घर में माता अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहेगी तब घर में चाहे कितने ही अतिथि आए या आप कहीं भी भंडारा करें आपके अन्न में कमी नहीं आएगी और ना ही अन्न बचेगा। इसके लिए करें ये 10 महत्वपूर्ण कार्य तो माता अन्नपूर्णा रहेगी प्रसन्न।
1. अग्निहोत्र कर्म : जब भी रोटी बनाएं तो पहली रोटी अग्नि की, दूसरी रोटी गाय की और तीसरी रोटी कुत्ते की होती है। पहली रोटी मूल रूप से बहुत ही छोटी बनती है। अंगूठे के प्रथम पोर के आकार की। इस रोटी को अग्नि में होम कर दिया जाता है। अग्नि में होम करते वक्त इसके साथ अन्य जो भी बनाया है उसे भी होम कर दिया जाता है। इसे अग्निहोत्र कर्म कहते हैं।
अग्निहोत्र कर्म दो तरह से होता है पहला यह कि हम जब भी भोजन खाएं उससे पहले उसे अग्नि को अर्पित करें। अग्नि द्वारा पकाए गए अन्न पर सबसे पहला अधिकार अग्नि का ही होता है। दूसरा तरीका है यज्ञ की वेदी बनाकर हवन किया जाता है। हिन्दू धर्म में बताए गए मात्र पांच तरह के यज्ञों में से एक है देवयज्ञ जिसे अग्निहोत्र कर्म भी कहते हैं। इससे जहां देव ऋण चुकता होता हैं वहीं अन्न और धान में बरकत बनी रहती है।
2. भोजन का सम्मान : भोजन की थाली को हमेशा पाट, चटाई, चौक या टेबल पर सम्मान के साथ रखें। खाने की थाली को कभी भी एक हाथ से न पकड़ें। ऐसा करने से खाना प्रेत योनि में चला जाता है। भोजन करने के बाद थाली में ही हाथ न थोएं। थाली में कभी जूठन न छोड़े। भोजन करने के बाद थाली को कभी, किचन स्टेन, पलंग या टेबल के नीचे न रखें। उपर भी न रखें। रात्रि में भोजन के जूठे बर्तन घर में न रखें। भोजन करने से पूर्व देवताओं का आह्वान जरूर करें। भोजन करते वक्त वर्तालाप या क्रोध न करें। भोजन करते वक्त अजीब सी आवाजें न निकालें।
परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर भोजन करें। रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात के भोजन में नहीं करना चाहिए। भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए। सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
3. भोजन करने के नियम : प्रत्येक हिन्दू को भोजन करते वक्त थाली में से 3 ग्रास (कोल) निकालकर अलग रखना होता है। यह तीन कोल ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए या मन कथन के अनुसार गाय, कौए और कुत्ते के लिए भी रखा जा सकता है। यह भोजन का नियम है। फिर अंजुली में जल भरकर भोजन की थाली के आसपास दाएं से बाएं गोल घुमाकर अंगुली से जल को छोड़ दिया जाता है। अंगुली से छोड़ा गया जल देवताओं के लिए और अंगूठे से छोड़ा गया जल पितरों के लिए होता है। प्रतिदिन भोजन करते वक्त सिर्फ देवताओं के लिए जल छोड़ा जाता है।
4. अतिथि का भोजन : अतिथि को मेहमान समझा जाता है। ऐसा मेहमान या आगुंतक जो बगैर किसी सूचना के आए उसे अतिथि कहते हैं। हालांकि जो सूचना देकर आए वह भी स्वागत योग्य है। घर आया मेहमान यदि अन्न, स्वल्पाहर या जल ग्रहण करके नहीं जाता है तो यह सही नहीं है। अतिथि का शाब्दिक अर्थ परिव्राजक, सन्यासी, भिक्षु, मुनि, साधु, संत और साधक से भी है।
गृहस्थ जीवन में रहकर पंच यज्ञों का पालन करना बहुत ही जरूरी बताया गया है। उन पंच यज्ञों में से एक है अतिथि यज्ञ। वेदानुसार पंच यज्ञ इस प्रकार हैं- 1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ। अतिथि यज्ञ को पुराणों में जीव ऋण भी कहा गया है। यानि घर आए अतिथि, याचक तथा चींटियां-पशु-पक्षियों का उचित सेवा-सत्कार करने से जहां अतिथि यज्ञ संपन्न होता हैं वहीं जीव ऋण भी उतर जाता है। तिथि से अर्थ मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न-जल देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इससे संन्यास आश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।
प्रकृति का यह नियम है कि आप जितना देते हैं वह उसे दोगुना करके लौटा देती है। यदि आप धन या अन्न को पकड़ कर रखेंगे तो वह छूटता जाएगा। दान में सबसे बड़ा दान है अन्न दान। गाय, कुत्ते, कौवे, चिंटी और पक्षी के हिस्से का भोजन निकालना जरूरी है। दान को पंच यज्ञ में से एक वैश्वदेवयज्ञ भी कहा जाता है।
5. क्रोध-कलह से बचें और स्त्रियों का करें सम्मान : घर में क्रोध, कलह और रोना-धोना आर्थिक समृद्धि व ऐश्वर्य का नाश कर देता है। इसलिए घर में कलह-क्लेश पैदा न होने दें। आपस में प्रेम और प्यार बनाए रखने के लिए एक दूसरे की भावनाओं को समझे और परिवार के लोगों को सुनने और समझने की क्षमता बढ़ाएं। अपने विचारों के अनुसार घर चलाने का प्रयास न करें। सभी के विचारों का सम्मान करें।
मां, बेटी और पत्नी का सम्मान जरूरी है। पत्नी और बेटी लक्ष्मी का रूप होती हैं, भूलकर भी इन्हें न दुत्कारें, न कोसें तथा न ही कोई अशुभ वचन कहें। मां को साक्षात देवी पार्वती माना गया है। मां को दुखी रखने वाला कभी जीवन में सुखी नहीं रह सकता। पत्नी और बेटी के दुखी रखने से आप कभी सुखी नहीं रह सकते। एक बार यदि पत्नी रोती हुई अपने माता-पिता के घर चली गई तो याद रहे, इस पापकर्म से आपके घर की बरकत भी चली जाएगी।
उपरोक्त नियम का पालन नहीं करने से जहां एक ओर बरकत चली जाती है, धन चला जाता है वहीं व्यक्ति कई तरह के संकटों से घिर जाता है।