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हिन्दू धर्म की कहानी-3

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हमें फॉलो करें हिन्दू धर्म

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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प्रारंभ में एक ही वर्ण था हंस वर्ण। एक ही वेद था प्रणव वेद। प्रणव अर्थात ॐ। मानव का जन्म कई बार हुआ और मानव जाति कई बार धरती से लुप्त हो गई। फिर वापस कैसे उत्पन्न हुई? यही है धरती और धर्म का रहस्य। वेद-पुराणों में धरती की कहानी 5 कल्पों में कही गई है- महत कल्प, हिरण्यगर्भ कल्प, ब्रह्मा कल्प, पद्मकल्प और वराह कल्प। यहां जो हिन्दू धर्म की कहानी बताई जा रही है वह वराह कल्प की है। यह कल्प लगभग 14,000 विक्रम संवत पूर्व शुरू हुआ था, जो अभी जारी है।

हिन्दू धर्म का इतिहास कई कल्पों की गाथा है इसलिए वेद और पुराणों में मानव और जीव उत्पत्ति की अलग-अलग गाथाएं मिलेंगी। प्रत्येक कल्प में मानव की उत्पत्ति के कारण और वातावरण अलग-अलग रहे हैं इसीलिए भ्रम की उत्पत्ति होती है। मानव एक ओर जहां धरती के क्रम विकास की उत्पत्ति है तो दूसरी ओर उसे परमेश्वर की इच्छा से देवताओं ने रचा है। इस तरह दोनों ही तरह के मानव इस धरती पर थे जिनमें आपस में संबंध बने। ब्रह्मा ने कुछ ऐसे भी मानव बनाए थे, जो आज के मानव से कहीं ज्यादा विशालकाय (लगभग 30-40 फुट) होते थे, लेकिन भगवान शिव ने उस जाति का संहार कर दिया। क्यों किया? क्योंकि वे उत्पाती और अधर्मी हो गए थे।


क्रम विकास का संक्षिप्त विवरण:
ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई यह विज्ञान के लिए आज भी बड़ा सवाल बना हुआ है, लेकिन वेद और पुराणों में इसे कई तरह से कई गाथाओं से समझाया गया है। पुराण मानते हैं कि धरती पर ब्रह्म का साकार प्रकाशस्वरूप में जन्म, सृष्टि उत्पत्ति, जीव उद्भव आज से 4,32,15,886 वर्ष पूर्व हुआ।

* प्रारंभिक काल को पुराणों में शैशवकाल कहा गया है तब अम्दिज, अंडज, जरायुज सरीसृप (रेंगने वाले) जीव, केवल मुख वाले और वायुयुक्त जीव होते थे।

* इसके बाद कीटभक्षी, हस्तपाद, नेत्र-श्रवणेन्द्रियोंयुक्त जीवों की उत्पत्ति हुई। कहना चाह‍िए कि समुद्र से कुछ जीव निकलकर पतंगों के समान धरती पर फैले, फिर वे झाड़ पर चढ़े और फिर वे उड़ना सीख गए। इसी तरह छोटे-छोटे जीवों ने सूखी धरती पर रहना सीखा। इस काल को पुराणों में कुमार काल कहा गया।

* जो जीव धरती पर फैले थे, लाखों साल में उन्होंने नई प्रजातियों को जन्म दिया और विकासक्रम में वे वन्य संपदाभक्षी, भ्रमणशील, आखेटक, गुहावासी, जिज्ञासु, अल्पबुद्धि के जीव बने। उन्हीं में जंगली मानवों की कई प्रजातियां थीं, जो गुफा या वृक्षों पर रहती थीं और वृक्षों को ही अपने जीवन का आधार मानती थीं। सभी वन्य संपदाभक्षी थे। जिज्ञासु होने के साथ ही मानव ने रहस्यों को जानने की कोशिश की। यहीं से धर्म की शुरुआत हुई। इस काल को पुराणों में किशोर काल कहा गया।

* लाखों सालों में जंगली मानव ने सभ्य होने की ओर कदम बढ़ाया और उन्होंने वृक्षों पर निर्भरता को छोड़कर कृषि कार्य, गोपालन किया तो दूसरी ओर कुछ मानवों ने मांसभक्षण सीखा। बस यहीं से लोगों के भेद होना शुरू हो गया और नैतिकता व अनैतिकता के बारे में सोचा जाने लगा। यही धार्मिक आधार पर समाज की शुरुआत थी। इस काल को पुराणों में युवावस्था का काल कहा गया।

*युवावस्था के काल के बाद मानव धीरे-धीरे अतिविलासी, क्रूर, चारित्रहीन, लौलुप और यंत्राधीन रहते हुए साथ ही सभ्य भी बनने लगा था। अब यहीं से सभ्यता और असभ्यता की लड़ाई शुरू हुई।

* वराह कल्प में अवतारवाद की कहानी यही बताती है कि किस तरह मानव विक्रासक्रम में आगे बढ़ा। यह मानव चेतना के विकास की कहानी है। जारी...

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