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हनुमानजी ने शनिदेव को उठाकर यहां फेंक दिया था

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, बुधवार, 30 मार्च 2016 (14:13 IST)
हनुमानजी सर्वशक्तिशाली है। भूत-पिशाच, ग्रह-नक्षत्र आदि सभी उनके अधीन है। हनुमानजी का भक्त ओर किसी का भक्त नहीं होता। हनुमानजी के बारे में हम आपको एक और रहस्य बताते हैं।
यूं तो शनिदेव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। उनमें से मध्यप्रदेश में ग्वालियर के निकट एंती गांव में स्थित शनिदेव का मंदिर बहुत खास माना जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां त्रेतायुग से ही शनिदेव की प्रतिमा विराजमान है। यह इलाका शनिक्षेत्र के नाम से मशहूर है। यहां शनिवार को दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और न्याय के लिए प्रार्थना करते हैं।
 
किसने किया था इस मंदिर का निर्माण....
 

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शनि की प्रतिमा किसी ने नहीं रखवाई बल्कि ये आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। खगोलविद एवं ज्योतिषियों का ऐसा मानना है कि ये मंदिर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण इसका विशेष प्रभाव है। इस उल्कापिंड के आसपास बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। इस शनि मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य ने करवाया था। बाद में कई शासकों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
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हालांकि रियासतकालीन दास्तावेज अनुसार 1808 में ग्वालियर के तात्कालीन महाराजा दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए जागीर लगवाई। फिर तात्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने जागीर को जब्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड को सौंप दिया। फिलहाल इसकी देख-रेख मुरैना जिला प्रसाशन द्वारा किया जाता है।  
 
अगले पन्ने पर जानिए पौराणिक मान्यता...
 

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, रावण ने एक बार शनिदेव को भी कैद कर लिया था। तब शनिदेव ने हनुमानजी को संकेत किया था कि अगर वे उन्हें मुक्त करा दें तो वे रावण के नाश में अहम भूमिका निभाएंगे।
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हनुमानजी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराया। कैद में रहने के कारण शनिदेव काफी दुर्बल कमजोर हो चुके थे। इसलिए उन्होंने एक सुरक्षित स्थान पर भेजने की प्रार्थना की। इसलिए हनुमानजी ने अपने बल से शनिदेव को आकाश में उछाल दिया और वे यहां आ गए। तब से शनिदेव यहां विराजमान हैं।
 
यह भी कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते समय शनिदेव ने लंका को तिरछी दृष्टि से देखा था। इसी का नतीजा था कि रावण का कुल सहित नाश हो गया। जब शनिदेव यहां आए तो उल्कापात जैसा प्रभाव हुआ। आज भी उस घटना का यहां निशान बना हुआ है। 

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