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हिन्दू धर्म : इनके बारे में जानिए...

हमें फॉलो करें हिन्दू धर्म : इनके बारे में जानिए...
, बुधवार, 27 जुलाई 2016 (15:03 IST)
यहां ऐसे नाम दिए जा रहे हैं जिनके बारे में आपको जानना चाहिए। इनमें से कुछ के नाम अन्य जगहों पर समूह अनुसार दोहराए गए हैं। जैसे त्रिदेव में भगवान महेश का नाम आता है उसी तरह पंचदेव में भी इनकी गणना की जाती है। इंद्र की गणना अलग से है, लेकिन यह 12 आदित्यों के समूह में भी शामिल हैं।  
* एक ईश्वर : ब्रह्म ही सत्य है।
* दो सत्ता : सदाशिव और दुर्गा ही सृष्टि के रचनाकार हैं।
* तीन प्रमुख देव (त्रिदेव) : ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शंकर)।
* तीन प्रमुख देवी (त्रिदेवी) : सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती।
* तीन भगवान : राम, कृष्ण और बुद्ध।
* चार वेदज्ञ ऋषि : अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
* पंच देव : ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और सूर्य (विवस्वान्)
* पांच कुमार : सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और स्वायंभुव।
* पंचनद :  पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और द्रुह्मु।
* पंच भूत : भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, क्षेत्रपाल।
* पंच सतियां : 1.अनुसूया (ऋषि अत्रि की पत्नी), 2.द्रौपदी (पांडवों की पत्नी), 3.सुलक्षणा (रावण पुत्र मेघनाद की पत्नी), 4.सावित्री (जिन्होंने यमराज से अपना पति वापस ले लिया था), 5.मंदोदरी (रावण की पत्नी)।
* पांच दंपत्ति : ब्रह्मा-सावित्री, विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, राम-सीता और कृष्ण-रुक्मणी। 
* छह नीतिज्ञ : बृहस्पति, शुक्राचार्य, मनु, अंगिरा, नंदी और विदुर।
* पांच पितृभक्त पौराणिक पुत्र : यज्ञशर्मा, देवशर्मा, धर्मशर्मा, विष्णुशर्मा और सोमशर्मा।
* पितृ भक्त अन्य पुत्र : गणेश, नचिकेता, श्रवण कुमार, परशुराम, राम और भीष्म।
*सप्तऋषि:-
1. प्रथम स्वायंभुव मन्वंतर में- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ।
2. द्वितीय स्वारोचिष मन्वंतर में- ऊर्ज्ज, स्तम्भ, वात, प्राण, पृषभ, निरय और परीवान।
3. तृतीय उत्तम मन्वंतर में- महर्षि वशिष्ठ के सातों पुत्र।
4. चतुर्थ तामस मन्वंतर में- ज्योतिर्धामा, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक और पीवर।
5. पंचम रैवत मन्वंतर में- हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य और महामुनि।
6. षष्ठ चाक्षुष मन्वंतर में- सुमेधा, विरजा, हविष्मान, उतम, मधु, अतिनामा और सहिष्णु।
7. वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वंतर में- कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज।
 
* अष्‍ट विनायक : वक्रतुंड, एकदंत, मनोहर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विध्नराज, धूम्रवर्ण।
* आठ भैरव : रुद्र, संहार, काल, असिति, क्रौध, भीषण, महा, खट्वांग।
* आठ वसु : अहश, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष।
 
* नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंद, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिरात्रि। ऐसा भी कह सकते हैं- काली, कात्यायानी, ईशानी, चामुंडा, मर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी।
* दस अवतारी पुरुष : मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशु, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की। 
 
* ब्रह्मा के दस मानस पुत्र : (मन से उत्पन्न) मरिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्य, प्रचेता, भृगु, नारद एवं महातपस्वी वशिष्ट।
 
* दस महाविद्या : काली, तारादेवी, ललिता-त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंकि और कमला।
 
* ग्यारह रुद्र : महान, महात्मा, गतिमान, भीषण, भयंकर, ऋतुध्‍वज, ऊर्ध्वकेश, पिंगलाक्ष, रुचि, शुचि तथा कालाग्नि रुद्र।- यह भी अतिति के पुत्र है। इसमें कालाग्नि रुद्र ही मुख्‍य है। अधिक जगहों पर 11 रुद्रों के नाम इस तरह हैं:- 1. शम्भू, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व और 11. कपाली। इन 11 रुद्र देवताओं को यक्ष और दस्युजनों का देवता माना गया है।
 
