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महान गुरु गोरखनाथ के जन्म का क्या है रहस्य

हमें फॉलो करें महान गुरु गोरखनाथ के जन्म का क्या है रहस्य

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 6 मई 2020 (11:57 IST)
भारत में कलयुग में दो महान संतों का जन्म हुआ है। पहले आदि शंकराचार्य और दूसरे गुरु गोरखनाथ। दोनों के ही कारण धर्म और संस्कृति का पुनरुत्थान हुआ है। यह देश इन दोनों का ऋणि है। आओ जानते हैं गुरु गोरक्षनाथ के जन्म की रोचक कथा। गुरु गोरखनाथ के जन्म के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित है। उन्हीं में से एक कथा यहां प्रस्तुत है।
 
 
एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ किसी गांव में गए। किसी एक घर में भिक्षा के लिए आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद स्वरूप पुत्र की याचना की। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध तो थे ही। अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उन्होंने एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि इसका सेवन करने के बाद यथासमय वे माता बनेंगी। उनके एक महा तेजस्वी पुत्र होगा जिसकी ख्याति चारों और फैलेगी।
 
आशीर्वाद देकर गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने भ्रमण क्रम में आगे बढ़ गए। बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उसी ग्राम में पुनः आए। कुछ भी नहीं बदला था। गांव वैसा ही था। गुरु का भिक्षाटन का क्रम अब भी जारी था। जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था, उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया। उन्होंने घर में आवाज लगाई। वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिए प्रस्तुत हुई। गुरु ने बालक के विषय में पूछा।
 
गृहस्वामिनी कुछ देर तो चुप रही, परंतु सच बताने के अलावा उपाय न था। उसने तनिक लज्जा, थोड़े संकोच के साथ सब कुछ सच सच बतला दिया। उसने कहा कि आप से भभूत लेने के बाद पास-पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिए उसकी खूब खिल्ली उड़ाई। उनकी बातों में आकर मैंने वह भभूत को पास के गोबर से भरे गड्डे में फेंक दिया था।
 
गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यानबल देखा और वे तुरंत ही गोबर के गड्डे के पास गए और उन्होंने बालक को पुकारा। उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गए। यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे।
 
नाथ संप्रदाय में आदिनाथ और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम आचार्य मत्स्येंद्र नाथ का है, जो मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से लोकप्रिय हुए। कौल ज्ञान निर्णय के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ ही कौलमार्ग के प्रथम प्रवर्तक थे। कुल का अर्थ है शक्ति और अकुल का अर्थ शिव। मत्स्येन्द्र के गुरु दत्तात्रेय थे। मत्स्येन्द्रनाथ की समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि मछिंद्रनाथ की समाधि मछीन्द्रगढ़ में है, जो महाराष्ट्र के जिला सावरगाव के ग्राम मायंबा गांव के निकट है।
 
कहते हैं कि गोरखनाथ का समाधी स्थल गोरखपुर में है। यहां दुनियाभर के नाथ संप्रदाय और गोरखनाथजी के भक्त उनकी समाधि पर माथा टेकने आते हैं। इस समाधि मंदिर के ही महंत अर्थात प्रमुख साधु है महंत आदित्यनाथ योगी।

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