महाराष्ट्र की संत परापंरा में तुकाराम को संत शिरोमणि कहा जाता है। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, संत एकनाथ, संत सेन महाराज, संत जानाबाई, संत बहिणाबाई आदि नामों के साथ ही संत तुकाराम का नाम भी लिया जाता है। वारंकरी संप्रदाय में कई संत हुए हैं।
1. महाराष्ट्र के प्रमुख संतों और भक्ति आंदोलन के कवियों में एक तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के अंतर्गत 'देहू' नामक ग्राम में शक संवत् 1520 को अर्थात सन् 1598 में हुआ था। तुकारामजी के पिता का नाम 'बोल्होबा' और माता का नाम 'कनकाई' था। तुकारामजी जब 8 वर्ष के थे, तभी इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था।
2. उन्हें 'तुकोबा' भी कहा जाता है। तुकाराम को चैतन्य नामक साधु ने 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। वे विट्ठल यानी विष्णु के परम भक्त थे। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग 'पंढरपुर' की यात्रा के लिए नियमित रूप से जाते थे। महाराष्ट्र के 'वारकरी संप्रदाय' के लोग जब पंढरपुर की यात्रा पर जाते हैं, तो 'ज्ञानोबा माऊली तुकाराम' का ही जयघोष करते हैं।
3. देश में हुए भीषण अकाल के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई थी। इनकी दूसरी पत्नी जीजाबाई धनी परिवार की कन्या और बड़ी ही कलहप्रिय थी। अपनी दूसरी पत्नी के व्यवहार और पारिवारिक कलह से तंग आकर तुकाराम नारायणी नदी के उत्तर में 'मानतीर्थ पर्वत' पर जा बैठे और भागवत भजन करने लगे।
4. तुकाराम ने 'अभंग' रचकर कीर्तन करना आरंभ कर दिया। इसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। रामेश्वर भट्ट नामक एक व्यक्ति उनका विरोधी हो गया परंतु बाद में वह उनका शिष्य बन गया। तुकारामजी ने अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए लगभग 4600 से अधिक अभंग आज भी उपलब्ध हैं। उनके 'अभंग' अंग्रेज़ी भाषा में भी अनुवादित हुए हैं।
5. इनके जन्म के समय पर मतभेद हैं। कुछ विद्वान इनका जन्म समय 1577, 1602, 1607, 1608, 1618 एवं 1639 में और 1650 में उनका देहांत होने को मानते हैं। ज्यादातर विद्वान 1577 में उनका जन्म और 1650 में उनकी मृत्यु होने की बात करते हैं। तुकाराम ने फाल्गुन माह की कृष्ण द्वादशी शाक संवत 1571 को देह विसर्जन किया।