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आधुनिक काल के 35 रहस्यदर्शी और चमत्कारिक संत

हमें फॉलो करें आधुनिक काल के 35 रहस्यदर्शी और चमत्कारिक संत
, शनिवार, 2 जुलाई 2016 (10:56 IST)
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
1850 से 1960 के बीच भारत में सैंकड़ों महान आत्माओं का जन्म हुआ। राजनीति, धर्म, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्र में भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया उसकी गूंज अभी भी दुनिया में गूंज रही है। भारत इन संतों और रहस्यदशियों के मार्ग को छोड़कर अधर्म के मार्ग पर गमन कर रहा है। आज की युवा पीढ़ी को भारत की इन महान आत्माओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहिए और इनके दर्शन को समझना चाहिए।
 
देश और विदेश में भारत के इन संतों ने भारतीय दर्शन, योग और धर्म की महानता को स्थापित कर भारत के बारे में विदेशियों का नजरिया बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं संतों की बदौलत हमें भारत पर गर्व है। इन्हीं में से कुछ ने अपने स्वतंत्र विचार और दर्शन को भी स्थापित कर एक नए समाज की रचना की। आओ जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख विचारकों और संतों का संक्षिप्त परिचय...

1.जे. कृष्णमूर्ति : उन्हें अष्टावक्र और बुद्ध का नया संस्करण कहना गलत होगा। जे. कृष्णमूर्ति सिर्फ जे. कृष्णमूर्ति ही थे। जॉर्ज बर्नाड शॉ, एल्डस हक्सले, खलील जिब्रान, इंदिरा गांधी आदि अनेक महान हस्तियां उसके विचारों से प्रभावित थीं। जे. कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को मदनापाली आंध्रप्रदेश के मध्यम वर्ग के ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
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कृष्णमूर्ति ने बड़ी ही फुर्ती और जीवटता से लगातार दुनिया के अनेकों भागों में भ्रमण किया और लोगों को शिक्षा दी और लोगों से शिक्षा ली। उन्होंने पूरा जीवन एक शिक्षक और छात्र की तरह बिताया। उन्होंने कहा था कि संसार विनाश की राह पर आ चुका है और इसका हल तथाकथित धार्मिकों और राजनीतिज्ञों के पास नहीं है। उन्होंने 91 वर्ष की आयु में 1986 को अमेरिका में देह छोड़ दी। लेकिन आज भी दुनियाभर की लाइब्रेरी में कृ‍ष्णमूर्ति उपलब्ध हैं।
 
2.ओशो रजनीश : ओशो रजनीश को जीवन संबंधी उनके विवादास्पद विचारों, सेक्स और धर्म की आलोचना करने के कारण अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार ने देश निकाला दे दिया था। उनके शिष्यों का मानना है कि अमेरिका में उन्हें जहर दिया गया था। वे जीवनभर पाखंड के खिलाफ लगातार लड़ते रहे। दुनिया के तमाम धर्म व राजनीति तथा विचारकों, मनोवैज्ञानिकों आदि पर उनके प्रवचन बेहद सार‍गर्भित और गंभीर माने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने बुद्ध के विचारों को ही ज्यादा स्थापित किया।
 
उन्होंने ध्यान की कई विधियां विकसित की हैं जिसमें 'सक्रिय ध्यान' की विश्वभर में धूम है। दुनियाभर में हैरि पोटर्स के बाद उनकी पुस्तकों की बिक्री का नम्बर आता है, जो दुनिया की लगभग सभी भाषा में प्रकाशित होती हैं। दुनियाभर में उनके अनेक आश्रमों को अब मेडिटेशन रिजॉर्ट कहा जाता है। 11 दिसंबर 1931 को उनका जन्म मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ। 21 मार्च को उन्हें संबोधी घटित हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना में उन्होंने देह छोड़ दी।
 
3. महर्षि अरविंद : 5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहां उन्हें कष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में उनका जन्म हुआ और 5 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में देह त्याग दी।
 
4. स्वामी प्रभुपादजी : इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन के संस्थापक श्रीकृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी के कारण ही पूरे विश्व में 'हरे रामा, हरे कृष्णा' का पवित्र नाम गूंज उठा। अथक प्रयासों के बाद सत्तर साल की उम्र में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से शुरू हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा जल्द ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। 1 सितम्बर 1896 को कोलकाता में जन्म और 14 नवम्बर 1977 को वृंदावन में 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने देह छोड़ दी।
 
5. स्वामी विवेकानंद : विवेकानंद को युवा सोच का संन्यासी माना जाता है। अमेरिका के शिकागो शहर में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म पर उनके द्वारा दिए गए भाषण और वेदांत के प्रचार-प्रसार के कारण उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है। उन्होंने ही 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की थी। नरेन्द्रनाथ दत्त अर्थात विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ। 4 जुलाई 1902 को कोलकाता में ही उन्होंने देह त्याग दी।
 
6. रामकृष्ण परमहंस : विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है। उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की। बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में रामकृष्ण का जन्म 20 फरवरी 1836 ईस्वी को हुआ। 16 अगस्त 1886 को महाप्रयाण हो गया।
 
7. दयानंद सरस्वती : स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में एवं मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 में हुई। बारह वर्ष की आयु में उन्होंने मथुरा के स्वामी विरजानंद से दीक्षा ग्रहण की तथा उन्हीं की आज्ञा से 1875 को आर्य समाज की स्थापना की। स्वामीजी के आर्य समाज का उद्देश्य सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में सुधार लाना था। 
 
स्वामीजी ने हिंदू धर्म में व्याप्त अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने के लिए सतत प्रयास किया, जैसे-मूर्ति-पूजा, अवतारवाद, बहुदेव, पूजा-आरती, रात्रि कर्म, तंत्र-मंत्र और अंधविश्वासी धार्मिक पाठ, कथावाचन आदि। हिंदुओं के लिए वेद को छोड़कर कोई अन्य धर्मग्रंथ प्रमाण नहीं है। हिंदूजन वेदों को छोड़कर पुराणपंथी सोच में जीने लगे हैं, जो कि धर्म विरुद्ध मनमाना आचरण है। उन्होंने वेदों का भाष्य कर 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक किताब की रचना की। धर्म परिवर्तन कर चुके हिंदुओं को पुन: हिंदू धर्म में लाने के लिए उन्होंने शुद्धि आंदोलन चलाया।
 
8. एनी बेसेंट : 1 अक्टूबर 1847 को एनी का जन्म लंदन में हुआ। 1889 को मादाम ब्लावाटस्की से मिलने के बाद जुलाई 1921 में पेरिस में आयोजित प्रथम थियोसॉफिकल वर्ल्ड कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं। 16 नवम्बर 1893 में भारत को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। 24 दिसंबर 1931 को अड्यार में अपना अंतिम भाषण दिया। 20 सितंबर 1933 को शाम 4 बजे 86 वर्ष की अवस्था में अड्यार चेन्नई में देह त्याग दी। एनी का मानना था कि धर्म सिर्फ वेदांत में ही उल्लेखित है। वेदांत ही सच्चा ज्ञान है।
 
9. महर्षि महेश योगी  (12 जनवरी 1918- 5 फरवरी 2008): भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी के आश्रम अनेक देशों में हैं। मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु थे। महर्षि महेश योगी ने 1955 में योग के सिद्धांतों पर आधारित 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के जरिये दुनियाभर में अपने लाखों अनुयायी बनाए। 
 
महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली थी। नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 वर्ष की आयु में 6 फरवरी 2008 को उनका निधन हो गया। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। देश विदेश में आज भी उनके कई शिष्य हैं और उनके नाम पर यूनिवर्सिटी का संचालन करते हैं। जहां पर वैदिक ज्ञान की शिक्षा के अलावा आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है।

10.परमहंस योगानंद (5 जनवरी 1893-7 मार्च 1952): परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में हुआ। आपका जन्म नाम मुकुन्दलाल घोष था। योगानंद के पिता भगवती चरण घोष बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे। योगानंद अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनके माता-पिता महान क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। 7 मार्च 1952 को उनका लॉस एंजिल्स निधन हो गया।
 
परमहंस योगानंद 1920 में बोस्टन पहुंचे थे। उन्होंने लॉस एंजेलेस में ‘सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप’ की स्थापना की। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी ’ (एक योगी की आत्मकथा) लिखी। उनकी इस उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति हिंदी में 'योगी कथामृत' के नाम से उपलब्ध है। इस कृति की लाखों प्रतियां बिकीं और इसने सबसे ज्यदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा का रिकॉर्ड कायम किया है।

11.श्रीराम शर्मा आचार्य : शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत ‍की। सभी जातियों के लोगों को बताया कि ब्राह्मणत्व प्राप्त कैसे किया जाए। जहां गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। गायत्री मंत्र के महत्व को पूरी दुनिया में प्रचारित किया। आपने वेद और उपनिषदों का सरलतम हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद किया।
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20 सितम्बर, 1911 आगरा जिले के आंवलखेड़ा गांव में जन्म हुआ। अखण्ड ज्योति नामक पत्रिका का पहला अंक 1938 की वसंत पंचमी पर प्रकाशित किया गया। अस्सी वर्ष की उम्र में उन्होंने शांतिकुंज में ही देह छोड़ दी। उनकी पत्नी भगवती देवी शर्मा ने उसने कार्य में बराबरी से साथ दिया। शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस, गायत्री तपोभूमि, अखण्ड ज्योति संस्थान एवं युगतीर्थ आंवलखेड़ा जैसी अनेक संस्थाओं द्वारा युग निर्माण योजना का कार्य आज भी जारी है। 
 
