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राम पर हुए शोध

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कुछ लोग कहते हैं कि राम भगवान नहीं थे, वे तो राजा थे। कुछ का मानना है कि वे एक का‍‍ल्पनिक पात्र हैं। वे कभी हुए ही नहीं। वर्तमान काल में राम की आलोचना करने वाले कई लोग मिल जाएँगे। राम के खिलाफ तर्क जुटाकर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। इन पुस्तक लिखने वालों में वामपंथी विचारधारा और धर्मांतरित लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया है। तर्क से सही को गलत और गलत को सही सिद्ध किया जा सकता है। तर्क की बस यही ताकत है। तर्क वेश्याओं की तरह होते हैं।

उनकी आलोचना स्वागतयोग्य है। जो व्यक्ति हर काल में जिंदा रहे या जिससे लोगों को खतरा महसूस होता है, आलोचना उसी की ही होती है। मृत लोगों की आलोचना नहीं होती। जिस व्यक्ति की आलोचना नहीं होती वे इतिहास में खो जाते हैं।

आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की।

राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है।

मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्य जगदगुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का कार्य किया था।

इस के अलावा नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोकसंस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम जिंदा है। दुनिया भर में बिखरे शिलालेख, भित्ति चित्र, सिक्के, रामसेतु, अन्य पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन भाषाओं के ग्रंथ आदि से राम के होने की पुष्टि होती है।

आलोचकों को चाहिए कि वे इस तरह और इस तरह के तमाम अन्य शोधों की भी आलोचना करें और इन पर भी सवाल उठाएँ, तभी नए-नए शोधों को प्रोत्साहन मिलेगा। एक दिन सारी आलोचनाएँ ध्वस्त हो जाएँगी। क्यों? क्योंकि द्वेषपूर्ण आलोचनाएँ लचर-पचर ही होती हैं। दूसरे के धर्म की प्रतिष्ठा गिराकर स्वयं के धर्म को स्थापित करने के उद्देश्य से की गई आलोचनाएँ सत्य के विरुद्ध ही मानी जाती हैं।

कहते हैं कि किसी देश, धर्म और संस्कृति को खत्म करना है तो उसके इतिहास पर सवाल खड़े करो, फिर तर्क द्वारा इतिहास को भ्रमित करो- बस तुम्हारा काम खत्म। फिर उसे खत्म करने का काम तो उस देश, धर्म और संस्कृति के लोग खुद ही कर देंगे।

अंग्रेज इस देश और यहाँ के धर्म और इतिहास को इस कदर भ्रमित कर चले गए कि अब उनके कार्य की कमान धर्मांतरण कर चुके लोगों, राजनीतिज्ञों व कट्टरपंथियों ने सम्भाल ली है।

विखंडित करने के षड्यंत्र के पहले चरण का परिणाम यह हुआ कि हम अखंड भारत से खंड-खंड भारत हो गए। एक समाज व धर्म से अनेक जाति और धर्म के हो गए। आज का जो भारतीय उपमहाद्वीप है और वहाँ की जो राजनीति तथा समाज की दशा है वह अंग्रेजों की कूटनीति का ही परिणाम है।

जब कोई प्रशासन और सैन्य व्यवस्था, व्यक्ति या पार्टी 10 वर्षों में देश को नष्ट और भ्रष्ट करने की ताकत रखता है तो यह सोचा नहीं जाना चाहिए कि 200 साल के राज में अंग्रेजों ने क्या किया होगा? अंग्रेजों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन सब कुछ छीनकर।

यह सोचने वाली बात है कि हम दुनिया कि सबमें पुरानी कौम और पुराने मुल्कों में गिने जाते हैं, लेकिन इतिहास के नाम पर हमारे पास मात्र ढाई से तीन हजार वर्षों का ही इतिहास संरक्षित है। हम सिंधु घाटी की सभ्यता से ही शुरू माने जाते हैं। हमें आर्यों के बाद सीधे बुद्धकाल पर कुदा दिया जाता है। बीच की कड़ी राम और कृष्ण को किसी षड्यंत्र के तहत इतिहास की पुस्तकों में कभी शामिल ही नहीं किया गया।


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