Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

Lord brahma : भगवान ब्रह्मा का इतिहास जानें

हमें फॉलो करें Brahama

अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 23 मई 2024 (14:54 IST)
Brahama
Know the history of Lord Brahma: ब्रह्मा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। ये हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। सृष्टि रचियता से मतलब सिर्फ जीवों की सृष्टि से है। ब्रह्मा को विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ कहते हैं। पुराणों में जो ब्रह्मा का स्वरूप वर्णित मिलता है वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है। पुराणों ने इनकी कहानी को मिथकरूप में लिखा गया। 
ब्रह्मा काल : ब्रह्मा का काल बहुत ही विस्तृत था। यदि हम अध्ययन करें तो इस काल में धरती पर मानव प्रजातियों की उत्पत्ति और विकास की शुरुआत हो रही थी। यह वही काल था जबकि धरती पर मानव उत्पत्ति, विकास और भविष्य का कथाक्रम लिखा जा रहा था। ब्रह्मा के एक पुत्र रुचि की पुत्री से ही विष्णु ने और दूसरे पुत्र दक्ष की पुत्री से शिव ने विवाह किया था। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ब्रह्मा तो विष्णु और महेष से भी पहले हुए थे। त्रिदेवों के क्रम में सबसे पहले ब्रह्मा को ही रखा जाता है। ब्रह्मा के दस पुत्रों की कहानी और उनके वंश का वर्णन कम ही होता है जबकि धरती पर आज जितने भी मानव जाति के लोग हैं वे सभी ब्रह्मा की संतानें हैं।
 
ब्रह्मा का स्वरूप : पुराणों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं। पुराणों के अनुसार कमल पर विराजमान ब्रह्मा के चार सिर और चार हाथ हैं। दाएं के उपर वाले हाथ में कमल, नीचे वाले आथ में माला है और बाएं के ऊपर वाले हाथ में वेद एवं नीचे वाले हाथ में कमंडल है। सिर पर उनके मुकुट है और श्वेत रंग की दाढ़ी है।
पत्नी का नाम : माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां हैं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। इसमें सावित्री और सरस्वती का उल्लेख अधिकतर जगहों पर मिलता है। सरस्वती नाम की एक उनकी पुत्री भी थीं।
 
पुराणों अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुषठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि।
 
पुराणों अनुसार भगवान विष्णु के नाभिकमल से आविर्भूत चतुर्मुख प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। फिर ब्रह्मा के 17 पुत्र और एक पुत्री शतरुपा का जन्म हुआ। ब्रह्मा के उक्त 17 पुत्रों के अलावा भी उनके भिन्न-भिन्न परिस्थितिवश पुत्रों का जन्म हुआ।
ब्रह्मा के पुत्र : विष्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरिचि, अपान्तरतमा, वशिष्‍ट, प्रचेता, हंस, यति आदि मिलाकर कुल 59 पुत्र थे ब्रह्मा के।
 
ब्रह्मा के प्रमुख पुत्र :
1.मन से मारिचि।
2.नेत्र से अत्रि।
3.मुख से अंगिरस।
4.कान से पुलस्त्य।
5.नाभि से पुलह।
6.हाथ से कृतु।
7.त्वचा से भृगु।
8.प्राण से वशिष्ठ।
9.अंगुष्ठ से दक्ष।10.छाया से कंदर्भ।
11.गोद से नारद।
12.इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार।
13.शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा।
14.ध्यान से चित्रगुप्त।
 
पुराणों में ब्रह्मा-पुत्रों को 'ब्रह्म आत्मा वै जायते पुत्र:' ही कहा गया है। ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे।
 
इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्ध-नारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा।
 
प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वायंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। इन दोनों ने ही प्रियव्रत, उत्तानपाद, प्रसूति और आकूति नाम की संतानों को जन्म दिया। फिर आकूति का विवाह रुचि से और प्रसूति का विवाह दक्ष से किया गया।
 
दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति है। तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया। आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।
 
- संदर्भ वेद, पुराण और महाभारत
 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बिना तोड़फोड़ कैसे लें वास्‍तु उपायों का लाभ, जानें खास टिप्स