करीब 58 दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ा था, इसीलिए यह दिन उनका निर्वाण दिवस है। आओ जानते हैं भीष्म पितामह वो कौनसी 5 गलतियां थी जिसके चलते महाभारत का युद्ध हुआ।
1. धृतराष्ट्र के अन्याय पर चुप रहे भीष्म : भीष्म जानते थे कि पुत्रमोह में धृतराष्ट्र पांडवों के साथ अन्याय कर रहे हैं लेकिन राजा और राज सिंहासन के प्रति निष्ठा के चलते भीष्म उनके साथ बने रहे। पांडवों के साथ हुए अति अन्याय के चलते ही महाभारत युद्ध हुआ। यदि भीष्म न्यायकर्ता होते तो यह युद्ध टाला जा सकता था। धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र-मोह में सारे वंश और देश का सर्वनाश करा दिया। भीष्म चाहते तो वे धृतराष्ट्र की अंधी पुत्र भक्ति पर लगाम लगा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और दुर्योधन को गलती पर गलती करने की अप्रत्यक्ष रूप से छूट दे दी।
2. चौसर की इजाजद भीष्म ने दी : राजभवन में कौरवों और पांडवों के बीच द्यूत क्रीड़ा यानि चौसर खेलने को अनुमित देना भी भीष्म की सबसे बड़ी भूल थी। वो चाहते तो ये क्रीड़ा रोक सकते थे लेकिन चौसर के इस खेल ने सब कुछ चौपट कर दिया। यह महाभारत का टर्निंग पाइंट था। भीष्म के इजाजत देने के बाद युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाकर दूसरी सबसे बड़ी भूल की थी जिसके कारण महाभारत का युद्ध होना और भी पुख्ता हो गया। युधिष्ठि ने अपने भाइयों और पत्नी तक को जुए में दांव पर लगाकर अनजाने ही युद्ध और विनाश के बीज बोए थे।
3. चीर हरण के समय भीष्म का चुप रहना : द्रौपदी के चीर हरण के समय भी भीष्म चुप रहे और इसी के चलते भगवान कृष्ण को महाभारत युद्ध में कौरवों के खिलाफ खड़े होने का फैसला करना पड़ा। चीर हरण महाभारत की ऐसी घटना थी जिसके चलते पांडवों के मन में कौरवों के प्रति नफरत का भाव स्थायी हो गया। यह एक ऐसी घटना थी जिसके चलते प्रतिशोध की आग में सभी चल रहे थे।
4. कर्ण का सत्य छिपाना : भीष्म जानते थे कि कर्ण पांडवों का ही भाई है लेकिन उन्होंने ये बात कौरव पक्ष से छिपाकर रखी। कर्ण का सत्य छिपाना भी महाभारत युद्ध का एक बड़ा कारण बना। यह बात भीष्म ने ही नहीं श्रीकृष्ण ने भी छिपा कर रखी। खुद कर्ण भी जब युद्ध तय हो गया तब जान पाया। कर्ण अपनी जातिगत हीनभावना के कारण वह अर्जुन और पांडवों से द्वैष करता रहा और दुर्योधन को हमेशा यह विश्वास दिलाता रहा कि युद्ध को तो मैं अकेला ही जीत लूंगा।
5. श्रीकृष्ण के शांति प्रस्ताव पर चुप रहना : भीष्म पितामह ही थे राज सिंहासन के रखवाले और राज कार्य के मामले में निर्णय लेने वाले। धृतराष्ट्र को उनकी हर बातों को मानना ही होता था। जब राज्य का विभाजन हो रहा था तो भीष्म इस विभाजन को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और इसी विभाजन के चलते महाभारत के युद्ध के कारक पैदा हुए।
भीष्म जानते थे कि दुर्योधन और शकुनी बुरी नियत से कार्य करने वाले लोग हैं। राज्य और पांडवों के खिलाफ हर बार षड़यंत्र रचने में ही उनका सारा दिन निकल जाता था। यह जानते हुए भी भीष्म ने की दुर्योधन को कुनीति या अनीति के मार्ग पर चलने से रोकने का प्रयास नहीं किया। दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण के पांच गांव की मांग को ठुकराते हुए यह कहना कि बिना युद्ध के मैं सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूंगा। तब भी भीष्म चुप रहे और दुर्योधन के शांति प्रस्ताव को ठुकराने के कृत्य को नजर अंदाज करते रहे।