12. सत्य सांई बाबा : सत्य सांई बाबा को शिर्डी के सांई बाबा का अवतार माना जाता है। विश्वभर में इनके आश्रम 'प्रशांति निलयम' की प्रसिद्धि है। प्रशांति निलायम का अर्थ होता है शांति प्रदान करने वाला स्थान। उन्होंने आंध्रप्रदेश में कई सामाजिक कार्य किए हैं, जैसे गरीब और पिछड़े इलाकों में हास्पिटल, स्कूल और कॉलेज के अलावा जल मुहैया कराना आदि। सत्य सांई बाबा से सभी जाति और धर्म के लोग जुड़े हुए हैं। उनकी दृष्टि में सभी का मालिक एक ही है। विदेशों में सांई के लाखों भक्त हैं। सत्य सांई बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्रप्रदेश के पुट्टपर्ती के पास स्‍थित एक गांव में हुआ था। इस वक्त बाबा की उम्र 83 वर्ष की हो चली है लेकिन आज भी वे ध्यान और दर्शन के लिए प्रशांति हॉल में नियमित आते हैं।
 
13. मां अमृतामयी : माता अमृतामयी को उनके भक्त प्यार से 'अम्मा' कहते हैं। प्रेम की मूर्ति माता का संदेश है सिर्फ 'प्रेम करो, मदद करो'। अम्मा का जन्म केरल के गरीब मछुआरे इलाके में 1953 को हुआ। उनके पिता मछली बेचा करते थे। उनका मूल नाम सुधामणि है। बचपन से ही अम्मा के मन में भगवान कृष्ण के प्रति लगन लग गई थी। वे कृष्ण के भजन गाती थीं और नृत्य करती थीं। वे कई घंटे ध्यान करतीं तथा कृष्ण की प्रार्थना में ही लीन रहती थीं। उनकी माता के बीमार होने के बाद घर का कार्य वही सम्भालती थीं। मां की बीमारी और गरीबी के अलावा उन्होंने जीवन के सभी दर्द को देखा कि कैसे गरीबी में लोग जी रहे हैं।
 
27 सितंबर 1953 में केरल के एक छोटे से गांव आल्लपाड में एक गरीब मछुआरे परिवार में जन्मी माता अमृतानंदमी एक गरीब परिवार से हैं। अम्मा जब छह माह की थीं तभी उन्होंने बोलना और चलना सीख लिया था। 1987 में से अपने अनुयायियों के अनुग्रह पर वे देश और विदेश के आयोजनों में शामिल होना शुरू किया। अनुयायियों ने माता अमृतानंदमयी मठ, माता अमृतानंदमयी सेंटर, अम्मा यूरोप, अम्मा जापान, अम्मा केन्या, अम्मा ऑस्ट्रेलिया आदि की स्थापना की है। यह सभी संगठन संयुक्त रूप से एम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड के रूप में जाने जाते हैं। अम्मा ने भारत सहित कई पूर्वी देशों में गरीबों के लिए लाखों मकान बनाकर दिए और उनकी हर संभव सहायता की।
 
गरीबों के लिए अम्मा ने नि:स्वार्थ सेवा की। मलेशिया, श्रीलंका, बर्मा और अफ्रीका आदि अनेक मुल्कों के गरीब लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अम्मा ने अथक प्रयास किया। अम्मा ने कभी भी सेवा की आड़ में धर्मांतरण या धन जुटाने का कार्य नहीं किया। अम्मा का मिशन सांप्रदायिक नहीं है। उनका मिशन तो यही है कि किस तरह गरीब के चेहरे पर मुस्कान हो, क्योंकि अम्मा ने खुद गरीबी का दर्द झेला है। भूकंप से पीड़ित, बाढ़ से पीड़ित या दंगों से पीड़ित सभी लोगों के पास अम्मा सहज ही पहुंच जाती हैं।
 
14.स्वामी शिवानंद (8 सितंबर 1887-14 जुलाई 1963): स्वामी शिवानंद दार्शनिक होने के साथ ही योगाचार्य भी थे। उन्होंने योग, गीता और वेदांत पर 200 से अधिक किताबें लिखीं। स्वामी विष्णुदेवानंद उनके मशहूर शिष्य थे जिन्होंने ‘कंप्लीट इलस्ट्रेटेड बुक ऑफ योग’ नामक किताब लिखी। उनके दूसरे शिष्यों स्वामी सच्चिदानंद, स्वामी शिवानंद राधा, स्वामी सत्यानंद और स्वामी चिदानंद ने उनके प्रयासों को जारी रखा। स्वामी सत्यानंद ने 1964 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की। शिवानंद पहले मलेशिया में एक डॉक्टर थे बाद में उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में योग केंद्र खोले। 
 
