Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दत्तात्रेय भगवान, हिन्दू धर्म की त्रिवेणी

हमें फॉलो करें दत्तात्रेय भगवान, हिन्दू धर्म की त्रिवेणी
FILE
ब्राह्मण और श्रमणों में ही शुरुआत में भारत में दो धाराएं थी पहली वेद की और दूसरी तंत्र की। वेद और तंत्र में विरोध रहा है। वेद से वैष्णव और तंत्र से शैव सम्प्रदाय की उत्पत्ति मानी जाती है।

भगवान दत्तात्रेय ने वेद और तंत्र मार्ग का विलय किया था। इसके अलावा ब्रह्म विद्या का प्रचार भी किया था। इस तरह उनमें तीनों ही धाराएं समाहित हो जाती है। उनके तीन शिष्य थे जो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से।

भगवान दत्तात्रेय संबंधित फोटो गैलरी देखने के लिए यहां क्लिक करें God Duttatray Photo Gallery

भगवान दत्तात्रेय से संबंधित वीडियों देखने के लिए यहां क्लिक करें God Duttatray Video


दत्तात्रेय को शिव का अवतार माना जाता है, लेकिन वैष्णवजन उन्हें विष्णु के अंशावतार के रूप में मानते हैं। मूलत: उन्होंने शैव, वैष्णव और शाक्त धर्म को एक करने का कार्य भी किया। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। तीन धर्म (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में त्रिपुरा में उन्होंने लोगों को शिक्षा-दीक्षा दी।

तंत्र से जुड़े होने के कारण दत्तात्रेय को नाथ परंपरा और संप्रदाय का अग्रज माना जाता है। इस नाथ संप्रदाय की भविष्य में अनेक शाखाएं निर्माण हुई। उनमें से एक भगवान दत्तत्रेय से शुरू होने वाली मालिका प.पु. स्वामी नरेंद्रचार्यजी तक निम्नलिखित रूप से आई है। भगवान दत्तात्रेय नवनाथ संप्रदाय से संबोधित किया गया है।

रोचक कथा (dattatreya story) : नारदजी जब लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पतिव्रत्य के बारे में बताया तब इस पर तीनों देवियों के मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या का जन्म होने लगा। तीनों देवियों ने सती अनुसूया के पतिव्रत्य को खंडित करने के लिए अपने पतियों को उसके पास भेजा।

विशेष आग्रह पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनुसूया के सतीत्व और ब्रह्म शक्ति की परख करने की सोची। जब अत्रि ऋषि आश्रम से कही बाहर गए थे तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश यतियों का भेष धारण करके अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे और भिक्षा मांगने लगे।

अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत करके उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया। लेकिन यतियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा, ‘हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम नग्न होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।'

अनुसूया ने 'जैसी आपकी इच्छा' यह कहते हए यतियों पर जल छिड़क कर तीनों को तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। तब अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। फिर शिशुओं को दूध-भात खिलाया और तीनों को गोद में सुलाया तो तीनों गहरी नींद में सो गए।

अनुसूया माता ने तीनों को झूले में सुला कर कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए। फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी।

उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया। यह नजारा देखकर नारद, लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे।

नारद ने विनयपूर्वक अनुसूया से कहा, ‘माते, अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर ये तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं। ये अपने पतियों को ढूंढ रही थी। इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए।'

अनुसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इनको आप ले जा सकती हैं', लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले वे तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे। इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं।

नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा- ‘आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? 'कृपया आप हास्य का पात्र न बनें और जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए।'

देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया। वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए। तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है। तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं।

उसी समय अत्रि महर्षि अपने घर लौट आए। अपने घर त्रिमूर्तियों को पाकर हाथ जोड़ने लगे। तभी ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ने एक होकर दत्तात्रेय रूप धारण किया। उक्त कथा को दत्तात्रेय के जन्म से जोड़कर भी देखा जाता है।
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi