माता कालरात्रि और काली को कई लोग एक ही समझ लेते हैं। नौ देवियों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है इन्हीं में से एक है कालरात्रि। अक्सर लोग नवरात्रि के 7वें दिन इन माता की जगह पर काली माता की पूजा करते हैं या उनकी मूर्ति बनाकर सवारी निकालते हैं। आओ जानते हैं दोनों ही माताओं के फर्क को। हालांकि वैसे सभी रूप माता पार्वती के ही है।
1. दुर्गा के 9 रूपों में 7वां रूप हैं देवी कालरात्रि का इसलिए नवरात्र के 7वें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है।
2. कालरात्रि माता गले में विद्युत की माला धारण करती हैं। इनके बाल खुले हुए हैं और गर्दभ की सवारी करती हैं, जबकि काली नरमुंड की माला पहनती हैं और हाथ में खप्पर और तलवार लेकर चलती हैं।
3. काली माता के हाथ में कटा हुआ सिर है जिससे रक्त टपकता रहता है। भयंकर रूप होते हुए भी माता भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं। कालरात्रि माता को काली और शुभंकरी भी कहा जाता है।
4. कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्ध करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था।
5. माता काली को दस महाविद्याओं में से एक माना गया है जबकि कालरात्रि नौ दुर्गा में से एक है। दोनों ही माताओं की शुक्रवार को विशेष पूजा होती है।