15.स्वामी रामतीर्थ (22 अक्टूबर 1873- 27अक्टूबर 1906) : गणित के शिक्षक स्वामी रामतीर्थ ने बाद में शिक्षण के बजाय आध्यात्म का जीवन जीना पसंद किया। वह 1902 में अमेरिका चले गए और वहां कैलिफोर्निया में उन्होंने माउंट शास्ता पर एक रिट्रीट सेंटर की स्थापना की। वह सिर्फ दो साल वहां रहे और 1906 में तैंतीस साल की छोटी आयु में भारत आकर गंगा नदी के तट पर अपना शरीर त्याग दिया। मशहूर किताब ‘इन वुड्स ऑफ गॉड– रिएलाइजेशन’ के पांच खंडों में उनके कुछ प्रेरक प्रवचन संकलित हैं। स्वामी विवेकानंद ने उनके आध्यात्मिक जीवन को बहुत प्रेरणा दी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को पहली बार लाहौर में देखा था।
 
16.स्वामी कुवलयानंद (30 अगस्त, 1883-18 अप्रैल, 1966): स्वामी कुवलयानंद एक शिक्षाविद थे जिन्हें मुख्य रूप से योग के वैज्ञानिक आधारों के मार्गदर्शक शोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1920 में वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू किया और 1924 में खासतौर पर योग के अध्ययन को समर्पित अपना पहला वैज्ञानिक जर्नल, योग मीमांसा प्रकाशित किया। स्वामी एक शोधकर्ता भी थे उन्होंने ज्यादातर शोध कैवल्यधाम हेल्थ एंड योगा रिसर्च सेंटर में किए, जिसकी स्थापना उन्होंने 1924 में की थी।
 
17.मेहर बाबा : सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। 25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में हुआ। 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में उन्होंने देह छोड़ दी। उनका मूल नाम मेरवान एस. ईरानी था।
 
18.राघवेंद्र स्वामी (1890-1996): बंगलौर से लगभग 250 किलोमीटर दूर कर्नाटक के एक छोटे से गांव, चित्रदुर्ग जिले के मलादीहल्ली के राघवेंद्र स्वामी जो ‘मलादीहल्ली स्वामीजी’ के नाम से मशहूर थे, ने मलादीहल्ली में अनथ सेवाश्रम ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने मलादीहल्ली में अपना आधार रखते हुए दुनिया भर के 45 लाख से अधिक लोगों को योग सिखाया। उन्होंने योग की शिक्षा पलनी स्वामी से प्राप्त की थी। राघवेंद्र स्वामी सद्गुरु जग्गी वासुदेव के योग शिक्षक थे।
 
19.दादा लेखराज : दादा लेखराज मूलत: हीरों के व्‍यापारी थे। आपका जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था। दादा लेखराज ने सन 1936 में एक ऐसे आंदोलन का सूत्रपात्र किया जिसे आज 'प्रज्ञापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय' के नाम से जाना जाता है। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा के माध्यम से इस संस्था ने एक आंदोलन का रूप धारण किया।
 
जब दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया तो जो उनके सिद्धांतों पर चलते थे उनमें पुरुषों को ब्रह्मा कुमार और स्त्रीयों को ब्रह्मा कुमारी कहा जाने लगा। यह आंदोलन भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखता है। विश्वभर में इस आंदोलन के कई मुख्‍य केंद्र हैं तथा उनकी अनेकों शाखाएं हैं। इस संस्था का मुख्‍यालय भारत के गुजरात में माऊंट आबू में स्थित है। इस आंदोलन को बाद में दादी प्रकाशमणी ने आगे बढ़ाया। यह आंदोलन बीच में विवादों के घेरे में भी रहा। इन पर हिन्दू धर्म की गलत व्याख्‍या का आरोप लगाया जाता रहा है, जिससे समाज में भ्रम का विस्तार हुआ है।
 
20.श्रीकृष्णामाचार्य (18 नवंबर 1888-28 फ रवरी 1989): आधुनिक समय में हठ योग के महान व्याख्याता रहे श्रीकृष्णामाचार्य का देहांत 1989 में 101 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने अपने आखिरी दिनों तक हठ योग की विनियोग प्रणाली का अभ्यास किया और उसकी शिक्षा दी। उन्होंने बाकी लोगों के साथ प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति को भी योग सिखाया है। श्रीकृष्णामाचार्य के एक और मशहूर विद्यार्थी हुए बी.के.एस.अयंगर (14 दिसंबर 1918-20 अगस्त 2014) जो खुद भी एक गुरु थे। उनके पुत्र टी.के.वी.देसीकाचर अपने संत पिता की शिक्षाओं को जारी रखे हुए हैं।

21.शीलनाथ बाबा : ‍शीलनाथ बाबा का समाधि स्थल ऋषिकेश में है, लेकिन उन्होंने उनके जीवन का महत्वपूर्ण समय मध्यप्रदेश के देवास शहर में बिताया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में उनके कई धूना स्थान है। देवास में श्रीगुरु योगेंद्र शीलनाथ बाबा का अखंड धूना और ज्योत आज भी जलता रहता है। देवास के मल्हार क्षेत्र में बाबा की धूनी एक तपोभूमि है, जहां बाबा के धूने के अलावा उनके अधिकतर शिष्यों के समाधि स्थल भी हैं।
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शीलनाथ बाबा जयपुर के क्षत्रिय घराने से थे। 1839 में दीक्षा प्राप्ति के बाद बाबा ने उत्तराखंड के जंगलों में कठिन तप किया। इसके बाद उन्होंने देश-देशांतरों के निर्जन स्थानों पर भ्रमण किया। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, चीन, तिब्बत और कैलाश मानसरोवर होते हुए वे पुन: भारत पधारे। इस दौरान उनके साथ अनेक घटनाएं घटीं।
 
