Rules for offering Naivedya : देवता को निवेदित करना ही नैवेद्य है। हिन्दू सनातन धर्म में पूजा के दौरान भगवान को नैवेद्य अर्पित किया जाता है और उसके बाद उसी नैवेद्य को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। भगवान को नैवेद्य अर्पित करने के भी कुछ नियम है। यदि नियम से यह भोग या नैवेद्य नहीं लगाया जाता है तो भगवान उसे स्वीकार भक्त कि भक्ति के अनुसार ही करते हैं।
नैवेद्य में क्या अर्पित नहीं करते हैं?
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नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
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नैवेद्य में तामसिक या राजसिक भोजन का उपयोग नहीं करते हैं।
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नैवेद्य में डंबा बंद, जंक या फास्ट फूड अर्पित नहीं करते हैं।
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नैवेद्य में चाकलेट, टॉफी, बिस्कुट आदि भी अर्पित नहीं करना चाहिए।
क्या अर्पित करते हैं नैवेद्य में?
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नैवेद्य में नमक की जगह मिष्ठान्न रखे जाते हैं।
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नैवेद्य में मौसमी फल, ड्राइ फूड भी अर्पित कर सकते हैं।
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नैवेद्य में परंपरागत तरीके से बने सात्विक भोजन अर्पित कर सकते हैं।
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नैवेद्य में खीर, पूरी, रोटी, लड्डू, दाल, चावल, रोठ भी अर्पित कर सकते हैं।
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सभी प्रकार के प्रसाद में निम्न प्रदार्थ प्रमुख रूप से रखे जाते हैं- दूध-शकर, मिश्री, शकर-नारियल, गुड़-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थ।
किस ओर रखें नैवेद्य?
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नैवेद्य देवता के दक्षिण भाग में रखना चाहिए।
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कुछ ग्रंथों का मत है कि पक्व नैवेद्य देवता के बाईं तरफ तथा कच्चा दाहिनी तरफ रखना चाहिए।
किस पात्र में अर्पित करें नैवेद्य?
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चांदी या पीतल की थाली में नैवेद्य अर्पित करें।
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खाकरे या केले के पत्ते पर ही नैवेद्य परोसा जा सकता है।
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नैवेद्य की थाली तुरंत भगवान के आगे से हटाना नहीं चाहिए।
नैवेद्य पर रखें तुलसी का पत्ता:
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प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
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शिवजी के नैवेद्य में तुलसी की जगह बेल रखें।
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गणेशजी के नैवेद्य में तुलसी की जगह दूर्वा रखते हैं।
कैसे लगाते हैं भगवान को भोग?
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भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें।
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फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें।
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तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्निदेव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें।
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अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन: जल छिड़कें और हाथ जोड़कर नमन करें।
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भोजन के अंत में भोग का यह अंश गाय, कुत्ते और कौए को दिया जाना चाहिए।