संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
एक आदर्श हिन्दू घर या भारतीय घर कैसा होना चाहिए? यह जानना जरूरी है। आजकल आबादी के बढ़ते या पश्चिम के अनुसरण के चलते लोगों ने फ्लैट में रहना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर कोई भी वास्तुशास्त्र का पालन नहीं करता है।
इसके अलावा आजकल कई ऐसे वास्तुशास्त्री हैं तो घर की दिशा या दशा को बदले बिना घर को वास्तुदोष से मुक्त करने का दावा भी करते हैं। इसके लिए वे घर की वस्तुओं को इधर से उधर कर या किसी प्रकार का हवन करवाकर वास्तुदोष दूर करने का दावा करते हैं, लेकिन क्या यह सही है?
यथार्थवादी दृष्टिकोण यह है कि घर में यदि आपको अच्छी सुकून की नींद, अच्छा सेहतमंद भोजन और भरपूर प्यार-अपनत्व नहीं मिल रहा है तो घर में वास्तुदोष है। घर है तो परिवार और संसार है। घर नहीं है तो भीड़ के बीच सड़क पर हैं। खुद का घर होना जरूरी है। जीवन का पहला लक्ष्य मजबूत और वास्तुदोष से मुक्त घर होना चाहिए। यदि यह है तो बाकी समस्याएं गौण हो जाती हैं। आओ हम जानते हैं कि एक आदर्श हिन्दू घर कैसा हो इस बार में 10 खास बातें...
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घर की दिशा : घर का मुख्य द्वार सिर्फ पूर्व, ईशान या उत्तर में होना चाहिए। हालांकि वास्तुशास्त्री मानते हैं कि घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वे चार दिशाएं हैं- ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम। लेकिन हम यहां सलाह देंगे सिर्फ तीन ही दिशाओं में से किसी एक का चयन करें।
पूर्व या उत्तर का द्वार : पूर्व इसलिए कि पूर्व से सूर्य निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है। उत्तर इसलिए कि उत्तरी ध्रुव से आने वाली हवाएं अच्छी होती हैं और दक्षिणी ध्रुव से आने वाली हवाएं नहीं। घर को बनाने से पहले हवा, प्रकाश और ध्वनि के आने के रास्तों पर ध्यान देना जरूरी है।
भूमि का ढाल : सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर होगा तो अत्यंत उपयुक्त रहेगा। सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव धरती के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी ध्रुव जहां बर्फ से पूरी तरह ढंका हुआ एक सागर है, जो आर्कटिक सागर कहलाता है वहीं दक्षिणी ध्रुव ठोस धरती वाला ऐसा क्षेत्र है, जो अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है। ये ध्रुव वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव से कहीं ज्यादा ठंडा है। यहां मानवों की बस्ती नहीं है। इन ध्रुवों के कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व, उत्तर एवं ईशान की और जमीन का ढाल होना चाहिए।
अगले पन्ने पर दूसरा नियम...
