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कुछ खास दिनों को याद रखेंगे तो रहेंगे सुखी...

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अनिरुद्ध जोशी

खाना बनाना भी एक कला है। हालांकि जो मिले, वही खा लें, इसी में भलाई है। खाने के प्रति लालसा नहीं रखनी चाहिए, लेकिन खाने की क्वालिटी से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद और हिन्दू धर्म अनुसार भोजन से ही रोग उत्पन्न होते हैं और भोजन की आदत बदलने से ही रोग समाप्त भी हो जाते हैं। हिन्दू धर्म में किस नक्षत्र या वार को कौन सा भोजन करना चाहिए और कौन सा नहीं इसका उल्लेख मिलता है। आओ जानते हैं कुछ खास दिनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी...
 
1. प्रतिपदा को कुष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है।
2. द्वितीया को छोटा बैंगन व कटहल खाना निषेध है।
3. तृतीया को परमल खाना निषेध है, क्योंकि यह शत्रुओं की वृद्धि करता है।
4. चतुर्थी के दिन मूली खाना निषेध है, इससे धन का नाश होता है।
5. पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है अत: पंचमी को बेल खाना निषेध है।
6. षष्ठी के दिन नीम की पत्ती खाना एवं दातुन करना निषेध है, क्योंकि इसके सेवन से एवं दातुन करने से नीच योनि प्राप्त होती है।
7. सप्तमी के दिन ताड़ का फल खाना निषेध है। इसको इस दिन खाने से रोग होता है।
8. अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है।
9. नवमी के दिन लौकी खाना निषेध है, क्योंकि इस दिन लौकी का सेवन गौ-मांस के समान है।
10. दशमी को कलंबी खाना निषेध है।
11. एकादशी को सेम फली खाना निषेध है।
12. द्वादशी को (पोई) पु‍तिका खाना निषेध है।
13. तेरस (त्रयोदशी) को बैंगन खाना निषेध है।
14. अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।
15. रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए।
16. कार्तिक मास में बैंगन और माघ मास में मूली का त्याग करना चाहिए।
17. अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए।
18. जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करके बनाया गया हो, जिस भोजन को किसी ने लांघा हो तो वह भोजन नहीं करना च‍ाहिए, क्योंकि वह राक्षस भोजन होता है।
19. जिन्हें लक्ष्मी प्राप्त करने की लालसा हो उन्हें रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए, यह नरक की प्राप्ति कराता है।

कुछ खास दिन : आप इसे मानें या न मानें। मान्यता अनुसार कुछ खास दिनों में कुछ खास कार्य करने से बचना चाहिए। ये कुछ खास दिन यहां प्रस्तुत हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि तेरस, चौदस, पूर्णिमा, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 5 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है, क्योंकि इन दिनों में देव और असुर सक्रिय रहते हैं।
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*चन्द्रमा की सोलह कला : अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। प्रत्येक कला आपके जीवन पर भिन्न प्रकार का प्रभाव डालती है। अब तो यह विज्ञान से भी सिद्ध हो चुका है।
 
अमावस्या : अमावस्या को हो सके तो यात्रा टालना चाहिए। किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए। इस दिन रा‍क्षसी प्रवृत्ति की आत्माएं सक्रिय रहती हैं। यह प्रेत और पितरों का दिन माना गया है। इस दिन बुरी आत्माएं भी सक्रिय रहती हैं, जो आपको किसी भी प्रकार से ‍जाने-अनजाने नुकसान पहुंचा सकती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
 
पूर्णिमा : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं इसलिए पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। पूर्णिमा की रात में कुछ देर चांदनी में बैठने से मन को शांति मिलती है। कुछ देर चांद को देखने से आंखों को ठंडक मिलती है और साथ ही रोशनी भी बढ़ती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
 
उपाय : अमावस्या या पूर्णिमा के दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं फिर एक मिट्टी का दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। अमावस्या पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी के पत्ते या बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
 
राहुकाल : जब कोई कार्य पूर्ण मेहनत किए जाने के बाद भी असफल हो जाए या उस कार्य के विपरीत परिणाम जाए, तो समझ लीजिए आपका कार्य शुभ मुहूर्त में नहीं हुआ बल्कि राहुकाल में हुआ है। राहुकाल में शुभ कार्य करना वर्जित है।
 
क्या होता राहुकाल? : राहुकाल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। राहुकाल को छायाग्रह का काल कहते हैं। उक्त डेढ़ घंटा कोई कार्य न करें या किसी यात्रा को टाल दें।
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कब होता है राहुकाल-
* रविवार को शाम 4.30 से 6.00 बजे तक राहुकाल होता है।
* सोमवार को दिन का दूसरा भाग यानी सुबह 7.30 से 9 बजे तक राहुकाल होता है।
* मंगलवार को दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक राहुकाल होता है।
* बुधवार को दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक राहुकाल माना गया है।
* गुरुवार को दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक का समय यानी दिन का छठा भाग राहुकाल होता है।
* शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहुकाल होता है यानी सुबह 10.30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल है।
* शनिवार को सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक के समय को राहुकाल माना गया है।
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दिशाशूल मूलत: किसी दिशा विशेष में दिन विशेष पर की जाने वाली यात्रा से संबंधित है। अगर किसी कारणवश उक्त दिशा में यात्रा करनी भी पड़े तो उसके निवारण के कुछ आसान से उपाय होते हैं ‍जिन्हें जानकर यात्रा को निर्विघ्न बानाया जा सकता है।
 
किस दिशा में होता कब दिशाशूल:-
1. सोमवार और शुक्रवार को पूर्व
2. रविवार और शुक्रवार को पश्चिम
3. मंगलवार और बुधवार को उत्तर
4. गुरुवार को दक्षिण
5. सोमवार और गुरुवार को दक्षिण-पूर्व
6. रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम
7. मंगलवार को उत्तर-पश्चिम
8. बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व
 
उपाय : 
1. रविवार:- दलिया और घी खाकर
2. सोमवार:- दर्पण देखकर
3. मंगलवार:- गुड़ खाकर
4. बुधवार:- तिल, धनिया खाकर
5. गुरुवार:- दही खाकर
6. शुक्रवार:- जौ खाकर
7. शनिवार:- अदरक अथवा उड़द की दाल खाकर

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