1900 में वे उज्जैन क्षेत्र में पधारे, जहां उन्होंने भर्तृहरी की गुफा में ध्यान रमाया। उज्जैन के बाद कुछ दिन इंदौर में रहे तथा पुन: उज्जैन में आ गए। उज्जैन से ही उनकी प्रसिद्धि पूरे मालव राज्य में फैल गई थी। उस समय मालवा प्रांत के सरसूबा मि. ऑनेस्ट सपत्नीक बाबा के शिष्य बन गए थे। जब देवास में पांती-2 के श्रीमंत महाराज सरकार, केसीएसआई राजसिंहासन पर विराजमान थे। वे भी उज्जैन में बाबा के सत्संग में जाया करते थे। देवास में बाबा 1901 से 1921 तक रहे। तत्पश्चात अंतरप्रेरणा से ऋषिकेश में जाकर वहां चैत्र कृष्ण 14 गुरुवार संवत 1977 और सन् 1921 ई. के दिन 5.55 के समय ब्रह्मलीन हो उन्होंने समाधि ले ली। कहते हैं कि यहीं पर उनके गुरु की भी समाधि थी। 
 
22.दादाजी धूनी वाले : दादाजी धूनी वाले का समाधि स्थल मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में स्थित है। दादाजी का नाम स्वामी केशवानंदजी महाराज था और वे परिव्राजक थे अर्थात भ्रमणशील थे। देश-विदेश में दादाजी के असंख्य भक्त हैं। दादाजी के नाम पर भारत और विदेशों में 27 धाम मौजूद हैं। इन स्थानों पर दादाजी के समय से अब तक निरंतर धूनी जल रही है। सन् 1930 में दादाजी ने खंडवा शहर में समाधि ली। यह समाधि रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर है।
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23.गजानन महाराज : गजानन महाराज की समाधि महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव में स्थित है। बाबाश्री की जागृत समाधि को सितंबर 2010 में 100 वर्ष पूर्ण हो गए। समाधि स्थल पर प्रतिदिन लगभग 25 से 30 हजार लोग दर्शन करने आते हैं। शेगांव के गजानन महाराज नाथ संप्रदाय के बहुत ही पहुंचे हुए दिगंबर संत थे। गजानन महाराज के चित्र में उन्हें ‍चिलम पीते हुए दिखाया जाता है। महाराज चिलम पीया करते थे, लेकिन उन्हें चिलम पीने की लत नहीं थी। माना जाता है कि वे अपने बनारस के भक्तों को खुश करने के लिए चिलम पीया करते थे।
 
गजानन महाराज का जन्म कब हुआ, उनके माता-पिता कौन थे, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। पहली बार गजानन महाराज को शेगांव में 23 फरवरी 1878 में बनकट लाला और दामोदर नमक दो व्यक्तियों ने देखा।  एक श्वेत वर्ण सुंदर बालक झूठी पत्तल में से चावल खाते हुए 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण कर रहा था। 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण करने के कारण ही उनका नाम 'गजानन' पड़ा। मान्यता के अनुसार 8 सितंबर 1910 को प्रात: 8 बजे उन्होंने शेगांव में समाधि ले ली। माना जाता है कि बाळा भाऊ की मृत्यु के उपरांत नंदुरगांव के नारायण के स्वप्न में महाराज ने दर्शन दिए और मठ की सेवा करने का आदेश दिया।
 
24.शिर्डी के सांईं बाबा : सांईं बाबा का समाधि स्थल विश्वभर में प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। शिर्डी अहमदनगर जिले के कोपरगांव तालुका में है। गोदावरी नदी पार करने के पश्चात मार्ग सीधा शिर्डी को जाता है। 8 मील चलने पर जब आप नीमगांव पहुंचेंगे तो वहां से शिर्डी दृष्टिगोचर होने लगती है। श्री सांईंनाथ ने शिर्डी में अवतीर्ण होकर उसे पावन बनाया।
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बाबा की एकमात्र प्रामाणिक जीवनकथा 'श्री सांईं सत्‌चरित' है जिसे श्री अन्ना साहेब दाभोलकर ने सन्‌ 1914 में लिपिबद्ध किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सन्‌ 1835 में महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में सांईं बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था। (सत्य सांईं बाबा ने बाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को पाथरी गांव में बताया है।)
 
इसके पश्चात 1854 में वे शिर्डी में ग्रामवासियों को एक नीम के पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए। अनुमान है कि सन्‌ 1835 से लेकर 1846 तक पूरे 12 वर्ष तक बाबा अपने पहले गुरु रोशनशाह फकीर के घर रहे। 1846 से 1854 तक बाबा बैंकुशा के आश्रम में रहे।
 
