।।मुहूर्ते बुध्येत् धर्माथर चानु चिंतयेत। कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदत वार्थमेव च।।
अर्थात ब्रह्म मुहूर्त, जो प्रात: 4 से 5 बजे के बीच का समय होता है, में उठकर धर्म, अर्थ और परमात्मा का ध्यान करें। यह समय भगवान विष्णु के जागरण और परमेश्वर से संपर्क का समय रहता है।
हम नहीं जानते की कौन-सा वार ईश्वर का वार होता है और वर्ष में कौन-सा दिन ईश्वर का दिन होता है। लेकिन हिंदू धर्म के जानकार मानते हैं कि सभी वार-दिन ईश्वर के ही हैं। हालांकि रविवार और मकर संक्रांति को खास दिन माना जाता है। सवाल यह है कि दिन में कौन-सा समय ईश्वर का होता है?
इसका जवाब है- ब्रह्म मुहूर्त.....
ब्रह्म मुहूर्त रात्रि का चौथा प्रहर होता है। सूर्योदय के पूर्व के प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं। उनमें से पहले मुहूर्त को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। दिन-रात का 30वां भाग मुहूर्त कहलाता है अर्थात 2 घटी या 48 मिनिट का कालखंड मुहूर्त कहलाता है। उसके बाद वाला विष्णु का समय है जबकि सुबह शुरू होती है लेकिन सूर्य दिखाई नहीं देता।
निषेध : नकारात्मक विचार, बहस, वार्तालाप, संभोग, नींद, भोजन, यात्रा, किसी भी प्रकार का शोर आदि। यह देखा गया है कि बहुत से लोग इस समय जोर-जोर से आरती आदि पूजन-पाठ करते हैं। कुछ तो हवन करते हैं यह अनुचित है।
क्या करें : ऐसे वक्त में ध्यान और प्रार्थना करें। संध्या वंदन सबसे उचित।
ब्रह्म मुहूर्त का महत्व : इस समय संपूर्ण वातावरण शांतिमय और निर्मल होता है। देवी-देवता इस काल में विचरण कर रहे होते हैं। सत्व गुणों की प्रधानता रहती है। जल्दी उठने में सौंदर्य, बल विद्या और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह समय ग्रंथ रचना के लिए उत्तम माना गया है।