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दानवीर 'कर्ण' का परिचय...

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अनिरुद्ध जोशी

दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुंती ने सूर्य का आह्वान करके कौमार्य में ही कर्ण को जन्म दिया था। लोक-लाज भय से कुंती ने उसे नदी में बहा दिया था। बाद में गंगा किनारे हस्तिनापुर के सारथी अधिरथ को कर्ण मिला और वह उस बालक को अपने घर ले गया। कर्ण को अधिरथ की पत्नी राधा ने पाला इसलिए कर्ण को राधेय भी कहते हैं।

कुंती-सूर्य पुत्र कर्ण को महाभारत का एक महत्वपूर्ण योद्धा माना जाता है। कर्ण के धर्मपिता तो पांडु थे, लेकिन पालक पिता अधिरथ और पालक माता राधा थी। कर्ण दानवीर के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने कवच-कुण्डल दान में दिए और अंतिम समय में सोने का दांत भी दे दिया था।

कर्ण की शक्ति अर्जुन और दुर्योधन से कम नहीं थी। उसके पास इंद्र द्वारा दिया गया अमोघास्त्र था। इस अमोघास्त्र का प्रयोग उसने दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था। इसके प्रयोग से भीम पुत्र घटोत्कच मारा गया था।

कुंती के अन्य पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव उसके भाई थे। दूसरी ओर राधा का पुत्र शोण भी उसके भाई समान था। दूसरी ओर उसने गुरु द्रोण और परशुराम से अस्त्र-शस्त्र और शास्त्र की विद्या-शिक्षा ली थी।

'अंग' देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले। दूसरी सुप्रिया से चित्रसेन, सुशर्मा, प्रसेन, भानुसेन नामक 3 पुत्र मिले। माना जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती और पुन्नुरुवी भी कहा जाता था।

भीष्म के अनंतर कर्ण कौरव सेना के सेनापति नियुक्त हुए थे। अंत में 3 दिन तक युद्ध संचालन के उपरांत अर्जुन ने विशेष परिस्थितियों में उनका वध कर दिया। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पांडवों की हार निश्चित थी।

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