सन्‌ 1854 में वे पहली बार नीम के वृक्ष के तले बैठे हुए दिखाई दिए। कुछ समय बाद बाबा शिर्डी छोड़कर किसी अज्ञात जगह पर चले गए और 4 वर्ष बाद 1858 में लौटकर चांद पाटिल के संबंधी की शादी में बारात के साथ फिर शिर्डी आए। इस बार वे खंडोबा के मंदिर के सामने ठहरे थे। इसके बाद के 60 वर्षों 1858 से 1918 तक बाबा शिर्डी में अपनी लीलाओं को करते रहे और अंत तक यहीं रहे।
 
सांईं बाबा ने अपनी जिंदगी में समाज को दो अहम संदेश दिए हैं- 'सबका मालिक एक' और 'श्रद्धा और सबूरी'। सांईं बाबा के इर्द-गिर्द के तमाम चमत्कारों से परे केवल उनके संदेशों पर ही गौर करें तो पाएंगे कि बाबा के कार्य और संदेश जनकल्याणकारी साबित हुए हैं। 
 
25.लाहिड़ी महाशय : परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युत्तेश्वर गिरी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। योग में पारंगत पिता गौरमोहन लाहिड़ी जमींदार थे। मां मुक्तेश्वरी शिवभक्त थीं। काशी में उनकी शिक्षा हुई। विवाह के बाद नौकरी की। 23 साल की उम्र में इन्होंने सेना की इंजीनियरिंग शाखा के पब्लिक वर्क्स विभाग में गाजीपुर में क्लर्क की नौकरी कर ली।
 
23 नबंबर 1868 को इनका तबादला हेड क्लर्क के पद पर रानीखेत (अल्मोड़ा) के लिए हो गया। प्राकृतिक छटा से भरपूर पर्वतीय क्षेत्र उनके लिए वरदान साबित हुआ। एक दिन श्यामाचरण निर्जन पहाडी रास्ते से गुजर रहे थे तभी अचानक किसी ने उनका नाम लेकर पुकारा। श्यामाचरण ने देखा एक संन्यासी पहाड़ी पर खड़े थे। वे नीचे की ओर आए और कहा- डरो नहीं, मैंने ही तुम्हारे अधिकारी के मन में गुप्त रूप से तुम्हें रानीखेत तबादले का विचार डाला था। उसी रात श्यामाचरण को द्रोणागिरि की पहाड़ी पर स्थित एक गुफा में बुलाकर दीक्षा दी। दीक्षा देने वाला कोई और नहीं, कई जन्मों से श्यामाचरण के गुरु महाअवतार बाबाजी थे। श्यामाचरण लाहिड़ी ने 1864 में काशी के गरूड़ेश्वर में मकान खरीद लिया फिर यही स्थान क्रिया योगियों की तीर्थस्थली बन गई। योगानंद को ‍पश्‍चिम में योग के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने ही चुना। 
 
कहते हैं कि शिर्डी सांईं बाबा के गुरु भी लाहिड़ी बाबा थे। लाहिड़ी बाबा से संबंधित पुस्तक 'पुराण पुरुष योगीराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी' में इसका उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक को लाहिड़ीजी के सुपौत्र सत्यचरण लाहिड़ी ने अपने दादाजी की हस्तलिखित डायरियों के आधार पर डॉ. अशोक कुमार चट्टोपाध्याय से बांग्ला भाषा में लिखवाया था। बांग्ला से मूल अनुवाद छविनाथ मिश्र ने किया था।
 
26 .देवहरा बाबा : देवहरा बाबा का जन्म कब हुआ, यह कोई नहीं जानता। कहते हैं कि 250 वर्ष की उम्र में उन्होंने हाल ही में देह छोड़ दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने दावा किया था कि उसके परिवार की 7 पीढियों ने देवहरा बाबा को देखा है। उनके अनुसार देवहरा बाबा ने अपनी देह त्यागने के 5 साल पहले ही मृत्यु का समय बता दिया था। ऐसे ही कई और सुनी-सुनाई बाते हैं, जो बाबा देवहरा के बारे में कही जाती हैं।
 
बाबा के कई वीडियो भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं जिनमें बाबा अपनी मचान पर चढ़ते हुए, भक्तों को आशीर्वाद देते हुए और प्रवचन देते हुए दिखाई देते हैं। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकड़ियों की बनी एक मचान उनका स्थायी बैठक स्थान था। विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि बाबा देवरहा 19 मई 1990 में चल बसे। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था।
 
बाबा के भक्तों में न केवल आम नागरिक थे बल्कि दिग्गज राजनीतिक हस्तियां भी थीं। इनमें से प्रमुख हैं- पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह, मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद। ये कई बार बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाते थे।
 
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27.नीम करौली बाबा :  नीम करौली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। नीम करौली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जुलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है। 
 
नीम करौली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने पार्थिव शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में सबसे ज्यादा अमेरिकी ही आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच है। यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करौली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे।
 
