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क्या राम ने सीता को छोड़ दिया था, जानिए सच

हमें फॉलो करें क्या राम ने सीता को छोड़ दिया था, जानिए सच

अनिरुद्ध जोशी

दो वर्ष रावण के पास रहने के कारण सीता के प्रति समाज के एक वर्ग में संदेह उत्पन्न हो चला था। लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि मां सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती है। भारतीय समाज में सीता को परम पवित्र और आदर्श नारी का दर्जा प्राप्त है। लेकिन समाज में यह धारणा भी प्रचलित है कि माता सीता को भगवान राम ने समाज द्वारा सवाल उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए छोड़ दिया था। राम पर यह आरोप कहां तक उचित है। क्या सचमुच राम ने सीता को छोड़ दिया था या नहीं, आओ इसकी पड़ताल करते हैं और आपको सच बताते हैं।

लंका में सीता को पहचानकर उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए हनुमानजी ने कहा था- 'दुष्करं कृतवान् रामो हीनो यदनया प्रभुः धारयत्यात्मनो देहं न शोकेनावसीदति। यदि नामः समुद्रान्तां मेदिनीं परिवर्तयेत् अस्थाः कृते जगच्चापि युक्त मित्येव मे मतिः।।

अर्थात : ऐसी सीता के बिना जीवित रहकर राम ने सचमुच ही बड़ा दुष्कर कार्य किया है। इनके लिए यदि राम समुद्रपर्यंत पृथ्वी को पलट दें तो भी मेरी समझ में उचित ही होगा, त्रैलौक्य का राज्य सीता की एक कला के बराबर भी नहीं है।

 

अगले पन्ने पर सीता का संघर्षमय जीवन...

 


न मालूम सीता कौन थी? धरती की पुत्री या किसी ऐसे माता-पिता की संतान जिसने अबोध बालिका को किसी खेत में छोड़ दिया था। मिथिला प्रदेश के राजा जनक के राज्य में एक बार अकाल पड़ने लगा। वे स्वयं हल जोतने लगे तभी हल में एक बक्सा अड़ गया। जब उस बक्से को खोला गया तो उसमें एक नन्ही बालिका था, जो मृत्यु से लड़ रही थी। कुछ कहते हैं कि जब राजा बीज बो रहे थे तब सीता को धूल में पड़ी पाकर उन्होंने उठा लिया। तभी उन्होंने आकाशवाणी सुनी- 'यह तुम्हारी धर्मकन्या है।' तब तक राजा की कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने उसे पुत्रीवत पाला।

राजा जनक की प्रसिद्धि संपूर्ण देश में एक ज्ञानी राजा की तरह थी। सीता का पालन-पोषण राजकुमारी की ही तरह हुआ। किशोरी सीता के लिए योग्य वर प्राप्त करना कठिन हो गया, क्योंकि सीता को लोग मानव नहीं बल्कि देवकन्या मानते थे। सीता की प्रसिद्धि एक दिव्य कन्या की तरह थी। ऐसे में राजा जनक ने सीता स्वयंवर का आयोजन किया।

जनक ने कहा कि जिस धनुष को उठाने, प्रत्यंचा चढ़ाने और टंकार करने में देवता, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व और किन्नर भी समर्थ नहीं हैं, उसे मनुष्य भला कैसे उठा सकता है? अत: जो भी उसे उठाएगा वह कोई महान शक्तिशाली व्यक्ति ही होगा और जो इस धनुष को उठाएगा उसी से सीता का स्वयंवर होगा।

स्वयंवर में रावण सहित देश-विदेश के कई राजकुमारों और राजाओं ने भाग लिया। उनमें राम भी थे जिनको विश्वामित्र लेकर आए थे। जब रावण सहित सभी योद्धा हार गए, तब जनक की अनुमति से राम ने अत्यंत सहजता से वह धनुष उठाकर चढ़ाया और मध्य से तोड़ डाला। धनुष की टंकार सुनकर राम, लक्ष्मण, विश्वामित्र और जनक के अतिरिक्त शेष समस्त उपस्थितगण तत्काल बेहोश हो गए और इस तरह सीता ने राम के गले में वरमाला डाल दी। यहीं से सीता का संघर्ष शुरू होता है।

सीता के अपहरण के कारण... अगले पन्ने पर...


कालांतर में कैकेयी के दशरथ से वर मांग लेने पर सीता और लक्ष्मण सहित राम 14 वर्ष के वनवास के लिए चले गए। वन में रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। फलस्वरूप राम- रावण युद्ध हुआ।

राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, 'सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।'

रावण ने खर और दूषण के साथ दंडकारण्य में पहुंचकर पुष्पक विमान से ही सीता को गुपचुप तरीके से देखा तो वो मुग्ध हो गया। तब रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना बनाई। मारीच का सोने के हिरण का रूप धारण करके राम व लक्ष्मण को वन में ले जाने और उनकी अनुपस्थिति में रावण द्वारा सीता का अपहरण करने की योजना थी।

इस पर जब राम स्वर्ण हिरण के पीछे वन में चले गए, तब लक्ष्मण सीता के पास थे लेकिन बहुत देर होने के बाद भी जब राम नहीं आए तो सीता माता को चिंता होने लगी, तब उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करके ले उड़ा। अपहरण के बाद आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिए।

अ‍शोक वाटिका में सीता, अगले पन्ने पर...


