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चातुर्मास के धार्मिक व वैज्ञानिक तथ्य-महत्व, सावधानियां और नियम

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, गुरुवार, 29 जून 2023 (16:20 IST)
Chaturmas vrat 2023 देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। चातुर्मास अर्थात 4 माह की अवधि। इस बार अधिकमास होने से 5 माह तक यह काल चलेगा। इस काल में वर्षा ऋतु रहती है। चातुर्मास के काल को साधन, पूजा और व्रत के लिए उत्तम काल बताया गया है। आओ जानते हैं इन चार माहों का महत्व, नियम और सावधानियां।
 
चातुर्मास का धार्मिक महत्व : इन चातुर्मास से ही वर्षा ऋतु का प्रारंभ हो जाता है इसलिए भी इन चातुर्मास का महत्व है। इन चाह माह को व्रत, भक्ति, तप और साधना का माह माना जाता है। इन चाह माह में संतजन यात्राएं बंद करके आश्रम, मंदिर या अपने मुख्य स्थान पर रहकर ही व्रत और साधना का पालन करते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। इन ‍दिनों में साधना तुरंत ही सिद्ध होती है।
 
चातुर्मास में श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने चले जाते हैं और उनकी जगह भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं और तब इस दौरान शिवजी के गण भी सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में यह शिव पूजा, तप और साधना का होता है, मांगलिक कार्यों का नहीं।
 
चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व : इन चार महीनों में ऋतु परिवर्तन भी होता है। ऋति परिवर्तन होने और किटाणु एवं विषाणु बढ़ जाने से भी व्रत, उपवास, नियम और दान का महत्व बढ़ जाता है। क्योंकि इसी ऋतु में गंभीर रोग होने की संभावना रहती है। देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। यह चार सेहत सुधारकर आयु बढ़ाने के माह भी होती है। यदि आप किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त हैं तो आपको इन चार माह में व्रत और चातुर्मास के नियमों का पालन करना चाहिए। 
 
चातुर्मास की सावधानियां :-
  1. उक्त चार माह बाल और दाढ़ी नहीं कटवाते हैं।
  2. इन 4 महीनों में क्रोध, ईर्ष्या, असत्य वचन, अभिमान आदि भावनात्मक विकारों से बचते हैं। 
  3. उक्त चार माह में यदि व्रत धारण करके नियमों का पालन कर रहे हैं तो यात्रा नहीं करते हैं।
  4. इन चार माह में व्यर्थ वार्तालाप, झूठ बोलना, अनर्गल बातें, मनोरंजन के कार्य आदि त्याग देते हैं।
  5. चार माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृहप्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
  6. चातुर्मास का व्रत रख रहे हैं तो यदि आप बीमार हो जाएं तभी व्रत का त्याग कर सकते हैं अन्यथा व्रत को खंडित नहीं करना चाहिए।
  7. चातुर्मास में तेल से बनी चीजों का सेवन न करें, दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल, आदि का त्याग कर दिया जाता है।
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चातुर्मास के नियम :-
  • चार माह यदि उपवास के नियमों का पालन कर लिया तो सभी तरह के रोग दूर हो जाएंगे। 
  • कुछ लोग चार माह तक एक समय भी भोजन करते हैं, जबकि साधक लोग फलाहार ही लेते हैं। 
  • नियम का पालन कर सको तभी चतुर्मास करना चाहिए।
  • इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। 
  • इस दौरान साधक लोग, फर्श या भूमि पर ही सोते हैं।
  • प्रतिदिन ध्यान, साधना या तप करते हैं। साधुजन योग, तप और साधना करते हैं आमजन भक्ति और ध्यान करते हैं।
  • चार माह ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से शक्ति का संचय होता है।
  • ब्रह्मचर्य में इंद्रीय संयम के साथ ही मानसिक संयम भी जरूरी है।
  • इन चार माह साधक लोग मौन ही रहते हैं। मौन से मन की शक्ति बढ़ती है।
  • यदि आप उपवास नहीं कर पा रहे हैं तो समय समय पर मौन रहकर लाभ उठा सकते हैं।
  • चातुर्मास में प्रतिदिन अच्‍छे से स्नान करते हैं। 
  • उषाकाल में उठते हैं और रात्रि में जल्दी सो जाते हैं। इससे शरीर की घड़ी में सुधार होता है।
  • नित्य सुबह और शाम को प्रार्थना, पूजा या संध्यावंदन करते हैं। 
  • नित्य विष्णुजी का ध्यान करते हैं। विष्णु जी के साथ ही लक्ष्मी, शिव, पार्वती, गणेश, पितृदेव, श्रीकृष्‍ण, राधा और रुक्मिणीजी की पूजा करते हैं।
  • आप चाहें तो अपने ईष्टदेव की पूजा, ध्यान या जप कर सकते हैं।
  • इन चार माह में साधुओं के साथ सत्संग करने से जीवन में लाभ मिलता है।
  • सत्संग नहीं कर सकते हैं तो ऑनलाइन या अन्य साधनों से साधुओं प्रवचन सुनें।
  • इन चार माहों में यथा शक्ति दान करते हैं। दान में आप चावल, अन्न, छाता, कंबल और धन का दान कर सकते हैं।
  • इन चार माह के दौरान शुभ मुहूर्त में यज्ञोपवीत धारण करते हैं या उनका नवीनीकरण करते हैं।
  • उक्त चार माहों में पितरों के निमित्त पिंडदान या तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।

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