28.आनंदमूर्ति : आधुनिक लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, सामाजिक विचारक और आध्यात्मिक नेता प्रभात रंजन सरकार ऊर्फ आंनदमूर्ति का 'आनंद मार्ग' दुनिया के 130 देशों में फैला हुआ है। उनकी किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है। परमाणु विज्ञान पर उनके चिंतन के कारण उन्हें माइक्रोवाइटा मनीषी भी कहा जाता है।
 
उन्होंने विज्ञान, साम्यवाद और पूंजीवाद के समन्वय के विकल्प पर बहुत विचार किया है। वे खुद प्रगतिशिल थे, लेकिन आनंद मार्गियों अनुसार पश्चिम बंगाल में उनके आंदोलन को कुचलने के लिए वामपंथियों ने आनंद मार्गियों को कई तरह से प्रताड़ित किया जो सिलसिला आज तक जारी है। ओशो के बाद आनंदमूर्ति सर्वाधिक विवादित पुरुष माने जाते हैं।
 
आनंदमूर्ति का जन्म 1921 और मृत्यु 1990 में हुई थी। मुंगेर जिले के जमालपुर में एशिया का सबसे पुराना रेल कारखाना है। वे रेलवे के एक कर्मचारी थे। यह जमालपुरा आनंद मार्गियों के लिए मक्का के समान है। यहीं पर सन् 1955 में आनंद मार्ग की स्थापना हुई थी।
 
तंत्र और योग पर आधारित इस संगठन का उद्‍येश्य है आत्मोद्धार, मानवता की सेवा और सबकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति। आनंदमार्ग के दुनिया भर में चिंतन केंद्र हैं जहां तंत्र, योग और ध्यान सिखाया जाता है। इस एकेश्वरवादी संगठन का मूल मंत्र है ' बाबा नाम केवलम'।
 
29. रमन महर्षि  (जन्म- 30 दिसम्बर, 1879, तिरुचुली गांव, तमिलनाडु; मृत्यु- 14 अप्रैल, 1950, रमण आश्रम, तमिलनाडु) : महर्षि रमन का नाम भी आध्यात्मिक जगत में विख्‍यात है। उनके माता पिता ने उनका नाम वेंकटरामन अय्यर रखा था। 1902 में 'शिव प्रकासम पिल्लै' नामक व्यक्ति रमण के पास 14 प्रश्न स्लेट पर लिखकर लाये। इन्हीं 14 प्रश्नों के उत्तर रमण की पहली शिक्षाएँ है। इनमें आत्म निरीक्षण की विधि है, जो कि तमिल में नान यार और अंग्रेज़ी में हू ऍम आई के नाम से प्रकाशित की गयी। फिर 80 के दशक में उनके मरणोपरांत उनकी नोटबुक्स सोलह खंडों में प्रकाशित हुई जो गंभीर योग के लिए एक रहस्यमी खजाना है।
 
30.श्रीशिव दयालसिंह : राधा स्वामी सत्संग का नाम सभी ने सुना होगा। दुनियाभर में इस आंदोलन से लगभग दो करोड़ लोग जुड़े होंगे। इस एकेश्वरवादी मूर्ति भंजक संगठन की स्थापना श्रीशिव दयाल सिंह द्वारा की गई थी। आगरा में दयालबाग नामक इस संगठन का मुख्य मंदिर है जहां दयाल सिंह की समाधि है। 
 
राधा स्वामी मत की अवधारणा का जन्म 1861 में हुआ था। इसे वेदों पर आधारित संत मत माना जाता है। इस संगठन में बहुदेववाद, मूर्ति पूजा, मांसाहार और मद्यपान- उक्त चार बातें सख्ती से निषेध मानी गई है। इस संगठन का भारतभर में व्यापक प्रचार-प्रसार है।

31.आचार्य तुलसी : सन् 1914 में कार्तिक शुक्ल दूज को चंदेरी (लाड़नूं) की धरती पर जन्म लेने वाले आचार्य तुलसी ने 11 वर्ष की उम्र में भागवती दीक्षा स्वीकार कर जैन आगमों का एवं भारतीय दर्शनों का गहन अध्ययन किया। अपने 11 वर्षीय मुनिकाल में 20 हजार पदों को कंठस्थ कर लेना, 16 वर्ष की उम्र में अध्यापन कौशल में पारंगत हो जाना। 22 वर्ष में तेरापंथ जैसे विशाल धर्म संघ के दायित्व की चादर ओढ़कर 61 वर्षों तक उसे बखूबी से निभाई। 18 फरवरी 1994, सुजानगढ़ का विशाल धर्म में आचार्य श्रीतुलसी ने देह त्याग दिया। उन्होंने 34 वर्ष की उम्र में जहां अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपाद किया। वहीं तनावमुक्ति को लिए प्रेक्षाध्यान, चारित्रिक विकास के लिए शिक्षा में जीवन विज्ञान जैसे व्यापक आयामों का अवदान देकर सच्चे अर्थों में महान युग प्रवर्तक की भूमिका अदा की। इनके शिष्य आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ (14 जून 1920-9 मई 2010) ने इनके अणुव्रत आंदोलन के आगे बढ़ाया और आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया। दोनों की कई किताबें हैं जिनमें उनके दर्शन, धर्म और समाज संबंधि विचार प्रकट होते हैं।
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32.श्रीअवधेशानन्द गिरीजी महाराज : हिन्दू संत धारा के संत श्रीअवधेशानन्द गिरीजी महाराज जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं। भारत में उनका नाम बड़े ही श्रद्धाभाव से लिया जाता है। उन्होंने भोग मार्ग छोड़कर तप का मार्ग दिखाया और वे समाज को सुधारने का अधक प्रयास कर रहे हैं। हरियाणा के अंबाला जिले में उनका सेवा केंद्र है।
 
