हिन्दू धर्म में यात्रा करने का बहुत महत्व है। इसीलिए इस धर्म में तीर्थ यात्री, परिव्राजक और परिक्रमा जैसे शब्द हैं। आओ जानते हैं कि तीर्थ यात्रा करने के क्या लाभ हो सकते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार व्यक्ति का जन्म मोक्ष के लिए हुआ है। मोक्ष का व्यावहारिक अर्थ होता है आत्मज्ञान या परमज्ञान को उपलब्ध होना। इसे योग में समाधि, जैन धर्म में कैवल्य, बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्त करना कहा जाता है। धर्म के सारे उपक्रम, रीति रिवाज या परंपरा इसी के लिए हैं। उसी में एक है तीर्थ यात्रा करना।
हर हिन्दू के लिए तीर्थ करना है पुण्य कर्म है। तीर्थों में चार धाम की यात्रा करना जरूरी है। अत: जिसने यात्राएं नहीं की उसका जीवन व्यर्थ ही समझो। हिन्दू धर्म मानता है कि जन्म लेकर मनुष्य जीवन में आएं हैं तो दुनिया को देखना जरूरी है। देखने से भी बढ़कर है दर्शन करना। तीर्थ दर्शन करना। दर्शन का अर्थ होता है इस तरह से देखना की आपके इस देखने के बीच में विचारों या खयालों की दीवार ना हो।
तीर्थ परिक्रमाएं:-
तीर्थ यात्रा के दौरान कई तरह की परिक्रमाएं की जाती है। सभी परिक्रमाओं के करने के अलग अलग समय होते हैं। तीर्थ परिक्रमाएं:- जैसे चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन या प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि। इसके अंतर्गत नदी परिक्रमा भी आती है। जैसे नर्मदा, गंगा, सरयु, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी परिक्रमा आदि। चार धाम परिक्रमा:- जैसे छोटा चार धाम परिक्रमा या बड़ा चार धाम यात्रा। पर्वत परिक्रमा:- जैसे गोवर्धन परिक्रमा, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा आदि।
तीर्थ यात्राओं के लाभ-
1.यात्राओं से हमें नए-नए अनुभव होते हैं, हमारी स्मृतियां बढ़ती है। सोच बढ़ती है। शिक्षित होते हैं।
2.यात्राओं से हम यह देख पाते हैं कि धरती कैसी है, प्रकृति कैसी है, शहर, गांव और कस्बें कैसे हैं।
3.यात्राओं से हमें भिन्न-भिन्न संस्कृति और धर्म की भाषा, भूषा और भोजन का पता चलता है।
4.यात्राओं से ही जान सकते हैं कि लोग कैसे हैं, उनके विचार कैसे हैं और अतत: हम यह निर्णय ले सकते हैं कि हम कैसे हैं।
5.यात्राओं से जीवन में कई तरह के रंग भर जाते हैं। अत: यात्राएं करते रहें।
6.बहुत से लोग एक शहर छोड़कर दूसरे शहर घूमते रहते हैं। इससे उन्हें पता चलता है कि कहां क्या मिलता है और कितने में मिलता है। ऐसा करके वे अपने शहर में वह व्यापार शुरू कर सकते हैं जो कि उनके शहर में नहीं होता है।
7.ऐसी भी बहुत सारी बाते हैं जो आपके शहर में नहीं हो रही है। यदि आप यात्रा करेंगे तो पता चलेगा कि आपके शहर, गांव या कस्बे में क्या नहीं हो रहा है। जैसे कुछ लोग अमेरिका से सीखकर यहां आते हैं और अपने शहर को कुछ नया देते हैं। इसी तरह कुछ लोग अपना ज्ञान लेकर विदेश जाते हैं और उन्हें वहां कुछ नया देते हैं।
8.तीर्थ यात्रा में अक्सर पैदल चलना होता है। पैदल चलने से शरीर सुगठित और पुष्ट होता है। जंघा, भुजा, नाड़ी और मांस पेशियां परिपुष्ट हो जाती है।
9.तीर्थ यात्रा करने से व्यक्ति को हर तरह की जलवायु का सामना करना होता है जिसके चलते वह सेहतमंद बनता है और नए नए अनुभव प्राप्त करता है। पहाड़ों पर शुद्ध हवा से नए जीवन का संचार होता है।
10.तीर्थ यात्रा के दौरान व्यक्ति अपने देश और धर्म को जानने का प्रयास करता है। तीर्थ पुरोहित, पंडा से मिलकर अपने कुल खानदान को जानता है। तपस्वी, मनस्वी, साधु, संत आदि के आश्रमों में रुकने का मौका मिलता है। उनके आश्रम में नहीं ठहरते हैं तो उनसे मिलने का मौका मिलता है जिसके चलते मानसिक लाभ मिलता है।
11.हिन्दू धर्म में चार धमों की तीर्थ यात्रा करने के महत्व के संबंध में विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसके माध्यम से व्यक्ति देश के संपूर्ण लोगों, उनकी संस्कृति, भाषा, इतिहास, धर्म और परंपरा आदि से परिचित ही नहीं होता बल्कि वह अपने भीतर बौद्धिकता और आत्मज्ञान के रास्ते भी खोल लेता है।
12.तीर्थ यात्रा करने से व्यक्ति में खुद के बारे में, लोगों के बारे में समझने की बुद्धि का विकास तो होता ही है साथ ही उसे अपने जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य भी पता चलता है। अक्सर लोग जीवन के अंतिम पड़ाव में तीर्थ यात्रा पर जाते हैं लेकिन जो जवानी में गया समझो उसने ही सबकुछ पाया। वही परिपक्व और अनुभवी व्यक्ति है।
तीर्थ मार्ग में सत्संग:- तीर्थ यात्रा के लिए शास्त्रीय निर्देश यह है कि उसे पद यात्रा के रूप में ही किया जाए। यह परंपरा कई जगह निभती दिखाई देती है। पहले धर्म परायण व्यक्ति छोटी-बड़ी मंडलियां बनाकर तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। यात्रा के मार्ग और पड़ाव निश्चित थे। मार्ग में जो गांव, बस्तियां, झोंपड़े नगले पुरबे आदि मिलते थे, उनमें रुकते, ठहरते, किसी उपयुक्त स्थान पर रात्रि विश्राम करते थे। जहां रुकना वहां धर्म चर्चा करना-लोगों को कथा सुनाना, यह क्रम प्रातः से सायंकाल तक चलता था। रात्रि पड़ाव में भी कथा कीर्तन, सत्संग का क्रम बनता था।
दार्शनिक महत्व:- इसका एक दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है। परिक्रमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।