तथा बौद्ध संस्कृति में घुल-मिल गया। आज भी उस कबीले के वंशज हैं लेकिन अब वे मुसलमान बन गए हैं।

यहूदी धर्म को जानें


यहूदी धर्म के पैगंबर हजरत मूस


यहूदी धर्म : आज से 2985 वर्ष पूर्व अर्थात 973 ईसा पूर्व में यहूदियों ने केरल के मालाबार तट पर प्रवेश किया। यहूदियों के पैगंबर थे मूसा, लेकिन उस दौर में उनका प्रमुख राजा था सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहते हैं।

नरेश सोलोमन का व्‍यापारी बेड़ा मसालों और प्रसिद्ध खजाने के लिए आया। आतिथ्य प्रिय हिन्दू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ रब्‍बन को उपाधि और जागीर प्रदान की। यहूदी कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य में बस गए। विद्वानों के अनुसार 586 ईसा पूर्व में जूडिया की बेबीलोन विजय के तत्‍काल पश्‍चात कुछ यहूदी सर्वप्रथम क्रेंगनोर में बसे।

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ईसाई धर्म : व्यापक रूप से हुए एक शोध के अनुसार ईसा मसीह ने कश्मीर में एक बौद्ध मठ में शिक्षा और दीक्षा ग्रहण की। ईसा मसीह के 12 शिष्यों में से एक शिष्य सेंट थॉमस ने ही सर्वप्रथम केरल के एक स्थान से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया।

दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई चर्च सेंट थॉमस के आगमन का संकेत देता है। इसके बाद सन् 1542 में सेंट फ्रांसिस जेवियर के आगमन के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्‍थापना हुई जिन्होंने भारत के गरीब हिन्दू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर सेवा की आड़ में ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया। इसके बाद भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान इस कार्य को और गति मिली। फिर भारत की आजादी के बाद 'मदर टेरेसा' ने व्यापक रूप से लोगों को ईसाई बनाया। वर्तमान में ईसाई धर्मावलंबियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 50 लाख के आसपास है।

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इस्‍लाम : सर्वप्रथम अरब व्‍यापारियों के माध्‍यम से इस्‍लाम धर्म 7वीं शताब्‍दी में दक्षिण भारत में और सिंधु नदी के बंदरगाह पर आया। इसके पहले इस्लाम ने अफगानिस्तान (पहले जो भारत का हिस्सा था) के उत्तर में हिन्दूकुश पर्वतमाला से घुसकर हिन्दू शाही वंश पर हमला किया और भारतीय ‍दीवार को तोड़ दिया।


7वीं सदी में इस्लाम के केरल, बंगाल दो प्रमुख केंद्र थे, जबकि पश्चिम भारत में अफगानिस्तान। इसके बाद 7वीं सदी में ही मोहम्मद बिन कासिम ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम कर भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया, जहां से हिन्दू जनता को पलायन करना पड़ा। जो हिन्दू पलायन नहीं कर सके वे मुसलमान बन गए या मारे गए। जिस भू-भाग पर कब्जा किया था, वह आज का आधा पाकिस्तान है, जो पहले कुरु-पांचाल जनपद के अंतर्गत आता था। अफगानिस्तान के उत्तर में गांधार महाजनपद हुआ करता था और संपूर्ण अफगानिस्तान को 'आर्याना' कहते थे।

इनके पश्‍चात अफगानी, ईरानी और मुगल साम्राज्य के दौर में भारत में इस्‍लाम धर्म दो तरीके से फला और फैला। पहला सूफी संतों के प्रचार-प्रसार से तथा दूसरा मुस्लिम शासकों द्वारा किए गए दमन चक्र से। मुगल भारतीय नहीं थे, वे सभी तुर्क थे। अकबर, शाहजहां, औरंगजेब आदि सभी तुर्किस्तान के लोग थे। जो अफगा‍नी, ईरानी, मुगल थे उनकी नस्ल का कहीं अता-पता नहीं चलता और कुछ गुलाम वंश के शासक भी अंग्रेजों के काल में अपने-अपने देश लौट गए। रह गए तो वे भारतीय हिन्दू, जो अब मुसलमान हो चुके थे।


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पारसी धर्म : पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है। ईरान के बाहर मिथरेज्‍म के रूप में रोमन साम्राज्‍य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है।

ईरान पर इस्‍लामी विजय के पश्‍चात पारसियों को इस्लाम कबूल करना पड़ा तो कुछ पारसी धर्म के लोगों ने अपना गृहदेश छोड़कर भारत में शरण ली। कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए।

अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवत: 1,00,000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।

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