प्रत्येक दिशा नियम से बंधी है अत: प्रत्येक दिशा में क्या होना चाहिए, यह जानना जरूरी है।
उत्तर दिशा : इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए। यदि घर का द्वार इस दिशा में है और अति उत्तम।
दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। घर में इस स्थान पर भारी सामान रखें। यदि इस दिशा में द्वार या खिड़की है तो घर में नकारात्मक ऊर्जा रहेगी और ऑक्सीजन का लेवल भी कम हो जाएग। इससे गृह कलह बढ़ेगी।
पूर्व दिशा : पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। यदि घर का द्वार इस दिशा में है तो मात्र उत्तम। खिड़की रख सकते हैं।
पश्चिम दिशा : आपका रसोईघर या टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए। रसोईघर और टॉयलेट पास- पास न हो, इसका भी ध्यान रखें।
उत्तर-पूर्व दिशा : इसे ईशान दिशा भी कहते हैं। यह दिशा जल का स्थान है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। यदि इस दिशा में घर का द्वार है तो सोने पर सुहागा।
उत्तर-पश्चिम दिशा : इसे वायव्य दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए।
दक्षिण-पूर्व दिशा : इसे घर का आग्नेय कोण कहते हैं। यह अग्नि तत्व की दिशा है। इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा : इस दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिलकुल ही नहीं होना चाहिए। घर के मुखिया का कमरा यहां बना सकते हैं। कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं।
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घर का आंगन : घर में आंगन नहीं है तो घर अधूरा है। घर के आगे और घर के पीछे छोटा ही सही, पर आंगन होना चाहिए। प्राचीन हिन्दू घरों में तो बड़े-बड़े आंगन बनते थे। शहरीकरण के चलते आंगन अब नहीं रहे। आंगन नहीं है तो समझो आपके बच्चे का बचपन भी नहीं है।
आंगन में तुलसी, अनार, जामफल, कड़ी पत्ते का पौधा, नीम, आंवला आदि के अलावा सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने वाले फूलदार पौधे लगाएं। तुलसी हवा को शुद्ध कर कैंसर जैसे रोगों को मिटाती है। अनार खून बढ़ाने और वातावरण को सकारात्मक करने का कार्य करता है। कड़ी पत्ता खाते रहने से जहां आंखों की रोशनी कायम रहती है वहीं बाल काले और घने बने रहते हैं, दूसरी ओर आंवला शरीर को वक्त के पहले बूढ़ा नहीं होने देता। यदि नीम लगा है तो जीवन में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होगा।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसके अलावा घर के द्वार के आगे प्रतिदिन रंगोली बनाएं और आंगन की दीवारों और भूमि पर मांडने मांडें।
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स्नानघर और शौचालय : घर में या घर के आंगन में टॉयलेट और बाथरूम बनाते वक्त वास्तु का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इसके बुरे प्रभाव के कारण घर का वातावरण बिगड़ सकता है। दोनों ही स्थानों को ज्योतिष में राहु और चंद्र की शरारत का स्थान माना गया है। स्नानगृह में चंद्रमा का वास है तथा शौचालय में राहू का। शौचालय और बाथरूम एकसाथ नहीं होना चाहिए अर्थात चंद्र और राहू का एकसाथ होना चंद्रग्रहण है। यदि ऐसा है तो यह गृह कलह का कारण बन जाएगा। वास्तु ग्रंथ 'विश्वकर्मा प्रकाश' में इस बारे में विस्तार से बताया गया है।
शौचालय : यह मकान के नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण में अथवा नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम है। इसके अलावा शौचालय के लिए वायव्य कोण तथा दक्षिण दिशा के मध्य का स्थान भी उपयुक्त बताया गया है। शौचालय में सीट इस प्रकार हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर होना चाहिए। शौचालय की नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए शौचालय में एक्जास्ट फेन चलाकर उपयोग करना चाहिए।