रावण ने सीता को लंकानगरी के अशोक वाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों को उसकी देखरेख का भार सौंप दिया। सभी राक्षसनियां सीता माता को डराती रहती थीं और रावण से विवाह करने के लिए उकसाती रहती थीं

सीता की अशोक वाटिका, देखें वीडियो

सीता 2 वर्ष तक रावण की अशोक वाटिका में बंधक बनकर रही लेकिन इस दौरान रावण ने सीता को छुआ तक नहीं। इसका कारण था कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था कि जब भी तुम किसी ऐसे स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। अत: रावण किसी भी स्त्री की इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं कर सकता था।

श्रीलंका में अशोक वाटिका : अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे 'सीता एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।

अगले पन्ने पर जब मेघनाद ने सीता को मार दिया...


माना जाता है कि रणक्षेत्र में वानर-सेना तथा राम-लक्ष्मण में भय और निराशा फैलाने के लिए रावण के पुत्र मेघनाद ने अपनी शक्ति से एक मायावी सीता की रचना की, जो सीता की भांति ही नजर आ रही थीं। मेघनाद ने उस मायावी सीता को अपने रथ के सामने बैठाकर रणक्षेत्र में घूमाना प्रारंभ किया। वानरों ने उसे सीता समझकर प्रहार नहीं किया।

बाद में मेघनाद ने मायावी सीता के बालों को पकड़कर खींचा तथा सभी के सामने उसने उसके दो टुकड़े कर कर दिए। यह दृश्य देखकर वानर सेना में निराशा फैल गई। सभी सोचने लगे कि जिस सीता के लिए युद्ध कर रहे हैं वह तो मारी गई अब युद्ध करने का क्या फायदा? राम ने सीता की मृत्यु का समाचार सुना तो वे भी अचेत हो गए। चारों ओर फैला खून देखकर सब लोग शोकाकुल हो उठे। यह देखकर मेघनाद निकुंभिला देवी के स्थान पर जाकर हवन करने लगा।

जब राम की चेतना लौटी तो लक्ष्मण और हनुमान ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया तथा विभीषण ने कहा कि 'रावण कभी भी सीता को मारने की आज्ञा नहीं दे सकता, अत: यह निश्चय ही मेघनाद की माया का प्रदर्शन है। आप निश्चिंत रहिए।' बाद में कुछ दिन युद्ध और चला और अंतत: रावण मारा गया।

आखिर सीता को क्यों देना पड़ी अग्नि परीक्षा... अगले पन्ने पर...


राम जब सीता को रावण के पास से छुड़वाकर अयोध्या ले आए तो उनके राज्याभिषेक के कुछ समय बाद मंत्रियों और दुर्मुख नामक एक गुप्तचर के मुंह से राम ने जाना कि प्रजाजन सीता की पवित्रता के विषय में संदिग्ध है अत: सीता और राम को लेकर अनेक मनमानी बातें बनाई जा रही हैं। उस वक्त सीता गर्भवती थीं।

राम और अन्य से सीता से कहा कि समाज में बातें बनाई जा रही हैं। सभी कहते हैं कि अग्निपरीक्षा देगा पड़ेगी। माना जाता है कि राम और समाज द्वारा संदेह किए जाने के कारण सीता ने ग्लानि, अपमान और दु:ख से विचलित होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी।

सीता ने यह कहा- 'यदि मन, वचन और कर्म से मैंने सदैव राम को ही स्मरण किया है तथा रावण जिस शरीर को उठाकर ले गया था, वह अवश था, तब अग्निदेव मेरी रक्षा करें।' और जलती हुई चिता में प्रवेश किया। अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण करके सीता को गोद में उठाकर राम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हर प्रकार से पवित्र हैं। अब सवाल यह उठता है कि उपरोक्त कथा कहां तक सच है। जानेंगे अगले पन्नों पर। पढ़ते रहिए।

अग्नि परीक्षा के बाद क्या राम ने सीता को अपनाया, लेकिन...


अग्नि परीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय से सीता को ग्रहण नहीं किया था। किंतु अब अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध होता है कि सीता पवित्र है तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए।

लेकिन इस अग्नि परीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया। सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्‍छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं।

लक्ष्मण ने तपोवन में पहुंचकर अत्यंत उद्विग्न मन से सीता से कहा- 'माते, में आपको अब यहां से वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि यही आज्ञा है।' ऐसा कहकर लक्ष्मण ने सब कुछ कह सुनाया और लौट आए। तपोवन में सीता को वाल्मीकि ने अपने आश्रम में स्थान दिया। उसी आश्रम में सीता ने लव और कुश नामक पुत्रों को जन्म दिया। बालकों का लालन-पालन भी आश्रम में ही हुआ। लेकिन क्या यह सच है? अगले पन्ने पर इसका खुलासा होगा।

अगले पन्ने पर क्या सचमुच छोड़ दिया था राम दे सीता को...


विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है : 'राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।' यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्‍य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया। 
 
जिस सीता के लिए राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वह किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो। इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते।
 
अब सवाल यह भी उठता है कि रामायण में तो ऐसा ही लिखा है कि राम ने सीता को छोड़ दिया था। दरअसल, शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है।
 
रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)
 
लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था। अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।
 
बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेरफेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया।

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