33.तरुण सागर : प्रवचन कहने की अपनी भिन्न शैली और क्रांतिकारी विचारधाराओं के कारण तरुण सागरजी को क्रांतिकारी संत माना जाता हैं। उनका जन्म 26 जनवरी 1967 में मध्यप्रदेश के दमोह जिले के गांव गुहांची में हुआ। उनका जन्म नाम श्रीपवन कुमार जैन। पिता प्रतापचंदजी जैन और माता शांति बाई जैन। इन्होंने आठ मार्च 1981 को ग्रह त्याग दिया और 18 जनवरी 1982 मध्यप्रदेश के अलकतारा में आपने आचार्य श्रीपुष्पदंत सागरजी से दिगंबरी दिक्षा ग्रहण की।
 
34.श्रीश्री रविशंकर : श्रीश्री रविशंकर का मिशन है दुनिया से हिंसा को खत्म करना। इसीलिए वे कहते हैं कि हंसो, हंसाओं और सबको प्यार करो। विश्व शांति के लिए जरूरी है कि हम सभी से प्यार करना सीखें। मानवीय मूल्यों को समझे। दुनियाभर में 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' के माध्यम से प्रख्यात हुए श्रीश्री रविशंकर का जन्म 1956 में एक तमिल अय्यर परिवार में हुआ।
 
1981 में श्रीश्री फाउंडेशन के तहत उन्होंने 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' नामक शिक्षा की शुरुआत की। आज फाउंडेशन लगभग 140 देश में सक्रिय है। इस फाऊंडेशन ने दुनियाभर के लाखों लोगों को जीवन जीने की कला सीखाई है। ध्यान की सुदर्शन क्रिया और आत्म विकास के इस शैक्षणिक कार्यक्रम से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने कुंठा, हिंसा और अपनी बुरी आदतें छोड़ दी है।
 
राजनीतिक, औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए 1997 में श्रीश्री फाऊंडेशन एंड इंटरनेशनल एसोसिएशन संगठन की स्थापना हुई। यह संगठन देश-विदेश के अनेकों में सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेता है। रविशंकर को उनके कार्यों के लिए देश और विदेश में अनेकों मानद उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानीत किया गया है।
 
हाल की में उन्होंने एक नया अभियान 'स्पीड अप कैम्पन' शुरू किया है इस अभियान के तरह आर्ट ऑफ लिविंग परिवार ने युनेस्को के साथ गठजोड़ करके पूरे विश्व में व्याप्त गरीबी को जड़ से हटाने की मुहिम छेड़ रखी है। झारखंड में फैले माओवाद को खतम करने के लिए भी मन की शांति से जुड़े कई कोर्स का आयोजन किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप कुछ माओवादियों ने तो अपने हथियार डालकर अगले ‍चुनाव में जुड़ने का ऐलान किया है। श्रीश्री के इसी प्रयासों को मद्देनजर रखकर उनको कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया है। फोरम टिबेरिया द्वारा स्थापित यह पुरस्कार ड्रेस्डन की मेयर हेल्मा ओरोज ने रविशंकर को प्रदान किया।
 
35.बाबा रामदेव : बाबा रामदेव अपने विचारों, बेबाक कथन और योग के कारण अक्सर चर्चा में रहते हैं। बाबा रामदेव के माध्यम से योग को जो प्रचार मिला है इससे पहले कभी इतना प्रचार नहीं मिला। रामदेव के कारण योग को पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बाबा ने दुनियाभर की यात्रा कर वहां योग शिविर लगाएं है। देश के कई स्थानों पर योग शिविर का उन्होंने सफलतम आयोजन कर लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया है।
 
बाबा रामदेव ऊर्फ रामकृष्ण यादव का जन्म 1965 को हरियाणा में हुआ। नौ अप्रैल 1995 को रामनवमी के दिन संन्यास लेने के बाद वे आचार्य रामदेव से स्वामी रामदेव बन गए। प्रारंभ में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए पतंजलि योग पीठ की स्थापना की। छह अगस्त 2006 को इसका उद्‍घाटन किया गया। योग और आयुर्वेद का यह दुनिया का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है।

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