* बारह आदित्य : ब्रह्मा के पुत्र मरिचि, मरिचि के कश्यप, और कश्यप की पत्नी अदिति, अदिति के आदित्य (सूर्य) कहलाए जो इस प्रकार है- अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषन, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्‍णु। यह बारह ही बारह मास के प्रतीक है।
 
* चौदह मनु : अतितक के मनु- ब्रह्मा के पुत्र स्वायंभुव, अत्रि के पुत्र स्वारोचिष, राजा प्रियव्रत के पुत्र तापस और उत्तम, रैवत, चाक्षुष, वर्तमान के मनु सूर्य के पुत्र श्राद्धेदंव (वैवस्वत)। भविष्य के मनु- सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि, चंद्रसावर्णि।
 
* तैतीस देवता : 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इंद्र व प्रजापति नाम से तैंतीस संख्या देवताओं की मानी गई है। प्रत्येक देवता की विभिन्न कोटियों की दृष्‍टि से तैतीस कोटि (करोड़) संख्‍या लोक व्यवहार में प्रचलित हो गई।
 
* सूर्य के दो पुत्र : प्रजापति कष्यप के पुत्र सूर्य की पत्नी सवर्णा जो विश्वकर्मा की पुत्री थी के गर्भ से शनैश्चर और यम नामक दो पुत्र तथा कालिन्दी नामक एक कन्या का जन्म हुआ। 
* 14 इंद्र : प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि।
 
* 49 मरुतगण : मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र कहा गया है तो पुराणों में कश्यप और दिति का पुत्र माना गया है। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें 49 प्रमुख हैं। उनमें भी 7 सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं। वेदों में मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है।-(ऋ. 1.85.4)। पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। अस्त्र-शस्त्र से लैस मरुतों के पास विमान भी होते थे। ये फूलों और अंतरिक्ष में निवास करते हैं।
 
*7 मरुतों के नाम निम्न हैं- 1. आवह, 2. प्रवह, 3. संवह, 4. उद्वह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह। इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं- ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।
 
*30 तुषित:- 30 देवताओं का एक ऐसा समूह है जिन्होंने अलग-अलग मन्वंतरों में जन्म लिया था। स्वारोचिष नामक द्वितीय मन्वंतर में देवतागण पर्वत और तुषित कहलाते थे। देवताओं का नरेश विपश्‍चित था।
 
*64 अभास्वर:- तमोलोक में 3 देवनिकाय हैं- अभास्वर, महाभास्वर और सत्यमहाभास्वर। ये देव * भूत, इंद्रिय और अंत:करण को वश में रखने वाले होते हैं।
*12 यामदेव:- यदु ययाति देव तथा ऋतु, प्रजापति आदि यामदेव कहलाते हैं।
*10 विश्वदेव:- पुराणों में दस विश्‍वदेवों को उल्लेख मिलता है जिनका अंतरिक्ष में एक अलग ही लोक है।
*220 महाराजिक:-
 
* पाताल लोक के देवता- उक्त 3 लोक के अलावा पितृलोक और पाताल के भी देवता नियुक्त हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। पितरों के देवता अर्यमा हैं। पाताल के देवता शेष और वासुकि हैं।
 
* पितृलोक के देवता:- दिव्य पितर की जमात के सदस्यगण : अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये 9 दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं। पुराण के अनुसार दिव्य पितरों के अधिपति अर्यमा का उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र निवास लोक है।
 
* नक्षत्र के अधिपति : चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में इंद्र, भाद्रपद में विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक में पर्जन्य, मार्गशीर्ष में अंशु, पौष में भग, माघ में त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
 
* 10 दिशा के 10 दिग्पाल : ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।
 
* अन्य देव :- गणाधिपति गणेश, कार्तिकेय, धर्मराज, चित्रगुप्त, अर्यमा, हनुमान, भैरव, वन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, यम, शनि, सोम, ऋभुः, द्यौः, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, धेनु, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला, जय, विजय आदि।
* अन्य देवी :- भैरवी, यमी, पृथ्वी, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति आदि।
 
* श्रेष्ठ धर्म पुरुष : प्रहलाद, ध्रुव, बृहस्पति, शुक्राचार्य, अष्टावक्र, भृगु, विश्वामित्र, जैमिनि, कपिल, कणाद, वाल्मिकी, व्यासदेव, बाली, बलि, पातंजलि, रावण, शंकराचार्य, गोरखनाथ, मीरा, पाणिनीय, गौतम मुनि, कुमारिल भट्ट, रामानुजाचार्य, मंडनमिश्र या सुरेश्वराचार्य, माधवाचार्य, रामकृष्‍ण, महर्षि अरविंद आदि।
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' (C)

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