स्नानघर : स्नानघर पूर्व दिशा में होना चाहिए। नहाते समय हमारा मुंह अगर पूर्व या उत्तर में है तो लाभदायक माना जाता है। पूर्व में उजालदान होना चाहिए। बाथरूम में वॉश बेशिन को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण दरवाजे के ठीक सामने नहीं हो।
विशेष :
* नल से पानी का टपकते रहना वास्तुशास्त्र में आर्थिक नुकसान का बड़ा कारण माना गया है।
* जिनके घर में जल की निकासी दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होती है उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ अन्य कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
* उत्तर एवं पूर्व दिशा में जल की निकासी को आर्थिक दृष्टि से शुभ माना गया है।
* जल संग्रहण का स्थान ईशान कोण को बनाएं।
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पूजाघर : घर में पूजा के कमरे का स्थान सबसे अहम होता है। इस स्थान से ही हमारे मन और मस्तिष्क में शांति मिलती है तो यह स्थान अच्छा होना जरूरी है। आपकी आय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि घर में पूजाघर कहां है। यहां हिदायत यह है कि किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही पूजाघर बनवाएं अन्यथा सभी तरह का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
वास्तु की नजर से पूजाघर
घर के बाहर एक अलग स्थान देवता के लिए रखा जाता था जिसे परिवार का मंदिर कहते थे। बदलते दौर के साथ एकल परिवार का चलन बढ़ा है इसलिए पूजा का कमरा घर के भीतर ही बनाया जाने लगा है अतएव वास्तु अनुसार पूजाघर का स्थान नियोजन और सजावट की जाए तो सकारात्मक ऊर्जा अवश्य प्रवाहित होती है।
वास्तु के अनुसार भगवान के लिए उत्तर-पूर्व की दिशा श्रेष्ठ रहती है। इस दिशा में पूजाघर स्थापित करें। यदि पूजाघर किसी ओर दिशा में हो तो पानी पीते समय मुंह ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखें। पूजाघर के ऊपर या नीचे की मंजिल पर शौचालय या रसोईघर नहीं होना चाहिए, न ही इनसे सटा हुआ। सीढ़ियों के नीचे पूजा का कमरा बिलकुल नहीं बनवाना चाहिए। यह हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर होना चाहिए, तहखाने में नहीं। पूजा का कमरा खुला और बड़ा बनवाना चाहिए।
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शयन कक्ष : शयन कक्ष अर्थात बेडरूम हमारे निवास स्थान की सबसे महत्वपूर्ण जगह है। इसका सुकून और शांतिभरा होना जरूरी है। कई बार शयन कक्ष में सभी तरह की सुविधाएं होने के कारण भी चैन की नींद नहीं आती। कोई टेंशन नहीं है फिर भी चैन की नींद नहीं आती तो इसका कारण शयन कक्ष का गलत स्थान पर निर्माण होना है।
मुख्य शयन कक्ष, जिसे मास्टर बेडरूम भी कहा जाता हें, घर के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) या उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर होना चाहिए। अगर घर में एक मकान की ऊपरी मंजिल है तो मास्टर ऊपरी मंजिल मंजिल के दक्षिण-पश्चिम कोने में होना चाहिए।
शयन कक्ष में सोते समय हमेशा सिर दीवार से सटाकर सोना चाहिए। पैर दक्षिण और पूर्व दिशा में करने नहीं सोना चाहिए। उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोने से स्वास्थ्य लाभ तथा आर्थिक लाभ की संभावना रहती है। पश्चिम दिशा की ओर पैर करके सोने से शरीर की थकान निकलती है, नींद अच्छी आती है।
* बिस्तर के सामने आईना कतई न लगाएं।
* शयन कक्ष के दरवाजे के सामने पलंग न लगाएं।
* डबलबेड के गद्दे अच्छे से जुड़े हुए होने चाहिए।
* शयन कक्ष के दरवाजे करकराहट की आवाजें नहीं करने चाहिए।
* शयन कक्ष में धार्मिक चित्र नहीं लगाने चाहिए।
* पलंग का आकार यथासंभव चौकोर रखना चाहिए।
* पलंग की स्थापना छत के बीम के नीचे नहीं होनी चाहिए।
