धरती के मानचित्र को लेकर कई बातें कही जाती रही हैं। कोई कहता है कि संपूर्ण धरती का मानचित्र रोमन सभ्यता में बना था तो कोई इसे नार्वे के वाइकिंग्स की देन मानता है। पुर्तगाली और फ्रेंच भी पृथ्वी के भौगोलिक मानचित्र को अपनी खोज बताना नहीं चूकते तो अमेरिका के कोलंबस को भारत की खोज का श्रेय दिया जाता है।
लेकिन सत्य यह है कि पृथ्वी का पहला भौगोलिक मानचित्र महाभारत के रचियता महर्षि वेद व्यास द्वारा बनाया गया था। महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया गया था। महाभारत में कहा गया है कि यह पृथ्वी चन्द्रमंडल में देखने पर दो अंशों मे खरगोश तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रुप में दिखायी देती है-
उपरोक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-
“ सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”
—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत
अर्थात :
हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है।
अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है।