* लकड़ी से बना पलंग श्रेष्ठ रहता है। लोहे से बने पलंग वर्जित कहे गए हैं।
* रात्रि में सोते समय नीले रंग का लैम्प जलाएं।
* कभी भी सिरहाने पानी का जग अथवा गिलास रखकर न सोएं।
* शयन कक्ष में कमरे के प्रवेश द्वार के सामने वाली दीवार के बाएं कोने पर धातु की कोई चीज लटकाकर रखें।
* वास्तुशास्त्र के अनुसार यह स्थान भाग्य और संपत्ति का क्षेत्र होता है।
* इस दिशा में दीवार में दरारें हों तो उसकी मरम्मत करवा दें। इस दिशा का कटा होना भी आर्थिक नुकसान का कारण होता है।
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अध्ययन कक्ष : पूर्व, उत्तर, ईशान तथा पश्चिम के मध्य में अध्ययन कक्ष बनाया जा सकता है। अध्ययन करते समय दक्षिण तथा पश्चिम की दीवार से सटाकर पूर्व तथा उत्तर की ओर मुख करके बैठें। अपनी पीठ के पीछे द्वार अथवा खिड़की न हो। अध्ययन कक्ष का ईशान कोण खाली हो।
रसोईघर : भोजन की गुणवत्ता बनाए रखने और उत्तम भोजन निर्माण के लिए रसोईघर का स्थान घर में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यदि हम भोजन अच्छा करते हैं तो हमारा दिन भी अच्छा गुजरता है। यदि रसोई कक्ष का निर्माण सही दिशा में नहीं किया गया है तो परिवार के सदस्यों को भोजन से पाचन संबंधी अनेक बीमारियां हो सकती हैं। रसोईघर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान आग्नेय कोण यानी दक्षिण-पूर्वी दिशा है, जो कि अग्नि का स्थान होता है। दक्षिण-पूर्व दिशा के बाद दूसरी वरीयता का उपयुक्त स्थान उत्तर-पश्चिम दिशा है।
* भोजन करते समय पूर्व या उत्तरमुखी बैठकर भोजन करें। भोजन, भोजन कक्ष में ही करें।
* रसोईघर में भोजन पकाते समय आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए।
* रसोईघर में पीने का पानी उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
* रसोईघर में गैस दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
* रसोईघर में भोजन करते समय आपका मुख उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए।
* फ्रिज पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है।
* खाद्य सामग्रियों, बर्तन, क्रॉकरी इत्यादि के भंडारण के लिए स्थान पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए।
* रसोईघर में पूजा का स्थान नहीं होना चाहिए।
* खाने की मेज को रसोईघर में नहीं रखा जाना चाहिए। मजबूरी है रखना तो उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए ताकि भोजन करते समय चेहरा पूर्व या उत्तर हो।
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अतिथि कक्ष : कुछ वास्तुकार अतिथि कक्ष को वाव्यव कोण में होना लाभप्रद मानते हैं। इसका कारण है कि इस दिशा के स्वामी वायु होते हैं तथा ग्रह चंद्रमा। वायु एक जगह नहीं रह सकते तथा चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ता है। अतः वायव्य कोण में अतिथि गृह होने पर अतिथि कुछ ही समय तक रहता है तथा पूर्व आदर-सत्कार पाकर लौट जाता है, जिससे परिवारिक मतभेद पैदा नहीं होते।
अतिथि देवता के समान होता है तो उसका कक्ष उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए। यह मेहमान के लिए शुभ होता है। घर की उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में अतिथि कक्ष (गेस्ट रूम) होना उत्तम माना गया है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह दिशा केवल घर के स्वामी के लिए होती है। उत्तर-पश्चिम दिशा आपके मेहमानों के ठहरने के लिए सबसे सुविधाजनक दिशा है। आप आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्वी दिशा में भी गेस्टरूम बना सकते हैं।
* अतिथि को ऐसे कमरे में ठहराना चाहिए, जो अत्यंत साफ व व्यवस्थित हो। जिसे देखकर मेहमान का मन खुश हो जाए।
* कभी भी गेस्टरूम में भारी लोहे का सामान नहीं रखना चाहिए, अन्यथा अतिथि को लगेगा कि उसे बोझ समझा जा रहा है। इस अवस्था में मेहमान तनाव महसूस कर सकता है।
* अगर आप अपना गेस्टरूम दक्षिणी दिशा में बनाना चाहते हैं तो वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श ले।
* गेस्टरूम का दरवाजा वास्तु के हिसाब से पूर्व दिशा में तथा दूसरा दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
* गेस्टरूम में खिड़की उत्तर दिशा, पश्चिमी दिशा में या फिर उत्तर-पूर्व कोने में होनी चाहिए।
* यदि गेस्टरूम वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)या आग्नेय कोण में है तो आपको इस रूम का बाथरूम नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए और उत्तर पूर्वी कोने में एक खिड़की जरूर रखना चाहिए।
*उत्तर-पूर्वी दिशा में बना पूर्वमुखी या उत्तरमुखी दरवाजा गेस्टरूम के लिए सबसे उत्तम होता है।
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वास्तु रचना :
1. घर का मुख्य द्वार 4 में से किसी 1 दिशा में हो। वे 4 दिशाएं हैं- ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम।
2. घर के सामने आंगन और पीछे भी आंगन हो जिसके बीच में तुलसी का एक पौधा लगा हो।
3. घर के सामने या निकट तिराहा-चौराहा नहीं होना चाहिए।
4. घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए अर्थात बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे की दीवार के दाएं 'शुभ' और बाएं 'लाभ' लिखा हो।
5. घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा 'ॐ' की आकृति लगाएं।
6 . घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान का कक्ष हो। नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।
7. घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र या मूर्ति न रखें। घर में मंदिर न बनाएं।
8. घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच का स्थान) खाली रखें।
9. घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न रखें।
10. घर हो मंदिर के आसपास तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
11. घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक वस्तुओं का संग्रह न करें और अटाला भी इकट्ठा न करें।
12. घर में सीढ़ियां विषम संख्या (5, 7, 9) में होनी चाहिए।
13. उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए।
14. घर के ऊपर केसरिया ध्वज लगाकर रखें।
16. घर में किसी भी तरह के नकारात्मक पौधे या वृक्ष रोपित न करें।
17. घर में टूटे-फूटे बर्तन एवं कबाड़ को जमा करके रखने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। बहुत से लोग घर की छत पर अथवा सीढ़ी के नीचे कबाड़ जमा करके रखते हैं, जो धन वृद्धि में बाधक होता है।
अंत में मकान के लिए भूमि चयन कितना जरूरी...
भूमि चयन : मकान के लिए भूमि का चयन करना सबसे ज्यादा महत्व रखता है। शुरुआत तो वहीं से होती है। भूमि कैसी है और कहां है यह देखना जरूरी है। भूमि भी वास्तु अनुसार है तो आपके मकान का वास्तु और भी अच्छे फल देने लगेगा।
भूमि के प्रकार..
1. उत्तम : ब्रह्म, पितामह, दीर्घायु, सुपथ, स्थंडिल और अर्गल भूमि।
2. मध्यम : पुण्यक, स्थावर, चर, सुस्थान और सुतल भूमि।
3. निम्न : अपथ, रोगकर, श्येनक, शंडुल, श्मशान, सम्मुख और स्वमुख।
*आपका मकान मंदिर के पास है तो अति उत्तम। थोड़ा दूर है तो मध्यम और जहां से मंदिर नहीं दिखाई देता वह निम्नतम है।
*मकान मंदिर के एकदम पीछे नहीं दाएं-बाएं बनाएं या सामने बनाएं।
*मकान उस शहर में हो जहां 1 नदी, 5 तालाब, 21 बावड़ी और 2 पहाड़ हो।
*मकान पहाड़ के उत्तर की ओर बनाएं।
*मकान शहर के पूर्व, पश्चिम या उत्तर दिशा में बनाएं।
*मकान के सामने तीन रास्ते न हों। अर्थात तीन रास्तों पर मकान न बनाए।
*मकान के सामने खंभा न हो।
*मकान में ईशान और उत्तर दिशा को छोड़कर और कहीं कुंवा या पानी का टैंक नहीं होना चाहिए।